Sufinama

बारहमाहा

बुल्ले शाह

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बुल्ले शाह

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    अस्सू

    दोहरा-

    अस्सू लिखूं सन्देसवा वाचे मेरा पी

    गमन किया तुम काहे को जो कलमल आया जी

    अस्सू असां तुसाडी आस, साडी जिन्द तुसाडे पास,

    जिगर मुढ्ढ प्रेम दी लाश, दुक्खां हड्ड सुकाए मास,

    सूलां साड़ियां

    सूलां साड़ी रही बेहाल, मुट्ठी तदों ना गईआं नाल,

    उलटी प्रेम नगर दी चाल, बुल्ल्हा शहु दी करसां भाल,

    प्यारे मारियां ।१।

    कत्तक

    दोहरा-

    कहो कत्तक कैसी जो बण्यु कठन सो भोग

    सीस कप्पर हत्थ जोड़ के मांगे भीख संजोग

    कत्तक ग्या तुम्बन कत्तन, लग्गी चाट तां होईआ अत्तण,

    दर दर लग्गी धुंमां घत्तन, औखी घाट पुचाए पत्तण,

    शामे वासते

    हुन मैं मोयी बेदरदा लोका, कोयी देयो उच्ची चड़्ह के होका,

    मेरा उन संग नेहुं चिरोका, बुल्ल्हा शहु बिन जीवन औखा,

    जांदा पास ते ।२।

    मघ्घर

    दोहरा-

    मघ्घर मैं कर रहियां सोध के सभ उच्चे नीचे वेख

    पड़्ह पंडत पोथी भाल रहे हरि हरि से रहे अलेख

    मघ्घर मैं घर किद्धर जांदा, राकश नेहुं हड्डां नूं खांदा,

    सड़ सड़ जिय प्या कुरलांदा, आवे लाल किसे दा आंदा,

    बांदी हो रहां

    जो कोयी सानूं यार मिलावे, सोज़े-अलम थीं सरद करावे,

    चिख़ा तों बैठी सती उठावे, बुल्ल्हा शौह बिन नींद ना आवे,

    भावें सो रहां ।३।

    पोह

    दोहरा-

    पोह हुन पुछूं जा के तुम न्यारे रहो क्युं मीत

    किस मोहन मन मोह ल्या जो पत्थर कीनो चीत

    पानी पोह पवन भट्ठ पईआं, लद्दे होत तां उघड़ गईआं,

    ना संग मापे सज्जन सईआं, प्यारे इशक चवाती लईआं,

    दुक्खां रोलियां

    कड़ कड़ कप्पन कड़क ड्राए, मारूथल विच बेड़े पाए,

    ज्यूंदी मोयी नी मेरी माए, बुल्ल्हा शौह क्युं अजे ना आए,

    हंझू डोहलियां ।४।

    माघ

    दोहरा-

    माघी नहावन मैं चल्ली जो तीरथ कर सम्यान

    गज्ज गज्ज बरसे मेघला मैं रो रो करां इशनान

    माघ महीने गए उलांघ, नवीं मुहबत बहुती तांघ,

    इशक मुअज़्ज़न दित्ती बांग, पड़्हां नमाज़ पिया दी तांघ,

    दुआईं की करां

    आखां प्यारे मैं वल्ल तेरे मुक्ख वेखन दा चाअ,

    भावें होर तत्ती नूं ताअ, बुल्ल्हा शौह नूं आण मिला,

    तेरी हो रहां ।५।

    फग्गन

    दोहरा-

    फग्गन फुले खेत ज्युं बण तिन फूल सिंगार

    हर डाली फुल्ल पत्तियां गल फूलन दे हार

    होरी खेलन सईआं फग्गन, मेरे नैन झलारीं वग्गण,

    औखे ज्युंद्यां दे दिन तग्गन, सीने बान प्रेम दे लग्गण,

    होरी हो रही

    जो कुझ रोज़ अज़ल थीं होई, लिखी कलम ना मेटे कोई,

