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महाभारत युद्ध का वर्णन

सबल सिंह चौहान

महाभारत युद्ध का वर्णन

सबल सिंह चौहान

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    अभिमनु घेरे आय सब, मारत अस्त्र अनेक।

    जिमि मृगगण के यूथ महं, डरत केहरि एक।।

    लैके सूल कियो परिहारा। वीर अनेक खेत महं मारा।।

    जूझी अनी भभरि कै भागे। हंसिके द्रोण कहन अस लागे।।

    धन्य धन्य अभिमनु गुनआगर। सब क्षत्रिन महं बड़ो उजागर।।

    धन्य सहोद्रा जग में जाई। ऐसे वीर जठर जनमाई।।

    धन्य धन्य जग में पितु पारथ। अभिमनु धन्य धन्य पुरुषारथ।।

    एक वीर लाखन दल मारे। अरु अनेक राजा संहारे।।

    धनु काटे शङ्का नहिं मन में। रुधिर प्रवाह चलत सब तन में।।

    यहि अन्तर बोले कुरुराजा। धनुष नाहिं भाजत केहि काजा।।

    एक वीर को सबै डरत हैं। घेरि क्यों रथ धाय घरत हैं।।

    बालक देखु करि यह करणी। सेना जूझि परी सब धरणी।।

    दुर्योधन या विधि कह्यो, कर्ण द्रोण सों बैन।

    बालक सब सेना बधी, तुम सब देखत नैन।।

    यह कहि कै दुर्योधन आये। शब्द वीर आगै ह्वै धाये।।

    क्षत्री घेरो अभिमनु रन में। मानहुं रवि आच्छादित घन में।।

    लै के खड्ग फरी गहि हाथा काट्यो बहु क्षत्रिन को माथा ।।

    अभिमनु धाइ खड़ग परिहारे। सम्मुख ज्यहि पावै त्यहि मारे।।

    भूरिश्रवा बाज दश छांटे। कुंवर हाथ को खड़गहि काटे।।

    तीन बाण सारथि उर मारे। आठ बाण तें अश्व संहारे।।

    सारथि जूझि गिरे मैदाना। अभिमनु वीर चित्त अनुमाना।।

    यहि अन्तर सेना सब धाये। मारु मारु कै मारन आये।।

    रथ को खैंच कुंवर कर लीन्हें। ताते मारु भयानक कीन्हें।।

    अभिमनु कोपि खम्भ परिहारे। यक यक घाव वीर सब मारे।।

    अर्जुनसुत इमि मारु किय, महावीर परचंड।

    रूप भयानक देखियतु, जिमि जम लीन्हें दण्ड।।

    क्रोधित होइ चहूं दिशि धाये। मारि सबै सेना बिचलाये।।

    यहि विधि किये भयानक भारत। साहस धन्य धन्य पुरुषारथ।।

    ऐसी मारु खम्भ सों कीन्हें। दश सहस्र राजा बध लीन्हें।।

    मारि सबै राजा बिचलाये। कर लै गदा कुरूपति धाये।।

    शत बान्धव नृप संगहि आये। अरु अनेक राजा मिलि धाये।।

    चहुं दिशि महारथी सब घेरे। क्षत्री सबै वीर बहुतेरे।।

    नाना अस्त्र सबहिं परिहारे। निकट जाहिं दूरि ते मारे।।

    दुर्योधन कहं देखन पाये। गेह खम्भ अभिमनु तब धाये।।

    जुरे वीर क्षत्री बहुतेरे। खम्भ घाव ते बधेउ घनेरे।।

    जब नरेस के निकटहिं आये। द्रोण गुरू दश बाण चलाये।।

    गुरू द्रोण अति क्रोध कै, मारे बाण अचूक।

    कुंवर हाथ को खम्भ तब, काटि कियो दो टूक।।

    खम्भ कटे अभिमनु भे कैसे। मणि बिनु फणिक विकल जग जैसे।।

    क्रोधित भये सहोद्रानन्दन। चरण घात कै तोरेउ स्यन्दन।।

    रथते कूदि कुंवर कर लीन्हे। चका उठाय रणहिं शुभ कीन्हे।।

    चका कुंवर कर शोभित कैसे। हरि कर चक्र सुदर्शन जैसे।।

    रुधिर प्रवाह चलत सब अङ्गा। महा शूर मन नेकु भङ्गा।।

    गहि कै चका चहूं दिशि धावै। जेहि पावै तेहि मारि गिरावै।।

    दुर्योधन पर चका चलाये। गमा रोपि कुरुनाथ बचाये।।

    क्षत्री घेरि लगे शर मारन। जुरे आइ केते हथियारन।।

    दुस्सासनसुत गदा प्रहारे। अभिमनु के शिर ऊपर मारे।।

    जूझे कुंवर परे तब धरनी। जग महं रही सदा यह करणी।।

    धन्य धन्य सब कोऊ कहै, कुंअर रहौ मैदान।

    पै गुरु द्रोण मलीन मुख, कहें बचन परिमान।।

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