अजब हक़ की तक़दीर का काम है
न किस पर अयाँ तिस के अंजाम है
भला है उसे निज सहना बला
खुशी दे पछैं कू अव्वल मुब्तिला
कहनार यो किस्सा दिल-पज़ीर
कहे खोल को बात यों बेनज़ीर
के यक रोज़ वो ख़ुसरूए नेक फ़न
सख़ावत ते फिरा के दायम नमन
सो मुख हात धोने ते फारिग़ हो सब
किया अपनी रानी ते पूछन तलब
व तब नार कूँ दिन झोके यह लाल
धरे जशरत का आन भोजन का थाल
शबिया ? हात ज्यों शाह न्यामत की धर
पुकार्या जमीं तल तलक एक फ़कीर
लग्या शह कूँ आवाज़ सुन यो अजब
के बाक़ी है सायली अझूँ क्या सबब ?
उतर वंई झट जन करने सवाल
चल्या सामने उस वही लेके थाल
किया ज्यों जो सन्मुख हो जगचार अमीर
न ले कुच बी जब फिर चल्या वह फ़कीर
रह्या शाह अपस दिल में हो यों थक़्या
के ना ले चल्या कुच सो है भेद क्या ?
वहीं दोज़ धर उसके सर सूँ जू
कह्या यूँ के कह मुज सो ऐ शाहे मन
यो शाह के वचन सुन ग़ज़ब सूँ शिताब
दिया जो मुट्ठी लब सूँ करवा जवाब
अव्वल दौर में एक बुलन्द बख़्त था
जिसे मुल्क शाही केरा तख़्त था
अथा नाम बिक्रम जग-आधार तिस
कनकेर सो तख़्त का ठार तिस
...............................................
डूब्या था कनक में कनकेर (?) .....जम
जवाँ वक़्त होर ओ जवाँ मर्द अछे
परउपकारी परकाज परदर्द अछे
पत्थर होय सोना जिस पारस छाँव ते
ज़मीन का बी उबले धन इस नाव ते
दिसा जिसके धर दास के दास जम
हो इक़बाल अछे बँध दर पास जम
देखा अपनी ताल-ए की क़ुदरत बुलन्द
किया थाल का जुहल को पसन्द
सआदत की गोहर करा मुश्तरी
अधिक बद थे बाज़ार के जोहरी
शुजाअत पर उसके हो बहराम राम
सदा सुर्ख रूई मन की उसते दाम
सूरज तिस जलालत के जहल सूँ जले
चन्द्र मेहराँ के तिसके शरम सूँ गले
जब इस बज़्म छब की उरूसी दिखाय
तो ज़ोहर हो ज्यों दिप मने जल्वा गाय
हो ग़वास अछे बहर गुन ज्ञान का
शहन्शा दिसे शहर इरफ़ान का
इनायत जिसे हक़ ते लारेब अछे
के इस धात गंजीने ग़ैब अछे
जो ख़ाली करें बहरो बर के घन (धन ?)
परे तिसके कोने में जा यक रखन
धरे बेगिनत लश्करो पायगाह
चुन्या सो जिता पायदल होर सिपाह
मिटे हस्त ख़ल्की के तह बेशुमार
शबीनी (?) में झुल्ते सो नित के हज़ार
हो प्रथम में एक छत्र का राज अपैं
कहावे सो राज्याँ का सरताज अपैं
जिते राज भारी बदल भार से
लगैं फ़ौज में उसके सरदार से
सिपाह दर सबा छिप करे दाब सूँ
जिते छत्र सब आदाब सूँ
कमर बाँद ख़िदमत में तिस सफ़ बसफ़
लगा लग खड़े होर हैं हर तरफ
धरनहार था सो रसायक (?) नज़र
जनम यक रविश ख़ास होर आम पर
दवा बख़्श हर दिल के था, रीश का
निगहबाँ बेगाना होर ख़ीश का
नगर में नवा काज नित आये दिस
घरी घर बजें तब्ले दौलत ते निस
दिया था खुदा उसकूँ सब कुछ मगर
वले सख़्त मुहताज था बिन पिसर
दिल उसका अछे कू च सब सुख सूँ बाग़
धरे पन नित उस ग़म ते जीवन लाल दाग़
अपस उम्र का जब ढले आफ़ताब
ख़लफ़ चाँद सा ...........नायब मनाब
गगन बादशाही केरा ख़ार हुई
यो तांर्या आलम पै अँध्यार हुई
जफ़ा इस अँदेशे का नासोस कर
कहे मन में यूँ आह अफ़सोस कर
इसे जर जमीं जल जनम का चितार
