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मेराजनामा मय दीगर रसायल

मोमिन दकनी

मेराजनामा मय दीगर रसायल

मोमिन दकनी

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    निहायत समज का है हैरत मुकाम

    के याँ अकल कूँ दख़ल का नंई है काम

    अक्सर कोई समजने क्या बाताँ करे

    भूका खाली भाँडे में हातां करे

    ज्यादा नको कर तूँ तक़रीर में

    क़लम कूँ नको ल्या तूँ तहरीर में

    हम्द बेहद है उसे उसी सुभान को

    जो किया पैदा जिस्म और जान को

    दो जहाँ का ख़ालिक़ दायम है वो

    सब फ़ना आख़िर के तैं क़ायम है वो

    एक है और नर्ई शरीक़ दूजा उसे

    ग़ैर उसके नंई समझ बूजा किसे

    भई मुल्क सिजदा बशर को कब करे

    आदमी आदम को सिजदा कब करे

    ग़ैर हक़ के सिजदा किसको कर नको

    काफ़िर मुशरिक जो होकर मर नको

    देख हदीसाँ नंई तो सिजदा का मुकाम

    है इबादत का कुफ़र तहव्वुर हराम

    क्या करेंगे तुज ऊपर तकसीर तंई

    मर्द तेरा साहबे तदबीर नंई

    है दीवट ख़ाविन्द तेरा उल्लू की दुम

    बेइल्म हो दीन को करता है गुम

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