मराहतुल हशर
इलाही हमारे पै हो मेहरबाँ
करम करके देना अपस का अयाँ
हमारे में नेकी कुच नही अमल
सो मू लेके क्या आये तेरे अगल
जो पूछेगा हमना हमारा हिसाब
सकल नर्ई है देने को एक भी जवाब
किये नहीं हमें आज लग काम कुच
उनके बी न दिसता सरजाम कुच
अगर तूँ करम ते करे मग़फ़रत
तो कीते हमारी भी है मासिअत
जो देवेगा हमना हमारे पै डाल
न होसी कदे बी हमारा निकाल
न हमना कूँ कर हशर में मुनफ़इल
के सारी खलायक़ में होवें खजिल
क़यामत में सरपोश कर सब गुनाह
के वाँ ते ही हमना कूँ तेरी पनाह
कते हैं के दो दिन है बसत में केवल
करम हक़ का होर अपने हों ता अमल
अमल होय तो भी करम है ज़रूर
करम नहीं तो है सब अमल में फ़ितूर
ये दोनो अगर है तो कुव्वत दुगुन
करम होर अमल जूँ सोना और सुगन
सुनो ज़िक्र उसी बात का कान धर
के मैं बोलता हूँ ज़बाँ खोल कर
हिसाबां किताबाँ यते दिन के सब
निपड़ जायगे पल में उस रोज़ तब
न मौकूफ़ रह जायगी यकती बात
ज कुच करके की है सो पावे बरात
जो दुनिया में मखफ़ी हो रह जायगी
वो उस रोज़ मैदान में आयगी
खलायक खड़े रहेंगे सब हक़ के पास
बड़ा मोहकमा होयगा आसपास
कते वक़्त लग कुछ न होवे जवाब
खड़े रहेंगे गर्मीं ते होकर कबाव
किता वक़्त गुज़रे पै हो अमर रब
मोहम्मद कूँ बेगी करो याँ तलब
इलाहीं तूँ परवर दिगारे जहाँ
तेरे सूँ दारोमदारे जहाँ
जगत का तूँ पैदा करनहार है
सच्चा साहबी का सज़ावार है
तेरे हात है कारसाज़ी की गत
ग़रीबा नवाज़ी की तुज है सकत
गुनहगार मैं होर तूँ है करीम
हूँ बीमार मै होर तूँ हकीम
करम सात हिकमत मेरी कर अता
के मैं पाऊ तुज मग़फ़िरत की शफ़ा
सदा कुव्वत अपस की इताअत करे
मुजे कुव्वत अपनी इबादत करे
घर अगर चला पलट अपस राह पर
मुजे ढिलमिला मत इधर होर उधर
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