रोज़ोतुल इतहार
हुआ इक दिन मुझे इलहाम अज़ ग़ैब
के तू हुसनेन का शैदा है लारैब
बड़ तुज मर्सियों का जग में है धूम
मोहिब्बान के गुलाया दिल को ज्यो मोम
किताब इक तूँ बना हिन्दी ज़बान सूँ
अँखियाँ अलम की कर अब ख़ाब से ज्यूँ
हसन वहॉ से बिदा हो कर फिरे हैं
गुज़र मोसिल के ऊपर सूँ करे हैं
उठा उस शहर का सरदार नामी
चचा मुख़्तार का साद करामी
ख़बर हज़रत के आने की पाया
तहायफ़ लेके इस्तक़बाल आया
कहा ताले कई हैं आज यारी
बर आई है मेरी उम्मीदवारी
के पाया मैं क़दमबोसी की दौलत
किया हासिल दो आलम की सआदत
किया तक़लीफ़ शह कूँ घर उतरने
निहायत आजिज़ी लागा है करने
वली मोसिल में था इक शख़्स मक्कार
उठा ज़ाहिर में वह शह का हवादार
दमे इख़लास शह का मारता था
अपस्कूँ नाम पर से वारता था
तपाके दिल से कीता अर्ज आकर
के ऐ सरदफ्तर आल पयम्बर
अगर मुज जानते बन्दा हूँ बेज़र
चलो मुज घर कतैं तशरीफ़ लेकर
हसन के देख उसकी जोश दिल
किये हैं घर में उसके जाके मंजिल
हुए मशहूर ये सारे जहाँ में
के उतरे शह फलाने के मकाँ में
ख़बर सुन सामयीन ने मिलके सारे
कल्हा भेजे हैं उसकूँ दे ................
खिलाता है हसन कूँ ज़हरा कर तूँ
तुझे देते हैं, जो चाहता है ज़र कूँ
तमा दुनिया की ज़र पर कर वह बदज़ात
उठाया दीन सें इकबारगी हात
।। दरबयान दादन ज़हर दुश्मन दोस्तनुमाँ बाआन जनाब
हिदायत इन्तमा ।।
न बूझो तुम के यह सर्व ख़ुश रंग
चमन उँगली रखा दातो में हो दंग
लगे गुलशन पे अजबस गम केहोल्याँ
हुए पुर खून कुल मेंहदी के फूला
ये मातम की ख़िजाँ का देख शेवा
उरूसे बाग़ हो गई आज बेवा
चमन पर देख कर उस दुख का पहाड़
दिया है खोल बालाँ सर्व शमशाद
देखे तब सरवर मज़लूम बेकस
बहा अखियॉ सेती आबेखा को असबस
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