व यक टोला इमान सें बा जमाअत
मुक़ीम होय तो करना है दो रकत
मुसाफ़िर होय तो यक रकत गुज़ारे
मुकाबिल कू तर्फे दुश्मन सिधारे
दुजा टोला करे आ इक्तदा यों
मुक़ीम होय तो दो करना अव्वल ओं
मुसाफ़िर होय तो यक रकत अदा कर
सलाम फेरे इमाम उस वक़्त अपर
मुक़ाबिल होय यो टोला भी जाकर
खड़े रहे रूबरू दुश्मन बराबर
नमाज़ अव्वल किये सो ओ जमात
गुज़ारे अपनी बाक़ी आपी ख़िरात
दुजा टोला नमाज़ अपनी भी बाक़ी
गुज़ारें बाख़िरात बाक़ी-साक़ी
नमाज़ें शाम यक टोला जमात
इमाम उन सात करना है दो रकात
ओ टोला जा खड़े दुश्मन के मूँ पर
जो यक रकात करें आ टोला दीगर
नबी फ़रमाये जो औरत शरम सूँ
जो अपने मर्द के चलते हुकम सूँ
जो औरत मर्द कूँ रकते है खुशहाल
सवाब है हक़ में उस औरत के ऊपर आल
परिंदे जानवर सारे हवा के
मछलियां पानी के सारे सितारे
जो इस औरत को बख़्शीश और रहमत
हर यक दम भेजते देते हैं इज्ज़त
जो दूसरी कोई औरत होय हरामी
मर्द का दिल दुखाती है मुदामी
दुखाती दिल ओ गुस्सा भी दिलाती
मर्द सूँ रोज़ क़ज़िये जो कराती
यो सब लोग उसपो लानत भेजते हैं
मुहम्मद मुस्तफ़ा जो यों कते हैं
क़यामत लग जो लानत उस पो नाज़िल
दुखाते है जो औरत मर्द का दिल
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