Sufinama

फूलबन

MORE BYइब्न-ए-निशाती

    थी रानी शाह की यक सतबन्ती नाँव

    चन्द्र सूरज कधीं देखी थी छाँव

    कधीं दरपन में जो मुख देखे जाय

    देख अपने नयन की पुतलियाँ सरमाय

    कधीं पकड़े कँगोई जो खोले बाल

    हया माने हो कगोई को देवे डाल

    वो सत की सतवन्ती औतार नारी

    सताँ का मना.............. रख भारी

    कधीं नज़र गिर जो पड़ती थी नयन तल

    अपस के खींचती थी रुख पो आँचल

    जे कोई है बाग़वा इस फूल बन का

    चमन लाता है यूँ ताज़े सुखन का

    कते यक शहर मशरिक़ की कदन था

    जो उसका नाव सो कंचन पटन था

    कंचन का खूब उसे चौगिर्द था कोट

    कंचनपुरी कूँ उस कंचन के थे कोट

    हिसार उसका दरया के था खारी

    दिसे खन्दक वो दरया तिस बन्धारी

    कंचन की तिस पो थी तोपाँ जँबूरी

    कंचन बुरजो पो कंचन की कंगूरी

    कंचन के थे कंकर कंचन के कुंज

    ...................................................

    कंचन कू काल बॉधे थे हर ठार

    कंचन के थे कंचन की दीवार

    कंचन तिस ऊपर तोप ज़रब ज़न

    कंचन मग़रबिया (?) थीं होर फ़लाखन

    कंचन की थी ज़मीन कंचन के झाड़ा

    घरा कंचन के कंचन के किवाड़ा

    जिदर देखे बी कंचन था कंचन था

    उसते नाम उस कंचन पटन था

    बनी ऊची थी वा जो चौफेर दिवाला

    अलंग नासिक रहते थे वा ला इहा

    जो होवे जब सूरज तिसका नद के पार

    दिसे सब रात के आलम में आसार

    गगन के तल की ऐसा शहर नादिर

    नहीं देखे थे अखिया के मुसाफिर

    अजब तासीर था वा की हवा का

    सदा हंगाम था नश्वनुमा का

    बिखरे तो ज़भीं पर वाँ के कांठे

    थे फूलते पल में फूलाँ के दो फाटे

    सूकी लकड़ी अगर कोई ले को गाड़े

    दिल करे सबर हो साखाँ कूँ काढ़े

    चित्र अगर कोई महला में लिखाये

    हरकत में चित्र दरहाल आवे

    अगर एक क़तरा उस नीर का ले

    जो आजमाने के तंई दरिया मैं डाले

    पकड़ तासीर उस क़तरा सूँ .........जा

    अजब नहीं था मीठा होवे सो दरिया

    सदा खुशहाल थे सब लोग वा के

    थे खातिर जमाँ वाँ को साकिनान के

    जिता लेवे भी इशरत कम था वॉ

    अथा सब कुछ वले एक ग़म था वाँ

    खुशी का मेगरा ------- वाँ बरसता

    अथा इस धात सूँ वह शहर बसता

    ।। कंचन पटन का बादशाह की तारीफ ।।

    अथा इस शहर में एक नामवार शाह

    सुलक्खन भागवन्ता नेकतर शाह

    शहाँ में जग के उसकू सरवरी थी

    जगत के सरवरो में बरतरी थी

    इताअत में थे उसके ताजदारा

    थे उसके हुकम में सब शहर यारा

    कोई सानी उसे रू-ए-ज़मीं पर

    सब उसके ज़प्त में था बहर होर बर

    कोई आवे ज़माने के सितम सूँ

    सुनने कूँ लावे दिल की नाद उसकूँ

    फ़लक के जुल्म ते उस ठिकन कोई आवे

    सदा जिव की नमन वो परवरिश पावे

    कोई हाता के सीपियाँ कू पसारे

    कई मतलब किये पुर मोतिया सू सारे

    सिफ़त बारीकी नमने जग में था सूर

    अथा बानी नमन हो ज़िक्र मशहूर

    जगत था बाग़ शह ज्यों बाग़वाँ था

    हमेशा ताज़ा उससूँ सब जहाँ था

    जो कुछ धरना सो सब धरता उठा वो

    समै इस धात सूँ करता अथा वो

    ।। दर मदह बयान अदल पादशाहे कश्मीर ।।

    हिकायत एक उसते मैं सुना हूँ

    ज़बाँ सूँ फूल उसके मैं चुन्याँ हूँ

    के यक कोई पादशाह कश्मीर में था

    मुकम्मिल अक़्ल होर तदबीर में था

    कते थे उसके तंई सुलतान आदिल

    था कोई सहाबती में उस मुकाबिल

    रजा बिन शाह के कोई हँसने जो जावे

    हया के हात तिस टुकड़े करावे

    था कुदरत जिनके बुलबुला कूँ

    .................................................

