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Sufinama

तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर

मुल्ला ग़व्वासी

तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर

मुल्ला ग़व्वासी

MORE BYमुल्ला ग़व्वासी

    चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर

    है ग़वास इस दौर में बेनज़ीर

    सो यूं जोहराँ काड़ ल्याता है बहार

    जो मुल्क हिन्दुस्ताँ में एक ठार

    कहते है जो था कोई सौदागर एक

    वजाहत मने पाक सीरत मे नेक

    उत्तम भाग का भोगनी बख़्तवार

    घर उसका सो था बन्दर के सार

    जेते उस ज़माने के सौदागराँ

    उते उसके आगे थे जूँ चाकरॉ

    किया था खुदा यूँ उसे सरफ़राज़

    जो थे सातो दरिया उपर उसके झाज़

    शहॉ पास नई कुच सो उस पास था

    ............. नौंरतन गंज नव रास था

    सदा ताज़ा था ज़ौक़ का बाग़ उसे

    वले फर्ज़ंदाँ नर्ई सो था दाग़ उसे

    केतक दिवस पीछे सो वो दाग़ ज्यों

    खुदा के करम ते हुआ बाग़ ज्यो

    हुआ घर मने एक फर्ज़न्द उसे

    सो वैसा हुआ आज लग नर्ई किसे

    निशान्याँ सआदत के ले ठार ठार

    हुआ जग में इज़हार यूसुफ़ के सार

    घर उसका झमकने लग्या नूर ते

    सितारा चल आया मगर दूर ते

    केतक दिवस कूँ जूँ हुआ वो जवॉ

    सो वर्ई बाप हंगाम उसका पछा

    नन्ही एक महबूब महताब से

    लताफ़त में निर्मल निछल आब से

    धुँड़ा तुरत पैदा किया, कर ना देर

    किया लाख खुशियाँ सेती कारे ख़ैर

    केतक दिन कूँ घर में ते जूँ वो जवाँ

    निकल भार आया रूक परा

    सो बाज़ार धोरे सैर करता चला

    नज़र हर तरफ़ साफ़ धरता चला

    सुआ....देखा एकस के हात में

    जो मरगोलता है वो हर बात में

    ज़बॉ पर उसे याद है सब कुरान

    फ़साहत पर उसके हुआ शादमान

    हवस दिल में अपने धरा बेशुमार

    लिया मोल सूआ दिये हुन हज़ार

    खुशी सूँ जो आया अपने मन्दिर

    उठा बोल सूआ के दस्तगीर,

    नुमाइश में गरचे मूठी भर हूँ मैं

    वले इल्म के फ़न में बेहतर हूँ मैं

    जहाँ लग जहाँ में हैं अहले कलाम

    हैं हैराँ मेरे बचन ते तमाम

    .... हूनर कुच जो है मुज मे एक

    कहूँगा तिसूँ खोल अजमा के देक

    के जैसा अँगै होनेहारा है काम

    सकत है जो अब खोल बोलूँ तमाम

    के दो तीन दिन के पीछे देखियाँ

    के आता है एक कई सेती कारवाँ

    जिनन पास अम्बर है इस शहर बीच

    खरीद करनहार है सब वही