भसम होवे एक दिन में धर दुख की नार
ना देखे पन उस दुख जा दरबाज कोई
खुदा बिन न था उसको हमराज़ कोई
ख़ुदा के करे बाट में ख़ैर नित
बेनेकी धरे बैर सूँ बैर नित
सजें उसकी बख़्शीश अछे अनगिनत
करम का मगर बहर था बाज अनत
के जब ख़ाज़ने शब छिपावे दिरम
करे तब लग खोर का दिन का हुकम
तब उस शह के खाज़न अमोलक अपार
रचैं आन कर नौरतन के ढिगार
सदा हर नगर के जिते ख़ासो आम
मिलें शह के सब दान कारन तमाम
दोनों हस्त सूँ.......... तख़्त हर सुबह यूँ
करे दुरफ़िशा, सुबह शबनम कूँ ज्यूँ
उतर तख़्त ज्यो शह घरी च आय
तो मुख़ धोवे काच पानी मँगाय
जो रानी अछे शाह के तख़्त की
शरीक उसके इकबाल होर बख़्त की
अदब के अधिक शर्त्त सें धन सजात
अपे तश्त ले होर आफ़ताब ले हात
सहलियाँ ते हो ज्यों उनके मुख धुलाय
वही आन अलबान, नेमत खिलाय
पिछें क़िस्वते ख़ास, अधिक मान दिये
बना कर खाना करे, पान दिये
तो उस वक़्त वो शाह आली मुक़ाम
तख़्त वैस आ सब का लेवे सलाम
निबेड़े अपस मुख ते हर तन के न्याव
बंदे खुल्क़ मरहम सूँ हर दिल के घाव
सर्व बादशाही की लेवे ख़बर
धरे प्यार अदिक नित रैयत उपर
जिते भई ......... ........... करे सरफ़राज़
निवाजे जिसे पाये साहब नियाज़
सिपाह पर सबा हो अपै बेगुमाँ
करे खुल्क़ की बात सूँ खुशखाँ
सकल बाग़ शाही जो खिल फूल हुर्ई
ओ तब ऐश में अपै मशगूल हुई
देखे जान अछे जग पै तिस यूँ करम
तो क्यो तिस पै क़ायम रहवे कोई ग़म
न देखे थे कोई इस ज़माने में काज
किया था जो उन हक़ के कुव अम्र बाज
जियें जग में रास्त बाज़ रखे
खुदा तिसके त्यौं सरफ़राज़ रखे
.................... .............. ...............
के देता है दाता धनी एक कूँ दस
तवक्कुल पै तिस जस है साबित मुकीं
न रहे तिसके मक़सूद दुनिया वो दीं
अजब है हमारा च दिल ना सबूर
जो पड़ता है उम्मीद सूँ हक़ के दूर
जे हाजत जो मौक़ूफ अछै वक़्त पर
ओ बर आये जब उसकी होवे नज़र
(सबब फ़रज़न्द होने का जो एक दरवेश आने पर इसकूँ
शह .............. मुसाफ़िर हो बियाबानी ।)
अजब हक़ की तक़दीर के काम हैं
ना किसपे अयॉ उसके अंजाम हैं
भला है अपस तैं च सहना बला
खुशी दे पछैं कर अव्वल मुब्तिला
कहनहार यो किस्स-ए दिल पज़ीर
कहे खोल कर बात यूँ बेनज़ीर
के एक रोज वह खुसरू-ए नेकफ़न
सख़ावत सूँ फिरआके (?) दायम नमन
सो मुख हाथ धोने ते फ़ारग़ हो तब
किया अपनी रानी ते भोजन तलब
ओ तब नार को ....... ... ........ चौकी पै बैठाल
धरे ........... का आन भोजन का थाल
सट्या हात ज्यों शाह नेमत के धीर
यकायक जधीं तल पुकार्या फ़क़ीर
लग्या शाह कूँ आवाज़ सुन औ अज़ब
के बाकी है सायल अझूँ क्या सबब
................ ............. ............ ..........
चल्या सामने उसके वो ले के थाल
किया ज्यों जो सनमुक हो चल वो अमीर
न ली कुच बी जब फिर चल्या वो फ़क़ीर
कह्या शह अपस दिल में हो यो ठग्या
के ना ले चल्या कुच सो है भेद क्या ?
वहीं धोक दे धर उस सर सूँ चरन
कह्या यूँ के कह मुंज सूँ ऐ शाहे मन !
करम सूँ टुक आको यहाँ लग अवल
मुँजे देखते फिर चले क्या बदल !