    दुक्खां सूलां दित्ती ढोई, बुल्ल्हा शौह नूं आखो कोई,

    जिस नूं रो रही ।६।

    चेत

    दोहरा-

    चेत चमन विच कोइलां नित्त कू कू करन पुकार

    मैं सुन सुन झुर झुर मर रही कब घर आवे यार

    हुन की करां जो आया चेत, बण तिन फूल रहे सभ खेत,

    देंदे आपना अंत ना भेत, साडी हार तुसाडी जेत,

    हुन मैं हारियां

    हुन मैं हार्या आपना आप, तुसाडा इशक असाडा खाप,

    तेरे नेहुं दा शुक्या ताप, बुल्ल्हा शौह की लायआ पाप,

    कारे हारियां ।७।

    वैसाख

    दोहरा-

    बसाखी दा दिन कठन है जो संग मीत ना हो

    मैं किस को आगे जा कहूं इक मंडी भा दो

    तां मन भावें सुक्ख बसाख, गुच्छियां पईआं पक्की दाख,

    लाखी घर लै आया लाख, तां मैं बात ना सक्कां आख,

    कौतां वालियां

    कौतां वालियां डाढा ज़ोर, हुन मैं झुर झुर होईआं होर,

    कंडे पुड़े कलेजे ज़ोर, बुल्ल्हा शौह बिन कोयी ना होर,

    जिन घत्त गालियां ।८।

    जेठ

    दोहरा-

    जेठ जेही जोहे अगन है जब के बिछड़े मीत

    सुन सुन घुन घुन झुर मरूं जो तुमरी येह परीत

    लूआं धुप्पां पौंदियां जेठ, मजलिस बहन्दी बागां हेठ,

    तत्ती ठंडी वग्गे पेठ, दफ़तर कढ्ढ पुराने सेठ,

    मुहरा खाणियां

    अज्ज कल्ल्ह सद्द होयी अलबत्ता, हुन मैं आह कलेजा तत्ता,

    ना घर कौंत ना दाना भत्ता, बुल्ल्हा शौह होरां संग रत्ता,

    सीने कानियां ।੯।

    हाड़

    दोहरा-

    हाड़ सोहे मोहे झट पटे जो लग्गी प्रेम की आग

    जिस लागे तिस जल बुझे जो भौर जलावे भाग

    हुन की करां जो आया हाड़्ह, तन विच इशक तपायआ भाड़,

    तेरे इशक ने दित्ता साड़, रोवन अक्खियां करन पुकार,

    तेरे हावड़े

    हाड़े घत्तां शामी अग्गे, कासद लै के पातर वग्गे,

    काले गए ते आए बग्गे, बुल्ल्हा शौह बिन ज़रा ना तग्गे,

    शामी बाहवड़े ।१०।

    सावन

    दोहरा-

    सावन सोहे मेघला घट सोहे करतार

    ठौर ठौर इनायत बसे पपीहा करे पुकार

    सोहन मलेहारा सारे सावन, दूती दुक्ख लग्गे उट्ठ जावण,

    नींगरा खेडन कुड़ियां गावन, मैं घर रंग रंगीले आवण,

    आसां पुन्नियां

    मेरियां आसां रब्ब पुचाईआं, मैं तां उन संग अक्खियां लाईआं,

    सईआं देन मुबारक आईआं, शाह इनायत आखां साईआं,

    आसां पुन्नियां ।११।

    भादों

    दोहरा-

    भादों भावे तब सखी जो पल पल होवे मिलाप

    जो घट देखूं खोल्ह के घट घट दे विच आप हुन भादों भाग जगायआ, साहब कुदरत सेती आया,

    हर हर दे विच आप समायआ, शाह इनायत आप लखायआ,

    तां मैं लक्ख्या

    आखर उमरे होयी तसल्ला, पल पल मंगन नैन तजल्ला,

    जो कुझ होसी करसी अल्ल्हा, बुल्ल्हा शौह बिन कुझ ना भल्ला,

    प्रेम रस चक्ख्या ।१२।

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