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Sufinama

फ़िक़ा महफूज़े ख़ानी

क़दरे आलम

फ़िक़ा महफूज़े ख़ानी

क़दरे आलम

यक टोला इमान सें बा जमाअत

मुक़ीम होय तो करना है दो रकत

मुसाफ़िर होय तो यक रकत गुज़ारे

मुकाबिल कू तर्फे दुश्मन सिधारे

दुजा टोला करे इक्तदा यों

मुक़ीम होय तो दो करना अव्वल ओं

मुसाफ़िर होय तो यक रकत अदा कर

सलाम फेरे इमाम उस वक़्त अपर

मुक़ाबिल होय यो टोला भी जाकर

खड़े रहे रूबरू दुश्मन बराबर

नमाज़ अव्वल किये सो जमात

गुज़ारे अपनी बाक़ी आपी ख़िरात

दुजा टोला नमाज़ अपनी भी बाक़ी

गुज़ारें बाख़िरात बाक़ी-साक़ी

नमाज़ें शाम यक टोला जमात

इमाम उन सात करना है दो रकात

टोला जा खड़े दुश्मन के मूँ पर

जो यक रकात करें टोला दीगर

नबी फ़रमाये जो औरत शरम सूँ

जो अपने मर्द के चलते हुकम सूँ

जो औरत मर्द कूँ रकते है खुशहाल

सवाब है हक़ में उस औरत के ऊपर आल

परिंदे जानवर सारे हवा के

मछलियां पानी के सारे सितारे

जो इस औरत को बख़्शीश और रहमत

हर यक दम भेजते देते हैं इज्ज़त

जो दूसरी कोई औरत होय हरामी

मर्द का दिल दुखाती है मुदामी

दुखाती दिल गुस्सा भी दिलाती

मर्द सूँ रोज़ क़ज़िये जो कराती

यो सब लोग उसपो लानत भेजते हैं

मुहम्मद मुस्तफ़ा जो यों कते हैं

क़यामत लग जो लानत उस पो नाज़िल

दुखाते है जो औरत मर्द का दिल

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