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Sufinama

इक गोपाल संग मम जाई । बस्यो नृपति ह्वै सोइ पुर छाई ।।

रत्नकुंवरि बाई

इक गोपाल संग मम जाई । बस्यो नृपति ह्वै सोइ पुर छाई ।।

रत्नकुंवरि बाई

MORE BYरत्नकुंवरि बाई

    इक गोपाल संग मम जाई बस्यो नृपति ह्वै सोइ पुर छाई ।।

    हम कहँ छौंड़ि भयो सो न्यारे ताही बिनु सब भये दुखारे ।।

    तुम लशकरिये भूप उदारा कत पूछत हम जात गँवारा ।।

    सुनि यादव कछु मन बिहँसाना तुम ब्रजवासी हौ हम जाना ।।

    जिनको तुम भाषत गोपाला उनहीं को यह कटक रिसाला ।।

    अब दुख मेटहु भेंटहु तिनते गयो ग्वाल हरि-कटकहि सुनते ।।

    तिनकहँ आगम सगुन बनायो कछु अनंद ह्वै है मन आयो ।।

    ग्वालहिं आवत रहे निहारी गदगद कठ सकत सँभारी ।।

    दूरहिं ते बोल्यो गोपाला मनमोहन आये नँदलाला ।।

    जिन बिन सब ब्रज भये दुखारे आये इहँ प्रान-पियारे ।।

    सुनि गोपिन नहिं परत पत्यारो कहँ ऐसो है पुण्य हमारो ।।

    सुनत नंद-नैनन जल छाये ऐसे भाग कहाँ हम पाये ।।

    लोग लोग सब पूछत सारे कहँ उतरे प्राणन के प्यारे ।।

    सुनतहिं यशुमति ह्वै गई बौरी ता ग्वालहिं पूछत उठि दौरी ।।

    आये श्याम सत्य कहु भैया मोहिं दिखावहु नेक कन्हैया ।।

    निज लालन को कंठ लगाऊँ दुसह विरह को ताप नसाऊँ ।।

    कह अब गहरु करत वेकाजहि भेंटहु वेगि सकल ब्रजराजहि ।।

    तब ऐसे भाष्यो नँदराइ अब हरि होंहि ब्रज की नाईं ।।

    माणिन खचित बैठत सिंहासन चँवर छत्र कर गहे खवासन ।।

    अतिहि भीर नृप वास पावें द्वारहि ते बहु फिरि फिरि जावें ।।

    छत्रपतिहि छरियन विलगावत तहँ हमसब की कौन चलावत ।।

    छपन कोटि यदु छाड़ि सगाते क्यों मानै धायन के नाते ।।

    कोउ कह ऐसे कैसे जैहैं। हमकहु लखि हरिमनहिं लजैहैं ।।

    कोउ कह मणि आभूषण पहिरे अंबर वर विचित्र रँग गहिरे ।।

    कोउ कह हम तो ऐसहि जाहीं अब तो कछु बनिआवत नाहीं ।।

    हरि को देखि परम सुख पैहैं ता अनुचर कर मारहु खैहैं ।।

    कोउ कह हम नीके भुज परि हैं भे राजा तो का धौं करि हैं ।।

    करत मनोरथ कोउ मन माही कोऊ खोज लेन उठि जाहीं ।।

    कहत परस्पर मुदित गुवाला अब तो फिरि आये गोपाला ।।

    इक कह अब गोकुल लै जैहैं हमते बहुरि जान कहँ पैहैं ।।

    कोउ नाचत है दै कर तारी बहुविधि करत कुलाहल भारी ।।

    एक एकन ते देत बधाई मानहुँ सबन गई निधि पाई ।।

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