दो जग मने मुँज कूँ अहे करतार मआज़
दो जग मने मुँज कूँ अहे करतार मआज़
बन्दा हूँ उसी का वही ठार मआज़
उम्मत हूँ मुहम्मद का करू शुक्र खुदा
तू है मुँजे जिस्म अहमदे मुख़्तार मआज़
पाया हूँ मुल्क-कोट उनन प्यार थे मैं
मुँज कूँ है सदा हैदरे कर्रार मआज़
पंजतन का मुँजे दास किया प्यार थे हक़
पंजतन है अज़ल थे मुँजे हर बार मआज़
अल्ला मुहम्मद अली होर बारा इमाम
यो सब अहँ कुतुबा के सो ऊपर मआज़
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