बारहमाहा
अस्सू
दोहरा-
अस्सू लिखूं सन्देसवा वाचे मेरा पी ।
गमन किया तुम काहे को जो कलमल आया जी ।
अस्सू असां तुसाडी आस, साडी जिन्द तुसाडे पास,
जिगर मुढ्ढ प्रेम दी लाश, दुक्खां हड्ड सुकाए मास,
सूलां साड़ियां ।
सूलां साड़ी रही बेहाल, मुट्ठी तदों ना गईआं नाल,
उलटी प्रेम नगर दी चाल, बुल्ल्हा शहु दी करसां भाल,
प्यारे मारियां ।१।
कत्तक
दोहरा-
कहो कत्तक कैसी जो बण्यु कठन सो भोग ।
सीस कप्पर हत्थ जोड़ के मांगे भीख संजोग ।
कत्तक ग्या तुम्बन कत्तन, लग्गी चाट तां होईआ अत्तण,
दर दर लग्गी धुंमां घत्तन, औखी घाट पुचाए पत्तण,
शामे वासते ।
हुन मैं मोयी बेदरदा लोका, कोयी देयो उच्ची चड़्ह के होका,
मेरा उन संग नेहुं चिरोका, बुल्ल्हा शहु बिन जीवन औखा,
जांदा पास ते ।२।
मघ्घर
दोहरा-
मघ्घर मैं कर रहियां सोध के सभ उच्चे नीचे वेख ।
पड़्ह पंडत पोथी भाल रहे हरि हरि से रहे अलेख ।
मघ्घर मैं घर किद्धर जांदा, राकश नेहुं हड्डां नूं खांदा,
सड़ सड़ जिय प्या कुरलांदा, आवे लाल किसे दा आंदा,
बांदी हो रहां ।
जो कोयी सानूं यार मिलावे, सोज़े-अलम थीं सरद करावे,
चिख़ा तों बैठी सती उठावे, बुल्ल्हा शौह बिन नींद ना आवे,
भावें सो रहां ।३।
पोह
दोहरा-
पोह हुन पुछूं जा के तुम न्यारे रहो क्युं मीत ।
किस मोहन मन मोह ल्या जो पत्थर कीनो चीत ।
पानी पोह पवन भट्ठ पईआं, लद्दे होत तां उघड़ गईआं,
ना संग मापे सज्जन सईआं, प्यारे इशक चवाती लईआं,
दुक्खां रोलियां ।
कड़ कड़ कप्पन कड़क ड्राए, मारूथल विच बेड़े पाए,
ज्यूंदी मोयी नी मेरी माए, बुल्ल्हा शौह क्युं अजे ना आए,
हंझू डोहलियां ।४।
माघ
दोहरा-
माघी नहावन मैं चल्ली जो तीरथ कर सम्यान ।
गज्ज गज्ज बरसे मेघला मैं रो रो करां इशनान ।
माघ महीने गए उलांघ, नवीं मुहबत बहुती तांघ,
इशक मुअज़्ज़न दित्ती बांग, पड़्हां नमाज़ पिया दी तांघ,
दुआईं की करां ।
आखां प्यारे मैं वल्ल आ तेरे मुक्ख वेखन दा चाअ,
भावें होर तत्ती नूं ताअ, बुल्ल्हा शौह नूं आण मिला,
तेरी हो रहां ।५।
फग्गन
दोहरा-
फग्गन फुले खेत ज्युं बण तिन फूल सिंगार ।
हर डाली फुल्ल पत्तियां गल फूलन दे हार ।
होरी खेलन सईआं फग्गन, मेरे नैन झलारीं वग्गण,
औखे ज्युंद्यां दे दिन तग्गन, सीने बान प्रेम दे लग्गण,
होरी हो रही ।
जो कुझ रोज़ अज़ल थीं होई, लिखी कलम ना मेटे कोई,
दुक्खां सूलां दित्ती ढोई, बुल्ल्हा शौह नूं आखो कोई,
जिस नूं रो रही ।६।
चेत
दोहरा-
