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Sufinama

मसनवी हुस्न व दिल

शैख़ ज़ुहूरुद्दिन हातिम

मसनवी हुस्न व दिल

शैख़ ज़ुहूरुद्दिन हातिम

यक किस्सा नादिर सुनो इन्सान का

बोलता हूँ यो बड़ी-सी शान का

यों सुन्या हूँ शहर मशरिक का नक़ल

बादशाह उस शहर म्याने था अक़ल

हक़ ने जब बादशाह वहा का किया

दौलत न्यामत उसे बेहद दिया

जो कुछ उसकू चाहिए सो सब अथा

लेकिन उसके घर में फरज़न्द था

हक़ सूँ मगता था दुआ सुबह शाम

आरजू फ़रज़न्द का रखता था मुदाम

हक़ ने अपना फ़ज़ल जब उस पर किया

यक पिस्र मक़बूल तब उसकू दिया

शह ने उसका नाम राखा करके दिल

चाद होर सूरज था उसके आगे ख़जिल

परवरिश लिए प्यार सू करने लगे

कोई बाक़ी नहीं रहा उसके अगे

जब बरस चौदा मने आया

इल्म होर हिकमत हुनर सब पाया

एक दिन अपने सँगातियों के सगात

खेलने में यों कह्या कोई ऐसी बात

जो पिये आबे हयात इन्सान अगर

ता क़यामत लग जिये इस जग भितर

मौत से तहक़ीक़ वो पाये नजात

यक ज़र्रा पीवे अगर आवे हयात

बादशाह ने सुन कर बात यो

बादशाहे अक़्ल के संगात

बोलने लाग्या मुझे आवे हयात

गर मिले तो मौत सूँ पाऊँ नजात

दिल मने मेरे हुआ है यो ख़याल

जिवना उस बाज है मुज कूँ मुहाल

बादशाहे अक्ल ने जब यो सुना

सुन के दिल की बात तब सर कूँ धुना

बोल उठा मुद्दत पछे हक़ ने मुझे

फ़ज़ल कर अपना दिया हैगा तुझे

भोत मेरे जिव कूँ था तुज सूँ आधार

बाज मेरे मुल्क रहेगा बरक़रार

अब किया है दिल मने तू यों फिकर

को मिला आवे हयात इस जग भितर

इस फिक्र सू बादशाह की अक्ल आये

अपने सब अरकाने दौलत कूं बुलाये

ये हकीक़त सर बसर उन सूँ कह्या

सुन के सब मजलिस ताज्जुब हो रह्या

बोल उठे सारे नेका आवे हयात

शाहज़ादा दिल जो यो करता है बात

शाह के था नौकरों में यक बशर

उन उठा शह के आगे तसलीम कर

नाम उसका बोलते थे सब नज़र

हर जगह जाकर करता था गुज़र

बोल उठया शह सूँ हुकम गर पाऊँ मैं

हर वज़ा आवे हयात ले आऊँ मैं

जब नज़र सते सुन्या शह ने यो बात

बोलता हूँ लाऊँगा आबे हयात

आबरू की शह उसे खिलअत दिया

नज़र ने तसलीम कर कर लिया

भई मगा तबज़ी ? उत्तम ज़ात का

पोचने हारा अथा दिन-रात का

नाम उसका बोलते थे अख़्तियार

नजर कू बख्शया के उस पर सवार

नज़र ने रूख़्सत लिया शह सू जधॉ

शाहज़ादे दिल कन आया बाद अजॉ

दिल कूँ यो बोल्या शाहजादे मेरे

हक़ सते उमीद यों रखना मुदाम

हर वज़ा ते करके आऊगा यो काम

मैं लग आऊ तुमें रहना खुशहाल

और कुच रखना नको जिव में खयाल

ऐश इशरत में रहना आनन्द कर

मै लग आऊ करना कुच फ़िकर

ले के रूख़सत जब नज़र वहाँ ते चला

राह में कै भाँत का जंगल मिल्या

भई कितक दिन के जो आया यक काम कर

पाया उस ठौर बस्ती का निशान

उस मई के पास आया जब नज़र

यक क़िला देख्या उनें वाँ खूबतर

उस कतें क़िले दिलावर नाम था

ले ज़बर्दस्त उस जगा का काम था

नज़र ने देख्या क़िला कूँ इस वजाँ

दिल मने कीता फ़िक्र बादे अज़ाँ

तब नज़र लोगाँ कूँ पूछ्या उन तमाम

इस शहर के पादशा का क्या है नाम ?

ख़ल्क बोल्या शाह हिम्मत नाम है

यो क़िला रहने का उसका ठाँव है

तब नज़र कीता फ़िक्र यो दिल मने

हर वज़ा जाना इता शह के कने

क़िला में अय्यार हो बैठया नज़र

जा किया हिम्मत के मजलिस में गुज़र

ज्यों देख्या है शाह हिम्मत ने उसे

बोल उठया लोगाँ कूँ वेगाना दिसे

नज़र कूँ लेते पक़ड़ वैसे मने

जल्द उसकूँ ले गये हिम्मत कने

तब कहा हिम्मत ने उसकूँ हैवान

कौन है तूँ कॉ ते आया इस मकान

तब नज़र बोल्या मुसाफ़िर हूँ फ़क़ीर

यो हक़ीक़त है मेरी राह गम्भीर

तब कहा हिम्मत ने हम देवें निशान

पोंचनी मुश्किल भोत है उस मकान

तुज कू वा जाना भोत दुश्वार है

राह में उसके ख़तर बस यार है

नज़र बोल्या गर निशान मैं पाऊँगा

हर वज़ा अपस कू वॉ पोंचाऊँगा

तब कहा हिम्मत उसकूँ नज़र

किस वज़ा वॉ जा करेगा तू गुज़र

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