    वो ना आय लग हो खबरदार तूँ

    वो अम्बरसो ले मोल एक बार तूँ

    मेरी बात सुन होवेगा कामयाब

    है इसमें तुझे फ़ायदा बेहिसाब

    हो ख़ुशहाल इस बात ते वो जवॉ

    जिनन पास अम्बर अथा पा निशॉ

    लिया मोल एक घर सते बेशुमार

    लेजा अपने घर में भराया अम्बार

    एकाएक ऐसे में वो कारवाँ

    सो आया वो सूआ कहे तेऊं वाँ

    तलब था सो अम्बर लगे घूँडने

    नई पाये कर्ई शहर में किस कने

    वो अम्बर बज़ा चौंगुने मोल सूँ

    दिया उनकूँ सोने केरे तोल सूँ

    चढ़ा हात उस उस वक़्त लिये माल उसे

    नज़र सो भरी फिर गया ख़्याल उसे

    जोहर एक दिन मने शौक़

    चला फेर बाज़ार कूँ नौजवॉ

    देखा एक मैता कूँ मिठबोल खूब

    उसे बी लिया होर दिया मोल खूब

    मुरस्सा के खुश एक पिंजरे में छोड़

    रख्या ल्याके सूआ के नज़दीक जोड़

    वले अवल सूआ में कुछ होर था

    हुनर के बलाग़त मे वरज़ोर था

    के हर बात में बाइबारत नवी

    कहे हर घड़ी वो हिकायत नवी

    जो नागाह बातॉ में उस जवाँ सात

    कह्या जो दरिया की तिजारत की बात

    सो भोती आया उमस उसके तर्ई

    दरिया के सफ़र का सो कर अज्म वर्ई

    लिया बोल दिल मे जो बहतर है जाँऊ

    तमाशा देखूँ माल ले कुछ मैं आऊ

    ग़नीमत है फुरसत करूँ क्या दिरग

    के दुनिया किसी सूँ नहीं एक रंग

    वफ़ा उम्र के तर्ई तो चन्दा नर्ई

    सदा बन मने फूल खन्दा नर्ई

    अपस मे अपै फ़िक्र कर इस बज़ा

    तवक्कुल सते दिल सो रख बर क़ज़ा

    ले तोते को मैना को वर्ई हात मे

    सो औरत कन आया उसी सात मे

    गले ला मुहब्बत सूँ गुज़रान बात

    वो दोनो पंखिया कूँ सो दे उसके हात

    हो मुस्तैद घर में ते बाहर हुआ

    सो बेगी सते वर्ई मुसाफ़िर हुआ

    सफ़र में लग्या मर्द कूँ जो दिरंग

    सो औरत कै तर्ई घर लग्या सख़्त तंग

    ना गमता देखत वक़्त हैरॉ हुई

    मुसल्लम अपस में परेशॉ हुई

    जो थी घर में झाड़ी सो जा वाँ चड़ी

    हलू खोल खिड़की निझाती खड़ी

    सो ऐसे मने एक छबीला जवान

    परी उसको देखे तो देवे परान

    बड़े दबदबे सात आता देखी

    सो अपने तरफ़ कुछ निझाता देखी

    जो था मर्द का इश्क़ मन में अव्वल

    सो देखी उसे सो गया वो निकल

    निझाया रूख उसका वो चंचल जवान

    सो मार्या वहीं इश्क़ का तेज बान

    जो उस बान की घावकारी लगी

    अन्तर तई दोनों में यारी लगी

    भीतर ते सो इन जिवड़ा वारती

    उमंग सात उन .......................

