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जंगनामा बी जैतून

क़ासिम अली

जंगनामा बी जैतून

क़ासिम अली

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    इलाही दो आलम का कर्ता तूँ

    दोनों जग का पैदा करनहार तूँ

    किया अपनी कूदरत सू खिलक़त ज़हूर

    ज़मीन आसमान होर मलिक, जिन्नो हूर

    शिकार खेलना कूँ निकल हो तैयार

    चले चार याराँ सो होकर सवार

    दो फ़रज़न्द अबू बकर आली जनाब

    थे फ़रज़न्द दो उमर इब्न खत्ताब

    शहर सूँ मदीना के बाहर निकल

    शिकार खेलने कूँ चले दर जंगल

    जंगल सू यकायक उठा यक गुबार

    थी उस गर्द म्यानें इकतालीस सवार

    ज़ैतून पाक दामन चलीस कनीज़

    बेटी शाहे इरम की थी अज़ जाँ अज़ीज़

    यो पाचो सवार उसकू आवे नज़र

    सो घोड़े कूँ कर एड़......................

    यों च.............................पास यक उनेमें

    लगे कहने ले घेर मदीने में

    कहो कौन हो तुम पॉचो सवार

    यो जंगल में मेरे जो करते शिकार

    परिंदा ना पर मारे मुज हाँक तल

    नगीन शहर ठारे मेरी हाँक तल

    मुहम्मद हनीफ़ ने कहे यों अताल

    के शूख तेरे में है क्या मजाल

    जो मर्दन का तूँ पैन लेकर लिबास

    मुकाबिल होय हम सते वे हिरास

    कहे क्यो तूँ जान्या के औरत हूँ मैं

    मुंज किस वजे सूँ पछयाना सो तैं

    हनीफ़ शाह कहे यों सुन नाज़नी

    के एड़ जिस वक़्त घोड़े कू तैं

    तो सीना तेरा थुल थुल आया शताब

    दोनो पाँव काँपे तेरे दर रिकाब

    कही गर हूँ औरत वले हूँ बला

    के मैं ज़ोर रखती हूँ वे इन्तिहाँ

    भोत बादशाहाँ कूँ मारी हूँ मैं

    भोत फैलवाना पछाड़ी हूँ मैं

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