यो शह के बचन ग़ज़ब तें शिताब
दिया यूँ मिठे लब ते कड़वा जवाब
के चल बेग उचा मुँज चरन ते सरीर
रवा नंई जो लेऊ बांज के घर का नीर
बचन सुन यो शह ने चल्या फेर कर
ख़िजल हो चल्या जिव कू दिलगीर कर
गया था खुशी सूँ ज्यों लाल उजार
फिर्या रूख़ हो सब ज़ाफ़रानी निज़ार
चिन्ता ग़म का बरसन सू वाज़े करे
कुहन ज़ख़्म कू फोड़ ताज़े करे
मिल अजुआ के तूफा में सर शोर सूं
उसासॉ का बारा छिट्या जोर सूँ
फूट्या तिस तबाही ते बुद का जहाज़
डूब्या सब्रो ताक़त का सामाँ वो साज़
पडया फ़िक्र के बहर के मौज में
हुआ दंग हर मौज की फ़ौज में
भुजंग तन में बेताक़ती का लड़या
गेल दात छेड वा दिल विस चडया
गया होश बिस तिस करे ताब में
डूब्या ज्यों पड़ ग़म के गिरदाब में
देखत शह का यो हाल रानी हो दंग
सो हमदर्द होवे धर के तिस दुक में अंग
कर अमृत बचन सूँ दिलासा अवल
समज के यों किस्मा हुआ सो सकल
देखा नई उसे दुक ते सुक का किनार
नसीहत का तख़्ता सटे बुद-विचार
कहे सुनके ऐ जगपती, नेकफ़न,
रख्या के तूँ चुप यूँ हलाकी में मन
नको कुच अँदेशे के पड़ अब खयाल
कमर बंद के हिम्मत सूँ अपै सँभाल
ओ दरवेश कूँ बेग ढुंढने कूँ जा
ज कुच मन के मक़सूद सो उसते पा
समज फ़ैज़बख़्श उस हुमा का निशा
सआदत का जिस औज है आशियॉ
निझा देख अधारा-उजाला तमाम
तरद्दुद का सट जग पै जाला तमाम
जो होवे ओ हुमा क़ैद तुज दाम में
करे शह तूँ मात उस दिलाराम में
तूँ आये तलग अक़्ल ते कर इलाज
चलाऊँगी मैं सब तेरा मुल्को राज
जध जी पर टँगाती हूँ मैं एक जरस
फिर आवै सफ़र कर तूँ जब हो सरस
निशानी सूँ आको अधरात कूँ
बजा भार तब तीर अपस हात सूँ
सुनूँ ओ घंटी ते आवाज़ जब
बुला लेऊँ कोहत (?) सू दरबाज़ तब
बचन नार जब अक़्ल सूँ की सवार
वही नक़्श कर शाह दिल के मंझार
......... ........... ............. ............ तुज
वहीं जाओ दरवेश धर के रज
फिरा कर ओ शाही करे भेस कूँ
चल्या यूँ ओ जो के हो परदेस कूँ
कँटा सख़्त मेहनत का आपका (?) किया
सो कचकोल साबित तवक्कूल किया
चड़ाया सो तन पर क़िनाअत की राक
सुन के कर लिया आह के दम की हाक
सबूरी के मुद्रे दिया गोश कूँ
किया हुक्मे जंबील अदिक होश कूँ
यो राहत कूँ दुनिया के मरकान कर
ल्या राखे पग तलैं आन कर
लिया हिर्स के फावड़े कूँ बग़ल
जलाने हवस के दहे नित सकल
धर्या खूब हथियार कर हात के
घनेरी जिक़र तें दावात के
कमरबस्ता हिम्मत का भारी किया
अटल क़स्द की हत मतारी किया
धरन जल्द हर काम में तेज धात
लिया खुश ख़यालाँ के चेले सँगात
मगर पाक नेमत के उस खान कूँ
हो खादिम मँगन पूत के दान कूँ
कर इस धात अपस तन के तंई मुस्तैद
रज़ा चला काम पर हो बजिद
रख़्या सर्व आज़ाद हो बन में पग
लटकें लग्या चर्ख़ के बाव लग (?)
रहे ताज़ा सब ........... ........ ...... ....धीर ते
भिगाने लग्या नैन के नीर ते
धरे नर्म पग यूँ चेल दुक के सोस
पड़े फूल नाज़ुक पै ज्यों शब ते ओस
किया कूत कूँ भूक प्यास का
नित अपना अपै पी रगत मास का
करन तल-उपर ख़ार होर ख़स के बन
सुबुक सैर अपस से करें ज्यों पवन
सदा भूक होर प्यास का सो दुक
दिसे शेर-सा जल्दतर हो सुबुक
घटावे घट हो कठिन दिन कू बाट
हरियाली पै सोवे सटे निस कूँ काट
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.