    याकयक उस धन को बहार आया जाये

    उस जवॉ को पैस कर जाया जाये

    बहर हाल उस इश्क़ फॉदे में मेल

    चला अपना मन्दिर ताज़ी को ठेल

    बोला एक बुड्ढी मकरज़न को शिताब

    दिया उस टके खुश किया बेहिसाब

    कहा खोल राज़ आपना उसके घेर

    सो मिन्नत पै मिन्नत किया फेर फेर

    जो वो मकरज़न उस सुधन के घर आई

    वो महताब सा मुख जो उसका निझाई

    दिवानी हो उसकी वजाहत उपर

    बली जाये कर उसके क़ामत उपर

    बला ले हलूँ वई रिझाने लगी

    बचन करके सो चिल्लाने लगी

    बिछड़ मर्द सूँ रही सो वो हाल देक

    खुशामद सते खाई हैफ़े टुक एक

    बहर हाल बातॉ सो उस नर्म की

    मुहब्बत मने जवॉ के गर्म की

    सो जूँ मोम उसके पिघल ध्यान में

    कही उस बुड्ढी कूँ हलू कान में

    के दिन आशिकाँ का सो है पर्दा दर

    रैन हुए तो आऊँगी उसके घर

    ग़वासी उत्तम रैन काली दराज़

    यकीं जान है ऐन आशिक़ नवाज़

    रैन ते तो है दिवस रोशन सही

    बले काल सो आशिक़ा का यही

    जगा जोत सूरज उत्तम ज़ात का

    जो कर सैर सब दिन समावात का

    डूब्या जा के मग़रिब के जुल्मात का

    लगे दीपने ज्यों दिवे रात में

    सो वो बेबदन नार चन्दर बदन

    हलू लाजती आई मैना किधन

    कही यूँ जो तू है शीरीं ज़बाँ

    नहीं कोई तुज बाज महरम यहाँ

    नन्हीं अक़्ल में एक गई हूँ जान

    बहर हाल कर मुज तूँ ख़ातिर निशान

    लग्या दिल मेरा एक नवे यार सूँ

    भूले हैं नैन उसके दीदार सूँ

    कहॉ ते मैडी पौ मैं जा चढ़ी

    जो मुँज उपर ऐसी बाज़ी खड़ी

    दरीचा तूँ इस बाब का मुज पो खोल

    मिल उस यार सूँ क्यूँ गहूँ मुज कूँ बोल

    सुनी वो जो मैना सुनने की बात

    बजाँ यूँ उठी बोल कर उसके सात

    के मोहिनी तू हैं नारी अशील

    सटाय नक़्श तूँ अपने सीने से छील

    तेरा मर्द होवे त्यों तुजे कोई होय

    के तुज नार कूँ ना सजे मर्द दोय

    के है पाक दामन तूँ नारियॉ में आज

    बड़ाई बड़ी तुज है सारियाँ में आज

    वो शारूँ के मूँ ते सुने यो बैन

    नसीहत पर उसकी ग़ज़ब में हो ऐन

    सटे भुर्ई पै वई पंख उसके मरोड़

    सो मैना दई थरथरा जिव कूँ छोड़

    के वॉ ते बजाँ आई तूती के पास

    मगर आवे उसके किधन ते विरास

    सटया प्रीत का जो तपना उसे

    कही खोल सब हाल अपना उसे

    वो तोता पछान उसके मन का खयाल

    होगा बुरा अक़्ल अपना सँभाल

    कहा गर उसे मना करता हूँ मैं

    तो मैने के नमन मरता हूँ मैं

    भला है जो अब क़ाल से पेश आऊँ

    उसीकी वर्ई ख़याल में मेल जाऊँ

    वफ़ा ज़ाहर उसको दिखलाऊँ कुच

    रखूँ शर्म साहिब की उस ठाँव कुच

    तअक़्कुल कर उस धात उस नार सूँ

    हुआ बाद अज़ाँ पेश गुफ़्तार सूँ

    कहा यूँ के शहपरी नेक नाम

    तूँ आक़िल होके यों ग़लत की तमाम

    वो सार बस्तू गर चे हमजिन्स थी

    लेकिन कहाँ अक़्ल उसको यती

    जो अपड़ा दे तुज बेग मक़सूद कूँ

    लेवे बाँट तेरे जियाँसूत कूँ

    के थी सख़्त कोहन तूँ उसके सात

    ना कहना अथा अपने दिल की बात

    छुपा राख तूँ आज ते राज़ यो

    मबादा सुने कोई आवाज़ यो

    के हर क्यों करूँगा तेरा काम मैं

    कर बातिन अपना परेशान यों

    ना कई तूँ मुजे छोड़ कुछ बुधकची

    करन जायगी तू ना होसे सची

