मोहिउद्दीन नामा
मोहिउद्दीन सुल्तान सो पीर है
दुनिया दीन में ओ जहागीर है
वलियाँ में उसे बादशाही ख़तम
जिते सब वलिया पर है उसका क़दम
जिते ग़ौस होर कुतुब हैं यो खबर
लिए चाव सू आपने सीस पर
मंगे औलिया दान ईमान का
बजा ल्याय सब हुक्म सुलतान का
के मखदूम सैयद मोहम्मद सरवर
हुए टुक जो तेरे क़दम गिनते दूर
कहे मैं न ले सू न मुँज कूँ गिना
अव्वल का था अव्वली च येता है मना
क़दम का रिवाज़ तो उसे दूर है
येता की तो मजलिस है कुज और है
कहे बात सादा ता मखदूम ने
देखे खाव भी येक वैसे मने
के बैठे हैं जानो मुहम्मद नबी
शिफ़ाअत करनहार ओ अरबी
मोहिउद्दीन सुलतान क़ादर क़बूल
लड़े गोद में आको आले रसूल
मुबारक नर्ई पर फिर आवें क़दम
देखे उनपै इतना रसूल का करम
देखे ख़ाब सादात मख़दूम ने
उठे जाग कर बेग वैसे मने
देखे ख़ाब उठे जाग पाये निशान
किये दिल में याद लिए पछान
देखे ख़ाब इस धात का सरबर
तवाज़े किये तो नूर नाम पर
कहे कोई लेते हैं खादे ऊपर
वले मैं लिया आपने सीस पर
रैयत हैं सब गौंस इस शहर के
जिते कुतुब परिवार इस दास के
मोहिउद्दीन सुलतान है बादशाह
जिते औलिया कुतुब उसके गदाह
मोहिउद्दीन सुभान के प्यार का
ओ इश्क हो रब्बी के दीदार का
हिकायत भी है राबियाँ ते यहाँ
मोहिउद्दीन का सुन करामत अयाँ
जो बग़दाद शाह कू इनाअत हुआ
उठया शहर में ग़ल्बला नवा
जो आते है इस ठौर ग़ौस-उल आज़म
देखाते हैं अपने मुबारक क़दम
अथै शेख सना अव्वल ते वाँ
रहते थे मुरीदों सो करो नान मकान
ख़लीफ़े अथै सात सौ बिल यकीन
अतै सब खिलाफ़त पै कुर्सी नशीन
करामत सूँ भरपूर सब ख़ास थे
जिते सब मुर्शद के मिल पास थे
के जिस वक़्त दाखिल हुए दस्तगीर
सो बग़दाद के बीच अज़मत के पीर
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