    बेगाने पर नैन नरगिस जो खोले

    दिलावे बाव के भोत उसकूँ झकोले

    रज़ा लेकर सटें अब्रे वहाराँ

    कली में बाग़ के मोतिया के हाराँ

    सबा कू नंई सकत था जो हर एक सूँ

    चमन ते ले परागन्दा करे बू

    लगाया था अपस दिल के चमन में

    शह अपने सीने के फूल बन में

    सर्व क़द उनके क़द के नौनिहाल्यॉ

    समन रूपाँ की कालाँ कलालाँ

    चमन उस तख़्त था होर फूल था ताज

    वो ऐसी धात सूँ करता अथा राज

    ।। मजलिस अरास्तने पादशाह काश्मीर दर बाग़ आउर्दन

    बाग़बाने कुल ।।

    मुनज्जिम अक्ल का देखा ताज़ा तक़्वीम

    किया है बात सूँ उस वक़्त तरक़ीम

    निकल कर मेहरबा है कई शिकम ते

    हो यूनिस की नमन वफ़ूरे गम ते

    दिया है बहरे फ़ैज़ आलम को दुचन्दॉ

    हुए फूला शुगुफ्ता होर हैराँ

    हज़ारा साज़ केते मुअम्मा संजी

    लग्या भी कोपल्या काली करंजी

    उठी थी बन मने फूला की महकार

    खोले थे फूल लागे कई हर एक ठार

    कलिया लादी गर्ई .................... निशान्यॉ

    दिसे याकूत की हो सुरमेंदान्यॉ

    ।। ज़बान कुशादाने बुलबुल पेशे पादशाह अहवाले

    खुद शरह दादस्त ।।

    दिलासा शाह सूँ बुलबुल जो पाया

    ज़बाँ मतलब की बाता सूँ अछाया

    लग्या कहने अव्वल गुज़रे सो बाताँ

    बिरह एक तैं सो यक केता सो घाताँ

    मेरा था बाप सौदागर खुतन का

    था परवा उसे गंज मालो धन का

    बड़ा था भोत सबाँ सौदागरा में

    अथा मशहूर सालम बन्दरॉ में

    अथा मशहूर सब सौदागरा सूँ

    कते थे कारवा-सालार उसकूँ

    भरे थे अशरफिया मोहराँ के अंबार

    ढेगॉ सूँ थे रूपे होर दीनार

    मनाँ सूँ था रूपा खंडिया सूँ सोना

    थे लाख्यॉ करोड़ अशरफिया करोड़ सू होन्ना

    मतबख अतलस मखमल फिरंगी

    .........सग़लात होर ताश नीम रंगी

    सितम दो दिन जो काडया था कडावा

    पड़ी थी बन्दरॉ सालिम पड़ावा

    कधीं सोदा लेकर आवे अरब का

    कधीं शीसा लेवे जलब का हलब का

    कधीं सौदा ले जावे रूम होर शाम

    कधीं जाता बंगाले पर ते आसाम

    कधीं बस्त सूँ जावे अस्फ़रायन

    कधीं जावे सफ़ाहान ते मदायन

    कधीं तबरेज ते सरवान जावे

    कधीं हमदान सूँ काशान आवे

    कधीं अरमन सूँ जा ...........तूस

    कधीं उतरे जो यक मंजिल अछे रूस

    कधीं अछता मुकाम उसका सरन्दील

    कधीं शीराज़ अछता होर अर्दबील

    वतन कर चन्द रोज़ अछता खुतन में

    कधीं दूकान खोली जा यमन में

    कधीं शीराज़ सूँ जाये दमावन्द