    बज़ाँ होवेगा क़ज़िया तेरा बुरा

    हुआ था जो उस एक रानी केरा

    कहता हूँ सुन वो क़ज़िया धन, तुजे

    के ख़ातिर मने याद है वो मुजे

    सुन्या था सो सौदागर एक बेनज़ीर

    अथा उसकने एक तोता गँभीर

    वफ़ादार, खुशफ़ाम, शीरीं कलाम

    हुनर ग़ैब के था समज में तमाम

    करे घर की सब दीदबानी वही

    देवे नेको बद की निशानी वही

    जो एक दिन वो सौदागर नामदार

    चल्या करने सौदागरी एक ठार

    लगे दिवस कई बेग पाया आन

    थी जान उसकी औरत लगी तलमान

    जवाँ उसके बाड़े में था एक खूब

    लगाई छुपा इश्क़ उसे देख खूब

    मँगे जीव तो घर बुला भेज उसूँ

    करे ज़ोक फूलाँ सूँ, भर सेज कूँ

    वो तोता जो कुच उन करे सो जाय

    वले मुँह पै औरत के हरगिज़ लाय

    मुंडी शहपराँ में वो गिर्दान कर

    निजा नींच त्यों चुप रहे जान कर

    जो आया वो सौदागरे नेक नाम

    ख़बर घर की सुआ से पूछा तमाम

    कने काज कुच था कह्या उसके सात

    वले नर्ई किया फ़ाश औरत की बात

    केतक दिन कू वो राज़ ज्यों भार थे

    हुआ मर्द पर ज़ाहिर एक ठार थे

    दिल उसते वहीं तोड़ लेने लग्या

    वो नादान नाजान दो दिला लाई

    के तोता ईच थे यो बला मुज पो आई

    कह्या है यही राज़ सब खोल उसे

    किया घात मुझ पर यही खोल उसे

    जो पकड़ी वहीं ...... तोता उपर

    सो पिजरे में ते काड़ उपाड़ उसके पर

    छजे तल दिये मेल ज़ायॉ उसे

    हुआ उस बड़ा दुख ना पाया उसे

    जो पूछ्या उसे मर्द तोता कहाँ

    वो मिठबोल ज्ञानी फिरावाँ कहाँ

    के दिसता है पिंजरा सो खाली मुँजे

    ज़वाँ मकर सूँ वर्ई वो औरत फिरांई

    बिल्ली खाई कर ल्याको वो पर दिखाई

    वो पर देक खा लाक अफ़सोस मर्द

    गुस्सा दिल में उबल्या सुन्या सूर मर्द

    क़बाहत सूँ आज़ार दिये बेशुमार

    वही घर ते औरत कूँ भाया बहार

    जो वो भार कध घर ते निकली थी

    गली होर बाज़ार निकली थी

    भूकी होर प्यासी नंगे पाँव सात

    यकेली निराधार कोई संगात

    निकल शहर ते जो यकट भार आई

    अथा एक रोज़ा सो उस ठार आई

    कही याँ तो नई आदमी का निशान

    बग़ैर अज़ ज़मीं होर बग़ैर आसमान

    यो रोज़ा सो है मठ किसी ख़ास का

    के दिसता है यो ठार इख़ालस का

    भला है जो मैं उस वली खास सूँ

    लगा दिल करूँ खिदमत इख़ालस सूँ

    के शायद मुज उपर मेहरबॉ होवे

    अज़ब क्यो जो यूँ मुश्किल आसॉ होवे

    छिनक नीर अँजवांस सफ़ावार ठाँव

    रही दुःख सो गदॉ ले हाथ पाँव

    वो तोता जो पिंजर मे ते भार काड़

    निकाली जो थी उसके शाहपर वो पाड़

    ना ज़ाया हो कर्ई सब बलायॉ थे बाँच

    रह्या था वतन करके अव्वल ते बाँच

    देखा जो उसे झाड़ ऊपरोल थे

    उतर आया वर्ई हरी डाल थे

    छुप्या जाके रोज़े केरा एक ठार

    हलू आसरे थे उठया यों पुकार

    के मोहिनी यों जो तू आई है

    जो अख़लास हमना सते लाई है

    तेरे सीस पर है सो सब केस काड़

    भवाँ होर पलकॉ के ले बाल उपाड़

    मुजावर हो यॉ बैस चालीस दिन

    किसी बाब दिल कूँ ना करले संगन

    तेरा मर्द तुज सूँ मिलनहार है

    तुझे फ़तहयाबी इसी सार है

    सुनी यों जो आवाज़ दर हाल वो

    सटी काड़ सब तन पो के बाल वो

    हुआ बेवजा रूप जाँ का तहॉ

