किस्म ए समऊन
करूँ मैं यहाँ ते यो क़िस्सा बयान
अजर क़िस्सा के लग जवाहर खान
कुरेश था एक मर्द मक्का के ठाँव
जो ख़ालिद अथा बिन वली उसक नाँव
अथे सात बेटया न था उसकूँ पूत
ओ मोहताज था होर फ़रज़न्द सपूत
अथे तीन सो साठ तिस घर में देव
यो करता था पूजा सकल मकर देव
हुज़ूरी में देवॉ के हर रोज़ दिन
करे सात बकरे तसद्दुक सो उन
उनें सूँ करे तलब फ़रज़न्द ओ
अक़ीदे सूँ देवा ते दिलबन्द ओ
किते दिन गुज़रे गये वले इस वज़ा
न पाया बुताँ ते उनें कुच जज़ा
हुआ मेहरबान उस पर गिरहगार
हुआ है अमल खास खालिद के नार
अब एक रैन नाज़िल किया हक़ ने नूर
मगर घर पो खालिद के मानिन्द सूर
देखत सब फ़रिश्ते फ़लक के पुकार
कहे तूँ हमारा है परवर दिगार
यो क्या नरू नाज़िल फ़लक ते किया
भई काफ़िर के घर पर शर्फ़ तू दिया
जो कुच पूछता हू क्या रब ओ मैं
तुमें बूज सकते नहीं उस कतें
बन्दा यक चहता हूँ पेदा करन
मैं तिस घर बेहतर ते हुवेदा करन
अहले बैत कूँ ओ नफ़ा देनहार
मददगार अछे ओ मुहम्मद का यार
नबी के करें दुश्मनॉ पर गज़ब
कने काम होने सू ज़ाहिर अजब
सो नबी रब ते यो जब मिला एक बयान
रहे जब हो सुन, सबने अलहक़ पछान
मुहम्मद का सुन नाव ओ आरिफ़ वजूद
ओ भेजे मुहम्मद पै हरदम दुरूद
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