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Sufinama

किस्म ए समऊन

क़ादिर बीजापुरी

किस्म ए समऊन

क़ादिर बीजापुरी

MORE BYक़ादिर बीजापुरी

    करूँ मैं यहाँ ते यो क़िस्सा बयान

    अजर क़िस्सा के लग जवाहर खान

    कुरेश था एक मर्द मक्का के ठाँव

    जो ख़ालिद अथा बिन वली उसक नाँव

    अथे सात बेटया था उसकूँ पूत

    मोहताज था होर फ़रज़न्द सपूत

    अथे तीन सो साठ तिस घर में देव

    यो करता था पूजा सकल मकर देव

    हुज़ूरी में देवॉ के हर रोज़ दिन

    करे सात बकरे तसद्दुक सो उन

    उनें सूँ करे तलब फ़रज़न्द

    अक़ीदे सूँ देवा ते दिलबन्द

    किते दिन गुज़रे गये वले इस वज़ा

    पाया बुताँ ते उनें कुच जज़ा

    हुआ मेहरबान उस पर गिरहगार

    हुआ है अमल खास खालिद के नार

    अब एक रैन नाज़िल किया हक़ ने नूर

    मगर घर पो खालिद के मानिन्द सूर

    देखत सब फ़रिश्ते फ़लक के पुकार

    कहे तूँ हमारा है परवर दिगार

    यो क्या नरू नाज़िल फ़लक ते किया

    भई काफ़िर के घर पर शर्फ़ तू दिया

    जो कुच पूछता हू क्या रब मैं

    तुमें बूज सकते नहीं उस कतें

    बन्दा यक चहता हूँ पेदा करन

    मैं तिस घर बेहतर ते हुवेदा करन

    अहले बैत कूँ नफ़ा देनहार

    मददगार अछे मुहम्मद का यार

    नबी के करें दुश्मनॉ पर गज़ब

    कने काम होने सू ज़ाहिर अजब

    सो नबी रब ते यो जब मिला एक बयान

    रहे जब हो सुन, सबने अलहक़ पछान

    मुहम्मद का सुन नाव आरिफ़ वजूद

    भेजे मुहम्मद पै हरदम दुरूद

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