रिवायत और है यक है खूब नादिर
दो रावी उसके हैं अहले बसायर
जो मनबर शाहे दीनी सो कहे हैं
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के जब मैं सैर कर फिरता था अल पास
सो तब यक शख़्स आया है मेरे पास
कभूँ आँगीं नहीं देखा था हाशा
लगे करने कूँ मुज सें यह सुख़्न आ आ
अयाँ है तुकमूँ अब सोहबत की रग़बत
कहा मैंने न ............ .....हूँ सोहबत
कहे इस शर्त से ऐ नेक अवतार
ख़िलाफ़ इसमें न करना तुमें जिन्हार
जवाब उनकूँ भला बेहतर दिया हूँ
कहे बैठो यहाँ लग ग़ायब उसी बार
राह में यक बरस लग बैठ उस ठार
बरस पीछें मुजे आकर मिले हैं
घड़ी यक मुज कने बैठे रहे हैं
उठे है फिर के यों मुजकूँ कहे हैं
न जाओ यहाँ से जब लग आऊँगा मैं
बरस यक और भी ग़ायब रहे वो
बरस के बाद फिर आकर मिले सो
जगो पर आपके था मैं क़वी जो
मेरे बाजू से बैठे यक घड़ी वो
उठें मुज कूँ कहे तुमने न जाना
यहाँ लग ताके होये मेरा आना
रहे हैं और ग़ायब यक बरस तें
बरस गुजरे पै फिर आकर मिले हैं
ले आये दूद और नान अपने हमराह
कहे मैं ख़िज्र पैगम्बर हूँ वल्लाह
हुआ हुक्म खुदा जो तुम से मिल कर
यह दूद और नान खावे यक जगो पर
उसे खाकर दोनो फ़ारिग हुए जब
कहे तब मुज सें यों ऐ वासिले रब
उठो, दोनों चलें बग़दाद अन्दर
तो हम बग़दाद में आये हैं फिर कर
कहे तब हाज़िरों ने अर्ज़ यूँ कर
हुए साइल के ऐ आलम रहबर
जो इन तीनों बरस में क्या ग़िज़ा था
तुमें खाये थे ओ और कूत क्या था
कहे जो वहाँ रवाँ चीज़ाँ थे पैदा
ग़ियाह सब्ज़ हरियाली हुवैदा