गुरु के चरन कमल चित राखूँ
आठ सिद्धि नव निधि सब नाखूँ
सकल पदारथ गुरु पग माहीं
गुरु पग परसे सब दुख जाहीं
गति मति पलटे गुरु पग परसे
गुरु पग परसे त्रिभुवन दरसै
गुरु पग परसे ब्रह्म विचारै
गुरु पग परसे माया छाँड़े
गुरु पग परसे योग जुगंता
गुरु पग परसे जीवन मुक्ता
गुरु पग परसे बंधन छूटें
मोह ममता की फाँसी टूटै
गुरु पग परसे हरि पद पावे
रहै अमर ह्वै गर्भ न आवै
'चरनदास' पग महिमा भारी
बार बार 'सहजो' बलिहारी
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