मोहिउद्दीन दर मनाक़ब हज़रत अब्दुल क़ादर
मोहिउद्दीन है पीर मुकम्मिल अव्वल
वल्याँ म्याँ अहैं सरदार अफ़ज़ल
मुबारक क़दम कूँ सब ले लियाँ मल
लिये खादे ऊपर अज़ जान होर दिल
मुअज्जम इसम अँगाली हमेशा
वलिया सब मिल किये है दर वज़ीफ़ा
करम उनका मदद जब तें न होवे
वली हरगिज़ विलायत कूँ न पावे
सखावत में जो कोई मुनकिर हुआ है
सज़ा पाकर कुफ्र में ओ मुआ है
अव्वल ओ मारफ़त हासिल न पावे
दोयम तार के दिल गुमराह होवे
सोयम जब मौत आवेगा उसे पेश
होवे सूरत में ओ तबदील सरकश
चहारम उस कतें सकरात जब होय
ज़बान बन्द होयगा सब ओ अकल खोय
मोहिउद्दीन साहब के अहैं पीर
दोनों जगह अथै वली ओ गंभीर
मुबारक़ शहर मग़रिब थे मसकन
वलियाँ में सब अथै अफ़ज़ल हर यक मन
जो पड़ते दर्स जब थे ख़ुर्द साल
मस्जिद के दरमियान तख़्ती कतें ले
हए पैदा जो कोई पक पीरी नूरानी
न था दुनियाँ में उनका कोई सानी
खड़े ओ धूप में मस्जिद के उनकी
देखे मीरा अथे तख़्ती कतें ले
खड़े रहे ले वक़्त हरगिज़ निराले
मेहरबान हो के तब पीरी नूर अपनी
कहे आये तिफ़्ल मेरे नूर ऐनी
जो यक सोज़न कूँ लाओ होर तागा
सिओ मेरे जुब्बे में यक-दो टाँका
करामत कश्फ़ हक़ तुमना देवेगा
भोत कुछ न्यामताँ दर रोज़े उक़बा
दुआ हो तुज भी हक़ पास उनके ले
मरातब देके सब इर्शाद कीते
देखे सब मेहरबानी हो शिगुफ़्ता
कहे मीराँ तुमें हैं कौन ऐ शाह
तुमरे नाम बुजुर्गवार क्या है
खुदा के वास्ते मुज से गिना है
नबी, अल्ला, खिज़र हूँ मैं कहे तब
बहुक्मे हक़ सो लाया हूँ मरातब
तुमें प्यारे है हक़ चाहता है तुम कू
मरातब देखने भेज्या है हम कूँ
मीराँ अबू सईद मग़रबी तब
कहे तौहीद क्या है मुंज कहो अब
रहो मरयाद बोले तुम हमेशा
करेगा फ़ज्ल सूँ ई बात आगाह
होकर ग़ायब किये उस बात कूँ बोल
मोअम्मा नहीं कहे इस बात कूँ खोल
हुआ उस रोज़ से दिल जानिबे अल्ला
लिया जागा मोहब्बत इश्क़े अल्ला
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