चेत चमन विच कोइलां नित्त कू कू करन पुकार ।
मैं सुन सुन झुर झुर मर रही कब घर आवे यार ।
हुन की करां जो आया चेत, बण तिन फूल रहे सभ खेत,
देंदे आपना अंत ना भेत, साडी हार तुसाडी जेत,
हुन मैं हारियां ।
हुन मैं हार्या आपना आप, तुसाडा इशक असाडा खाप,
तेरे नेहुं दा शुक्या ताप, बुल्ल्हा शौह की लायआ पाप,
कारे हारियां ।७।
वैसाख
दोहरा-
बसाखी दा दिन कठन है जो संग मीत ना हो ।
मैं किस को आगे जा कहूं इक मंडी भा दो ।
तां मन भावें सुक्ख बसाख, गुच्छियां पईआं पक्की दाख,
लाखी घर लै आया लाख, तां मैं बात ना सक्कां आख,
कौतां वालियां ।
कौतां वालियां डाढा ज़ोर, हुन मैं झुर झुर होईआं होर,
कंडे पुड़े कलेजे ज़ोर, बुल्ल्हा शौह बिन कोयी ना होर,
जिन घत्त गालियां ।८।
जेठ
दोहरा-
जेठ जेही जोहे अगन है जब के बिछड़े मीत ।
सुन सुन घुन घुन झुर मरूं जो तुमरी येह परीत ।
लूआं धुप्पां पौंदियां जेठ, मजलिस बहन्दी बागां हेठ,
तत्ती ठंडी वग्गे पेठ, दफ़तर कढ्ढ पुराने सेठ,
मुहरा खाणियां ।
अज्ज कल्ल्ह सद्द होयी अलबत्ता, हुन मैं आह कलेजा तत्ता,
ना घर कौंत ना दाना भत्ता, बुल्ल्हा शौह होरां संग रत्ता,
सीने कानियां ।੯।
हाड़
दोहरा-
हाड़ सोहे मोहे झट पटे जो लग्गी प्रेम की आग ।
जिस लागे तिस जल बुझे जो भौर जलावे भाग ।
हुन की करां जो आया हाड़्ह, तन विच इशक तपायआ भाड़,
तेरे इशक ने दित्ता साड़, रोवन अक्खियां करन पुकार,
तेरे हावड़े ।
हाड़े घत्तां शामी अग्गे, कासद लै के पातर वग्गे,
काले गए ते आए बग्गे, बुल्ल्हा शौह बिन ज़रा ना तग्गे,
शामी बाहवड़े ।१०।
सावन
दोहरा-
सावन सोहे मेघला घट सोहे करतार ।
ठौर ठौर इनायत बसे पपीहा करे पुकार ।
सोहन मलेहारा सारे सावन, दूती दुक्ख लग्गे उट्ठ जावण,
नींगरा खेडन कुड़ियां गावन, मैं घर रंग रंगीले आवण,
आसां पुन्नियां ।
मेरियां आसां रब्ब पुचाईआं, मैं तां उन संग अक्खियां लाईआं,
सईआं देन मुबारक आईआं, शाह इनायत आखां साईआं,
आसां पुन्नियां ।११।
भादों
दोहरा-
भादों भावे तब सखी जो पल पल होवे मिलाप ।
जो घट देखूं खोल्ह के घट घट दे विच आप आ हुन भादों भाग जगायआ, साहब कुदरत सेती आया,
हर हर दे विच आप समायआ, शाह इनायत आप लखायआ,
तां मैं लक्ख्या ।
आखर उमरे होयी तसल्ला, पल पल मंगन नैन तजल्ला,
जो कुझ होसी करसी अल्ल्हा, बुल्ल्हा शौह बिन कुझ ना भल्ला,
प्रेम रस चक्ख्या ।१२।
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