मनलगन
ऐ रूप तेरा रत्ती रत्ती है
परबत परबत पत्ती पत्ती है
परबत में ओक न कम पत्ती में
यक सा रहे रास होर रत्ती में
होर यूँ बेकहे न जाय तुज कूँ
जो बीच जगत के जाय तुज कूँ
सागर तो ना सुरमेदान में मा गा
सन्दूक में सूर क्यूँ समागा
तूफ़ान तनिक सुमन की बू में
समदर एक आँख के अंजो में
दरिया में सदफ़ लाक भर्या
पन क्यों भरे सच्चा सदफ़ में दरिया?
एक पल में तो फ़लक बसे क़्यों
एक घर में दो जहाँ धसे क्यो
जुज़ कुल में छुपे न अक्स उसका
यो बोल न साफ़ कुहनस का
सब तुज में अगर कहे तो सच है
ज्यों जल के मझार कुच है मुच है
।। बादशाह औरँगज़ेब की तारीफ़ ।।
अब बोल तूँ मदह बादशाह का
होर उसकी कमालिय कुलाह का
जिसकी यो दो बालपन की आदत
आलमगीरी है होर इबादत
यक मुल्क नहीं जो उन लिया नहीं
यक नफ़ल नहीं जो उन किया नहीं
ऐसा न हुआ किसी शहान में
ना बल्के बड़े मशायेखान में
जिस नाँव अहै अबुलेमुग़ाज़ी
सुलतान औरंगजेब ग़ाज़ी
दीनदार दिलेर और दाना
यक इल्म न सब मने सयाना
।। कवि का निवेदन ।।
मैं कोठरी छोड़ भार आया
दालान में उस दुना की धाया
जब बरस चार गये गुज़र तब
आ सामने मुख दिखाये मकतब
बिस्मिल्ला मुँजे कहे कहो हॉ
मैं कह्या रहीम रहमॉ
यानी थे यती बेज़हन ज़ीरक
जू दंग थे जवॉ और पीरक
इस उम्र में इश्क़ जिव में जाग
यों भेड़ लिया ज्यों भेड़ कूँ बाग
यों अंग नन्हें थे या बड़े थे
यक ऑग पर ओड़े पड़े थे
लाग्या यो दिल उस अलख के लग कूँ
उस सर्व के डोल होर ढलक कूँ
इश्क आग की मन में दहकी थी
भर तन में तमाम तबक की थी
या मुज में नवा हुआ है पैदा
या जग में अव्वल ते है हवेदा
दुक सोस न रुक कर उस परी का
दिल शौक़ लिया कबीसरी का
गर बीच कबीसरी न आती
वल्ला यो आग मुजे जलाती
चालीस बरस भये थे मस्ती
यो शेर को शाहदा परस्ती
होर शोर भी भाँत भाँत का था
बहु भाँत जो मेग सात का था
हर बूद न यक अमोल मोती
मोती न हर यक बीत जोती
हिन्दी तो ज़बाँ च है हमारी
कहने न लगन हम कूँ भारी
होर फ़ारसी इसते अति रसीला
हर बोल में मार्फ़त की बानी
सीता की न राम की कहानी
था पूरा बड़ा यक बड़ा पिटारा
सो भागनगर में खो गये सारा
जे नज़र किया अथा सिकन्दर
जिन चरख कूँ उन दक्खिन के चन्दर
।। हिकायत सुलतान वज़ीर ।।
सुलतान सूँ यक वजीर हो सैर
बोल्या दिला रज़ा मुँजे न कर देर
खटपट में अबस यूँ उम्र घट गई
होर पिंड की पैहरन भी फट गई
ना नूर नयन ना ताव तन में
यक बाव है बेबदल बदन में
अब दोस्ती इस दुनी की बस है
दिल दीन सूँ बाँधना हवस है
यानी के यकाद कुंज बिलगाव
यक भाव सूँ बन्दगी में गल गाव
प्यासे कूँ अछै जो नीर प्यारा
यूँ शाह कूँ था वज़ीर प्यारा
हर भाँत हर एक बल माने
देना ना अपस सूँ फाँक जाने
रख जीव में ज़ाहिरा हो ब्रह्म
बोल्या के भला है जा तूँ जमजम
पर बादशाह मने हमारी
पैदा सो किया डाल बारी
दस्तूर था दर असल था स्याना
क्या यक यो दिया जवाब दाना
ऐ शाह, तेरा दिया फिराये
होर उनि च मेरा दिया तरावे
सुलतान यो सुन पुकार ताना
ज्यों घूर के तार झड़झड़ाना
मभूत हुआ जो मैं लिया क्या
यों मुज कूँ ग़ैर तेरा दिया क्या ?
बोल्या ओ जो मैं दिया हूँ ज़ाहर
सो दरज कितक है भर जवाहर
यो माल, यो मुल्क बस्त बासन
यो पालकी नालकी सर वासन
यो बाग़ है यो सरा सहेलियाँ
घट मास मीठया जो गुड़ की भेलियॉ
लब जिनके शकर ही नयशकरक़ंद
बिल बात करे न बात कू रद
मुख फूल सियाह जुल्फ़ सुम्बल
जूँ काल काल है काल जिनके काकुल
घोड़े हैं केतक जो जल पो चल जायँ
तलवार जो बिजली-सी झलकाये
हाती है केतक फाड़ ऐसे
होर तू बी दिया सुगाड़ ऐसे
बोल्या ओ वजीर ओ शहन्शाह
यक अर्ज़ है सुन तूँ अदल की राह
जिस अमर कूँ तूँ जानता है
होर उसकी भा पछानता है
सो अमर दिया तेरे अमल कूँ
किमख़ाब दिया ज़बून कमल कूँ
रख अपनी इल्तफ़ात ग़ायत
कर अमर मेरा मुँजे इनाअत
होंर तूँ बी दिया सो सब तेरे पेश
करता हूँ जो मैं हूँ हाल दरवेश
इस बात में शह विचार कीता
इन मरा तूँ मुज पै बार कीता
तिस अमर केतें कहाँ सू लाना
मौजूद कर उसकूँ क्यो दिखाना
बेहतर तो कुछ अब तलब न करना
अपस्के दिये सूँ दर गुज़रना
मिल जीव सूँ यक जवान पूछा
ना जान बल्के जान पूछा
ऐ जीव तूँ कौन है सो मुजे कह
कर मोल सूँ आपने मुज अगे
ना सूल सूँ सूकशम सू है काम
है मूल सूँ तुज मेरा सरंजाम
तब जीव दिया जवाब नीका
यक ठाँव पकड़ न कुछ मनीका
सो क्या के यो सब सिंगार मैं हू
भीतर बीतो मैं हूँ भार मैं हू
जे जिस्म लिया है और हस्ती
तूँ बूज ओ सब मेरी है बस्ती
बिलफ़ेल जो तू कहे कि तू कौन
सो मैं हूँ न मैं हू जो के फ़िरोन
गर है तू पलीद में अगर पाक
मैं आग आकास जल पों खाक
मैं बिजली में अभाल में मेग
मैं लाकड़ी में अनाज में देग
पग़फूर बी मैं फ़क़ीर बी मैं
ज़रवफत जुबूँ हसीर बी मैं
मदमस्त गेंद में गुन में
बुल बी तो मैं बहार में चमन में
मालूम हुआ कई हैं ए लाल,
यक जीव कूँ फोंड कर यो अश्काल
हर शै के ऊपर तले यही जीव
गर बीच में झुलझुले यही जीव
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.