Sufinama

गुलदस्ता मसनवी सनती

सनती

गुलदस्ता मसनवी सनती

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    बचन का अजब मय यो है ताबनाक

    फ़हमदार के गोश का जिस्म खुराक

    बचन का बी साग़र सुराही अक़ल

    भर्या मद फ़िरासत अज़ा में नवल

    सुनो अब कता हूँ नवल बात यो

    शहा मिस्र का हाल था घात यो

    कहूँ मिश्र के शाह का अब बयान

    बड़ा दादगर बासखी मेहरबान

    के फ़रज़न्द यक उसकू क़ाबिल अथा

    अजब हुस्न में खूब साहबे जमाल

    जिस हुस्न तल दब रहे नित हिलाल

    खुदा तरस होकर धरे खल्क नेक

    उस सार कोई आज के जग में देक

    नित आसूदा आलम कू रक अर्ज़मन्द

    पिदर कन अथा सदा स्पन्द

    ख़सूसन जो मिश्र का बादशाह

    ज़माने यकायक पढ़ने कबल

    देखो काम किया यो लिआय अगल

    सकल शहर के वे वज़ीरा तमाम

    अपस सात ले कर सबी खासो आम

    बगर मशबवरत दिल में अपने घट

    मुकर्रर बद अन्देश अन्देशे निपट

    सुन्या यो खबर शाह जब भर के गोश

    हुशियार हो दिल में लिया के होश

    चल्या हो के राही फरज़न्द ज़न

    मुसाफ़िर हो कर सट दिया जो वतन

    चल्या रात दिन भोत अफ़सोस कर

    अपस वक़्त पर निज अपी रोस कर

    यकायक जा पोच यक शहर पास

    रह्या कर सकूनत पकड़ दिलहिरास

    अपस हाल पर सख़्त रंजूर हो

    रह्या दुख सते दिल के माजूर हो

    क़ज़ा लिल्ला यक रोज़ शह के पिसर

    निकल घर ते आया शहर के भितर

    देखत वालिदेन अपने मक़मूर हाल

    परेशान अपन भी फिकर लग दुबाल

    सोना देक जागा उने खुश शक़ल

    किया रब ने उसके ऊपर तब फ़ज़ल

    के उस शहर के शाह का बाज़ छूट

    निकल कर गया हद ते बाज़ छूट

    हो दिलगीर शह बाज़ के बाज़ तब

    खजिल करके वले अपना उस सबब

    किया शहर में हात धर फ़िक्र कू

    शग्ले दिल लगाया उसे ज़िक्र सूँ

    सकल मर्दुमा उसके पाने ख़बर

    लगे फिरने रन-बन में हर यक बशर

    परागन्दा हो कर यक यक रग ढूँढन

    बिखेरे यके जगए दानिया नमन

    तूँ दे साक़िया मय मुहब्बत लिबास

    जो दिल मस्त लोगाँ सुने इल्तमास

    यो ख़ता मेरे फन का रूझान भर

    किया भिश्क (?) सू खुश यो अफ़सान तर

    के जिस दिल में मामूर होय इश्क़े हक़

    एसे जिव कू प्यारा लगे मुज वरक़

    येना सुखन्दा हो खातिर में ले आओ

    ग़रीब इस बिचारे की हिम्मत कूँ पाओ

    दे दाद हर ठार इन्साफ़ कर

    कुदूरत सते दिल कतें साफ़ कर

    अजब है नज़ाकत भर्या यो सुखन

    के सुन ताज़ा के लें अधिक दिले चमन

    सहावे मुहब्बत की बरसा के नीर

    दिला आशिक के करूँ ताज़ा फिर

    सुखन सादमानी का कर इब्तिदा

    सुनाऊँ ले भार खुश नवा सदा

    तफ़र्रूज़ सते शाहजादा निकल

    चल्या कामरानी का धर दिल शग़ल

    फग़फूर की बारगाह बीच

    सलाम हाजिबा कू किया तब निझा

    अली कि दिये उस जमाअत तमाम

    के पूच हाल उसका किये इन्तक़ाम

    यहा सब अपस का कहा उन हुज़ूर

    सुने बात सारी हाजिब ज़रूर

    कहे होके इक़बाल जाने मन

    नसीहत सुन तूँ हमारा सुख़न

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