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Sufinama

मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला

गुलामनबी हैदराबादी

मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला

गुलामनबी हैदराबादी

MORE BYगुलामनबी हैदराबादी

    ग़रीब एक शख़्स था सहरा नशीन

    किस रफ़्तार तकलीफ़ था मर्द दीन

    था दिन कतें उसकू आवो ताम

    हुआ रात को खाब बिल्कुल हराम

    कही एक शब उसी औरत उसे

    मियाँ हक़ देवे ये हालत किसे

    बदन पर है बस धूप का जामा साफ़

    हुआ चाँदनी का निहाली लिहाफ़

    हुआ क़ुर्स माह क़ुर्स नान बासफ़ा

    हो नज़दीक लीजे बगल में छिपा

    नज़र आती रोटी की सूरत नही

    मिला ऑसुओं का पानी यकीं

    सबी ख़ीश-बेगाना हमसे खफ़ा

    जो थे बावफ़ा हो गये बेवफ़ा

    अगर मॉगिये किससे जाकर नमक

    तो कहते है मर जा बेहूदा बक

    कहाँ तक मैं अब फ़क़रो फ़ाक़ा सहूँ

    नहीं मुज में बर्दाश्त ता चुप रहूँ

    ये बातों कूँ सुन सुन दिया यू जवाब

    के फ़रमाये हज़रत रिसालत माब

    क़िनायत अजब गंज हैं पायदार

    फ़ना जिसको हरगिज़ नही दोसदार

    बीबी उसे कर खुशी से कबूल

    के खुशनूद जिससे खुदा और रसूल

    खफ़ा हो कहे सुन छोटे मियॉ

    क़िनायत का बस नाम है बर जवॉ

    क़िनायत के तो हर्फ़ सीखा तमाम

    अमल उसका आता नहीं मर्द खाम

    किनायत तो गजे रवॉ है यकीं

    तुजे हाय रजे रवॉ है यकी

    ये तकरार को छोड़ होशियार हो

    अब इस नींद कू तुज के बेदार हो

    शिताबी से कुछ क़ूत की फ़िक्र कर

    ये बाती से नई फ़ायदा रख ख़बर

    कहा क्या है मतलब बीबी तो बोल

    मक़ासिद के मोती शिताबी से रोर

    कही बेखबर कुछ तुजे नई खबर

    के है पास कर बादशाह दादगर

    के बन्दा है जिस दर का हातम सखी

    बखीलो को जग से किया है नफ़ी

    हुए बहरो कान उसकी बखशीश से साफ़

    करे कोई तक़सीर हो सब माफ़

    करम का किया उसने गयत बुलन्द

    गया जो के मुफ़लिस हुआ अर्जमन्द

    दर उसका यकीं किब्ल हाज़ात है

    खॉ क़ाफिला रोज़ रात है

    अरब और अजम तुर्को ताजिक रूम

    है सारे जहॉ में सखावत से धूम

    वो बहरे करम हैं आबे हयात

    हुए ज़िन्दा इन्सा हैवा नबात

    शहन्शाहे बगदाद है वो करीम

    चला जा शिताबी कर तरसो बीम

    करे पल में मुफ़लिस कतें वो अमीर

    है उफ्तादगा का सदा दस्तगीर

    मिलेगा अगर उससे होगा तू शाह

    करे एक नजर जावे हाल तबाब

    कहा किस सबब से मैं जाऊँ वहॉ

    मिले किस बहाने से शाहे शहा

    कोई चाहे हीला मिलने कतै

    बजुज़ वास्ता मिलना कुछ खूब नंई

    करे ता अल्लाह का नायब करम

    हमारा सभी जाय ये दर्दो ग़म

    कहे हम हैं दरवेश बरगश्त हाल

    हमारी है सूरत बशक्ले हाल

    हमें काहे को चाहिए कुछ सबब

    हमारी बनी शक्ल सारी तलब

    लेकिन तेरी ख़ातिर ये सूझी है बात

    के कोई इससे बेहतर नही तोफ़ाजात

    हमारी सबू में है पानी भरा

    बहुत अहतयाती से है वो धरा

    गढ़े में हुआ जमा बरसात से

    उसी में रखे हूँ छुपा रात से

    ये आब ऐसा कोई मकॉ में नही

    मकाँ क्या के बल्के जहॉ में नही

    हर एक क़तरा उसका है गौहर मिसाल

    के गौहर तो क्या बल्के कौसर मिसाल

    बहुत तोहफ़े शीरीं वो खुशबू है आब

    चमक में है ज्यों चश्म-ए आफ़ताब

    ख़ज़ाना भरा निसदे शाहे जहॉ

    लेकिन ऐसा पानी मिलेगा कहॉ

    ये हदिया ले जा बादशाह वास्ते

    वो रोशन लक़ा मेहरोमा वास्ते

    इसीसे वो खोलेगा रोज़ा यकीं

    शिताबी से ले जा रह अब कहीं

    नहीं थी वो औरत कतैं ये खबर

    बहर जारी है मिसले शकर

    ये बाताँ कतै मर्द ने जब सुना

    गुले शौक़ बाग़े खुशी से चुना

    कहा सच कही तूने बीबी ये बात

    मिले शाह को ऐसा कब तोहफ़ाजात

    नमद में सबू के तैं जल्द से

    है जाना मुझे दूर और पर बसे

    वो तैयार की ले रवाना हुआ

    इनायते ख़ातिर बहाना हुआ

    मुसल्ला बिछा उसकी ज़न बानियाज़

    मिनका रब्बे सलाम दुआ दर नमाज़

    इलाही सलामत ये पानी के नई

    तू पहुँचा शह ज़िन्दगानी के तंई

    के रोने से औरत के बा दर्दे सोज़

    वो दारुल ख़िलाफ़त को पहुँचा बरोज़

    देखा एक दरगाह अर्शें इस्तबाह

    भरे है वो बख़्शीश इनाम से वाह

    सभी तौह के अहले हाज़त वहॉ

    है हाज़िर मिले न्यामते बेकरॉ

    मुसल्माँ वो काफ़िर है उस जा तमाम

    सबों पर है ईनाम क्या खासो आम

    सुलेमाँ से हाज़िर है लेता वो मोर

    सखावत से हर एक के दिल में शोर

    जो हैं अहले ........जवाहर लिये

    जो हैं अहले माना सरायत लिये

    गर्ज़ दोनो अक़साम के तालिबॉ

    इनायत से मामूर थे साहबा

    यही दम बदम चौतरफॉ से निदा

    हो जिस शै का मुहताज आवे गदा

    अरब आया जिस वक्त बरबादे ख़ैर

    नक़ीबो ने देखी के है शख़्स ग़ैर

    खुशी से चले आये है उसके पास

    मिले मेहरबानी से नेको असास

    पछाने मतालिब कतैं बेमिक़ाल

    अता उनका था काम पेश अज़ सवाल

    लगे कहने उसे वजे उल अख़

    कहॉ से तूँ आया तुझे क्या तलब

    कहा मैं हू मुफ़लिस गदा और ज़बूँ

    बनाओगे वजे उल अरब तब बनू

    नज़र करती है बस तुम्हारा जमाल

    मेरे दिल को हासिल है फ़रहत कमाल

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