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Sufinama

तोहफ़तुल अहबाब और तोहफ़तुल निसा

मोहम्मद बाक़र आगाह

तोहफ़तुल अहबाब और तोहफ़तुल निसा

मोहम्मद बाक़र आगाह

MORE BYमोहम्मद बाक़र आगाह

    कहता था दो जहाँ का मौला

    टुकड़ा है मेरे ज़िगर का ज़ोहरा

    मैं खुश हू जो चीज़ खुश है

    नाखुश हूँ मैं जिसमें तुर्श है

    ज़ोहरा की फ़ज़ीलत शर्फ़ में

    यही है यो हदीस मुस्तफा सें

    राज़ी है खुदा खुशी से उसकी

    नाखुशी है भई नाखुशी से उसकी

    दुसरी है ख़बर भी मुस्तफा सूँ

    है फ़ातिमा सब ज़नान की खातून

    आती थी नबी के पास जब

    ला ला अथा असकू शह आगे हो

    हात उसका पकड़ जबी के ऊपर

    बोसा दे बिठाता उसकूँ सरवर

    होता था अगर नबी मुसाफ़िर

    करता था बिदा उसकू आखिर

    आता था अगर सफ़र से चल

    जाता अथा उसके घर कू अव्वल

    पूछा कोई आइशा को यक बार

    था किसके ऊपर नबी का लिए प्यार

    बोली के था फ़ातिमा के ऊपर

    उस शाह का प्यार सबसे अक्सर

    मर्दो में किस ऊपर अथा ले

    पूछा तो अली वले ऊपर के

    यक रोज़ नबी खुदा के प्यारे

    खातून के घर तरफ़ सिधारे

    था उसके ऊपर लिबास मोटा

    बाला से शुतर के

    देक नबी के चश्म भर आये

    खातून कू तब करम से फ़रमाये

    फ़ातिमा आज जो तु कर

    दुनिया के मुशफ़िकाँ के ऊपर

    जन्नत है सबा के रोज़ तुजकूँ

    जन्नत के ज़नान की है तू खातून

    करता था यक दिन बा ऐहसान

    खातून अली के सात बाता

    पूछा अली शाहे खल्क़ कते

    दोस्त भोत है तुज किन है

    फ़रमाये नबी के है मुजकू

    महबूब तेरा अली तेरे सूँ

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