    पलको, सरको कट्या, ना भवाँ

    रही झीज सब तन सो भालू के सार

    निकल आया मूँ तंबालू के सार

    बड़ी सख़्त दिसने लगी ऐब ते

    हुई मस्ख़रागी बड़ी ग़ैब ते

    वो तोता बज़ाँ आसरे ते निकल

    निझा उसकूँ यॉ वाँ ऊपर होर तल

    अधिक तेज़ कॉटे ते बी सख़्त बोल

    लग्या बोलने तार्ई मिनकार खोल

    के बेकटर धन वो तोता हूँ मैं

    निकाली जो थी बेगुनाह मेरे तैं

    मेरे हक़ पो तूँ कुच बी नेकी की

    खुदा का हुआ खेल कैसा देखी

    वो खाने मँजे आर तुजको आई

    पूछया मर्द तो कई बिल्ली उसको खाई

    फली वो बदी याँ वो तेरी अथी

    हुआ वोई हासिल जो पेरी अथी

    पुकार्या सो था मैं ईच तुज कू यहाँ

    सकत नर्ई तो मुर्दे को है यूँ कहाँ

    रंजानी तो तू क्या हुआ मुंज कूँ

    अझू बी वफ़ादार हूँ तुंज सूँ

    नमक लई है तेरा मेरी ज़ात में

    अधिक शर्मिन्दा हूँ मैं इस बात में

    यक़ीन जप मैं वई बन्दा हूँ क़दीम

    करनहार हूँ काम फिर मुस्तक़ीम

    सकत है जो अब मर्द सूँ तुज मिलाऊँ

    तुजे होर उसे एक दिल कर दिखाऊँ

    किये हैं जो कर्ई ला को चाड़े यो काम (?)

    करूं शर्मिन्दे उनको सिर ते तमाम

    दिये धीरक उसे इस वज़ा बेहिसाब

    उडया बाते दरहाल तोता शिताब

    सो उतर्या क़दीम अपने घर में जा

    वली नेमत अपने कूँ देखा निझा

    किया बेनिहायत हुआ उसके तर्ई

    कहा यों साहब, वो तोता हूँ मैं

    जो पिंजर में ते खींच कर भार काड़

    बिल्ली खाई थी मुज कूँ फाड़ फाड़

    सुन्या ज्यों वली नेमत इसते यो बात

    अजायब लग्या उसके तर्ई धातधात

    सो बोल्या अझों तो क़यामत है दूर

    हुआ क्यों कना फिर तेरा ज़हूर

    कह्या तब के बहुगुनी नामदार

    तेरा नांव रोशन अछो ठार ठार

    जो अपनी प्यारी सुन्दर नार कूँ

    ग़ज़ब बेसबब कर सटया भार कूँ

    रही है पकड़ गोशा भी, कर्ई ना जा

    मेहरबा हो वो वली उस उपर

    मुँज अपनी दुआ सात फिर ज़िन्दा कर

    दिये भेज तुज कन देव कर गवाह

    के है पाक तोहमत तो वो बेगुनाह

    उठे हैं दन्दे उसपो तूफ़ान ले

    वो सब झूठ है याँ ते तू जान ले

    जधां लग तेरे घर मने मैं अथा

    देख्या कधीं कुच उसते ख़ता

    चल उस पाकदामन तेरे ठार कूँ

    वफ़ादार हो वफ़ादार सूँ

    लगी सच उसे सू दिल को सूआ की बात

    उसी तिल चल्या वर्ई शिताबी संगात

    देखत अपनी औरत कूँ लाया गले

    सो बाहाँ केरा हाँस भाया गले

    कते वज़ा सूँ उज्रख़ाई किया

    लेजा घर उसे बादशाही दिया

    और तोता उसे काम आया है ज्यों

    तुजे काम मैं आनहारा हूँ यों

    गर मोहिनी इश्क़ सूँ तुझ है काम

    अंदेशा कर काम कर ले तमाम

    शिताबी भली तुज नको कर दिरंग

    हो उस नूर के शमा की तू पतंग

    परेशा हो फेर चित ग़म सो लाई

    निकल दिवस आया सो जाने पाई

    'ग़वासी' उत्तम रैन काली दराज़

    यक़ीन जान है ऐन आशिक़ नवाज़

    रैन थे तो है दिवस रोशन सही

    वले काल सो आशिक़ का यही

    मुहब्बत लगाने जो लगती है साफ़

    कर यार का वादा हर्गिज़ खिलाफ़

    जो इसी बात पर वो चंचल छन्द भरी

    जो रूख़ यार के घर को जाने करी

    यकायक सबा कर उजाला हुआ

    उसे वो उजाला सो जाला हुआ

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