    कधीं जात बुखारे सूँ समरकन्द

    कधीं काबुल पो ते लाहोर जाता

    कधीं मॉडू कधीं माहोर जाता

    तिजारत के भोत सो रास्तों वो

    गया एक मर्त्तबा गुजरात कूँ वो

    अथा मैं इस सफ़र में उसके सँगात

    घड़ आया सो क्या कहूँ उस ठार पर घात

    मेरा सो वक़्त थी अव्वल जवानी

    नवी अपड़ी थी मुँज कूँ शादबानी

    जवानी के बरस सो बीस लग भी

    कहे हैं बाज़रूरत ता चहल साल

    परियाँ कूँ ही समज बेलाड़ का हाल

    ।। दर तारीफ़ दुख्तर ज़ाहद ।।

    अथी इस ठार एक ज़ाहिद कू बेटी

    फ़रिश्ताखू था तिस आबिद कू बेटी

    चतर चंचल सरग-कवल सुहानी

    ना उसके कोई था सूरत में सानी

    चन्द्र आधा कहूं क्यो मैं पिशानी

    चन्द्र हर्गिज नंई ऐसा नूरानी

    भौंहो कूँ क्यों कहूँ मेहराब भी कर

    कहा है नूर मेहराब उनके ऊपर

    कहूँ क्यों उसकी पलका कू सो तीरा

    नहीं हैं कोई तीरा के असीरॉ

    नयन को नरगिसा कहना है नासाज़

    चमन की नरगिसा में का है वो नाज़

    नयन नरगिस..................सो है ज़ोरी

    कहा है नरगिसा में लाल डोरी

    कली चम्पे की थी या सके को बोल्या

    छबी उसकी यो मैं नासिक के लोल्यॉ

    कहू रूख़्सार कू क्यों उसके लाला

    हर एक लाले के दरम्यानी है काला

    अधर कूँ लाल ते क्यो कर कहू मैं

    लाल में नाजुकी नंई कहू मैं

    दसन कूँ क्यो कहू आनारदाने

    अथे इस पर दीवाने होके दाने

    थुड़ी की सार जग में सेब कॉ भी

    यूँ इसमें इश्क़ का आसेब कॉ भी

    जोबन कू क्यो कहूँ मैं कुब्ब नूर

    किने भूल बेल तिस आता है अमॉ

    करन का फूल के गेंदा कूँ कुरबॉ

    कहा है करवरा में इसके आसार

    सोन है कड़ोड़ॉ कू इस पै वार

    कमर कूँ क्यों कहूँ इसके यो शर्ज़ा

    कमर को किये सामने शर्ज़ा भी हर्ज़ा

    कोई इस चाल कूँ हस कर रहा है

    हँसों............पै हँस हँस कर कहा है

    मैं सर ते पाव लग इस मोहिनी का

    के था त्यों क्या सिफ़त कर नंई सकूँगा

    हवस उस देखने का मुजकूँ अपना

    तमाशा दिसे कूँ मेरा दिल सर उचाया

    प्यारे का प्रीत प्यारा लख्या सो

    प्रीत का ठंड होर बारा लग्या सो

    अवल था हाल कुच वाँ कुच हुआ होर

    प्रीत की चपेटी लागी भोत रोज़

    दरिया होके लगे नैना उबलने

    लग्या जिब शमा होके जलने

    जो चाल आती अथीं वो चुलबुली मुज

    तो होती थी सीने में गुदगुदी मुज

    धुआँ आहाँ का सर पर बदली छाब

    .....................................................

