यूसुफ़ जुलेखा
यो ओ है सौदागर ने आ युसूफ़ कूँ काड़ी बाँय सूँ
भायाँ बन्दा कर बेच किये कर काम दावा ........ सूँ
हो लिया राहगर क्यों कना उस किसे
जो यूसुफ़-सा होय रहनुमाँ यों जिसे
के यो राह ..दिस्या ओ हिसाब़
भूले बाट जो किये होये दूना लाब
यकायक सो यक कारवाँ नेकज़ात
संगीनी काफ़िला ले अपस के सँगात
मदीने तरफ़ सूँ तो ओ खुश लच्छन
मुता ले चल्या था मिश्र के कुधन
बिसर राज मारग उतर बाट पर
रह्या काफ़िला सब ओ पानी सूँ अड़
अकड़ जीब लब सुक सु किया था जुल्लाब
हर यक तन के मूँ में बहे था आब आब
जो इस धात जंग सुक्या ओ सब
नंई देखे तो देखो बिरहनी के लब
लगे ढूँढने पानी कतें ठार ठार
यकायक दिस्या ओ कुवा चक तिलार (?)
जो बादल की नमीं ने पिलाई सब कूँ आब
उने डोल लेकर सो दौडया शिताब
लगाया आपस अज़म का याने सोल (?)
सट्या उस कुएँ में तलब का सो डोल
तो जिब्रेल यूसुफ़ का वंई हात धर
तो बल लाये उस डोल के ले भीतर
कहे तूँ के है हुस्न का आफ़ताब
अता कर तूँ परगट यो आलम पो ताब
के डोने में जूँ है ओ फूलों की फाल
यो कॉसे में जो है आबे ज़ुलाल
के दर चक में ज्यूँ अमोलक रतन
सदफ़ में के ज्यूँ है ओ दुर्रे अदन
के जूँ दिलो के व्रज में हैं चन्दर
सो यूसुफ़ दिसे डोल के त्यों भितर
यकायक आया निकल कर ओ सूर
हुआ चक के चक्का अँधेरा सो दूर
उनें देक यूसुफ़ कूँ कर शाह मन
ले जा अपने डेरे में राखा जतन
जो यूसुफ़ के भायाँ इधर होर उधर
आये फिर के बी उस कुएँ के उपर
पुकारे ओ सब मिल कुएँ में शिताब
न थे उसमें यूसुफ़ न आया ज़वाब
जो उतर्या था ओ काफ़िला चारों धीर
तो ढूँडने लगे जा बजो फिर फिर
पकड कर कहे यो हमारा गुलाम
जो न्हाटया अथा वो चुका कर सो काम
यो यक ठार यूसुफ को पाये उनो
पकड़ने कूँ बेगी सूँ धाये उनों
यो खिदमत के करने में नंई है दुरुस्त
तो नींद का दिवाना व चलने को मस्त
जो हर काम कूँ, भेज देना शिताब
उपर वंई च रह कर न लिआबे जवाब
जो कुछ बस्त हवाले करें तो गँवाय
चुकाये काम कूँ होर खाने को आय
हमारा तो जिव उस सू बेज़ार है
तो बेज़ार सब बल्के सेज़ार है
अगर कोई लेवेगा तो देंगे हमें
जो कुछ दाम देगा लेंगे हमें
सुने सोच सौदागराँ ने तमाम
कहे बीच सदना (?) च है ख़ूब काम
जो अपने सूँ दिल यों ई च नंई जिसका साफ़
तो रखना उसे अक़्ल का है खिलाफ़
कमीं उसकी कर मोल तोड़े उनों
दिये बाद अजाँ दाम थोड़े उनों
चले लेको भायाँ ने थोड़े च दाम
सँभल सोच याने के दे कर गुलाम
कुएँ में सूँ काडया जिनें सट के डोल
बढ़ा कारवा उस कने थे ले मोल
अधिक देको बेगी सू कर दिल कूँ शाद
मिसर कूँ च याने चल्या धर मुराद
अजब लोग ओ कोई हैं बुध के कम
जो इन्सान देते हैं ले कर दिरम
जो पीछे आने की क्या कहूँ यो बात
दिये थोड़े दामाँ कूँ यूसुफ़ सी ज़ात
जहाँ में का धान ले आयें यक बार का
तो होये मोल यक उसके दीदार का
जिता गंज है यो ज़मीं के तल्हार
तो यक बोल पर ते सटूँ उसकूँ वार
जो सर्राफ़ होये सो परखे कंचन
जोहरी च होये तो बूजे रतन
जो आशिक़ का जिसकूँ अछेगा निशान
तो माशूक़ कूँ वांई च लेगा पछान
यो याकूब उसका ख़बरदार है
जुलेखा कूँ लेना सज़ावार है ।।
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