    कली में हुआ दिल तंगो नाशाद

    हुआ टुकड़े गरेबां फूल करी याद

    प्रीत की आग में तन जल हुआ राक

    सबूरी का मेरा दामन हुआ चाक

    सो इस औतार पर मन रात बदली

    तबियत की मेरी सब धात बदली

    लगे कहने हरेक कोई बना को बहाना

    बदी जाता फ़लाने का फ़लाना

    जो उसकूँ देखने का मुँज हुआ ज़ोक़

    जो आया दिल में मेरे उबल शौक़

    हर एक तिसल जानूँ चम्बक की कली कू

    हलू छुप कर देखू उस छलनी कूँ

    सीने में दम कूँ अपने साद लेकर

    कमर कूँ अपने दामन बाँद लेकर

    देखे कोई त्यो आहिस्ता डग डग

    हलूँ इस काँद ते उस उस काँद कूँ लग

    कर इस चन्दन बरन के घर तरफ़ मूँ

    .............................................तारे बखेरूँ

    नित उठ कर ग़म सूँ में वो........जा

    धुँवे सूँ आह के बाँदूँ कलावाँ

    करूँ हर शब में मैं नैन सूँ आब पाशी

    उसासा सूँ करू हर..................फ़राशी

    केतन दिन कूँ पछे उमीद का सूर

    मेरी बख़ता की नैनाँ कूँ दिया नूर

    नसीबाँ मजलिसो जो आखिर हुए यार

    मेरे ताले केरा आया सो एक भार

    यकायक झाक कर देखे मुँज नार

    मेरी होर उसकी दीदे हुए चार

    नज़र का बाज़ार या सूँ................

    हुआ मैं हुस्न के उसके रह्या ठग

    किया सो दश्त का आहू निकल कर

    पडया उस मुख के गुलशन में फिसल कर

    उसे देख इश्क़ सू मेरा बहल्या दिल

    हम दोनो के दिल रहे एक मिल

    हुई सो मेहरबाँ आखिर परी ज़ात

    करू मैं जिस रविश वो भी करे याद

    कधीं मैं सर ते चलता जाऊँ उस घर

    कधीं वो भी रखे पग मुँझ नैन पर

    कधीं चल जाऊ मैं उसके क़दम गिन

    कधीं मेरा करे वह घर भी रोशन

    कधीं कोई ना सुने त्यों बात करते

    .................बाता इशारत सात करते

    कधीं देखे यकायक दीदार

    पसार आँख्याँ पलक को ना पलक मार

    बहर हाल इस रविश सूँ मिल हमें दो

    मुहब्बत सूँ रहते थे एक दिल हो

    यकायक यो खबर ज़ाहिद को अपड़ाई

    यो उसकी..................................खाई

    नही कुच खूब जारी का है चाला

    है जारीखोर का मूँ जग में काला

    नही आई है जारी ख़ुश खुदा कू

    नहीं भाई है जारी मुस्तफाँ कूँ

    नहीं जारी अली ज़रा क़बूले

    बुजर्गा कोई नंई जारी पै फूले

    लिख्या है सो अपड़ता है लेकिन

    रहता नंई जीव रोवे होर तपे बिन

    लग्या ज़ाहिद ख़बर सूँ तलमलाने

    अपस में अब पछाडयाँ ग़म सूँ रवाने

    पडया सो शर्म का गौहर निकल कर

    दरया ग़ैरत (?) केरा आया उबल कर

    ले देख आबरू जग में नसीबाँ

    वो जाय सवारी किये आगे जेबाँ

    कहीं है जीव प्यारा है शर्म

    खुदा सब का रखनहारा है शर्म

    होकर सब खल्क की कसरत सूँ तन्हा

    किया हुजरे में हो ख़िलवत सो तन्हा

    खड़ा हो एक पाँव पर हो सरो का धात

    पसारा अपने दो हस्त ज्यों डाल के पात

    मँग्या सूरत हमारी होने तब्दील

    ..............................................................

    थे रहमत के खोले दिन किवाडाँ

    खोले थे फ़ैज़ के उस ............किवाडाँ

    हुआ ज्यों तीर हो उसके सहर की

    सियर में सात अम्बर में गुज़र गई

    इजाबत की निशानी पर लगी सो

    क़बूलियत की पेशानी पर लगी सो

    रही है तूते मुज में दर्दनाकी

    किये नंई तूने उसकी सीना चाकी

    धरूँ मैं तूत-ए संबुल की नमन ताब

    नरगिस के नमन है तू ही बेख़ाब

    दुआ सूँ खत्म बुलबुल बात कूँ कर

    कहा यूँ मुख़्तसर इस बात सूँ कर

    कहू क्या मैं तुजे मालूम है सब

    मेरी सो बख़्त होर तेरी नज़र अब

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