वसीयत उल हादी
सकता क़ादिर कुदरत सूँ समजे तुज कोई क्या
जिसकू पूरी देवे राहू कह्या यहदी मनयशा
बहुरूप परगट आप छिपाया कोइ न पाया अन्त
माया मोह में सब जग बाध्या क्यो कर सूझे पन्थ
किया मुहम्मद जग में प्यारा जिसते समझे राह
शैतान मुद्दई पकडया क्यो कर सके जाह
मुहम्मद जिसका पीट पठिगा उसकूँ क्या है डर
नित उठ सुमरन दिल में उसकू कल्मा जपने कर
आओ, तूँ सालिक राह दिवाने चलते न लाये बार
मुक़ाम राहे मंज़िल बूझैं उलजाहे किस ठार?
दुई मुकाम राह चार समज कर मंजिल बी है चार
फुरसत देना जब लग तुज कूँ जागा हो हुशियार
दर बयान मुक़ामे शैतानी
फैल्या मुक़ाम शैतानी कहना मंजिल नासूत केरी
शरिअत की जब बाट लगे ना क्यों कर उतरे घेरी
मैं में सब हिर्स हुई, मैं खाली लेता धाऊँ
कूड कपट मद मछर मस्ती शैतानी उसका नाऊँ
उसकूँ छोड़ राह बिचार शरियत जिसकूँ कहना
इन्साफ़ उपर सभी काम फ़रमूद के सूँ रहना
अम्र खुदा का लिया बजा तूँ नहीं ते मुनकिर होना
मुक़ाम शैतानी जिसको कह्या दिलते सारा धोना
नर्ई तूँ ............................................ दीन गँवाया सारा
ऐसी धुंदी सब जग अंधी फिर बस्ती उसे ठारा
चलते का तो नेम न होवे यूँ तो शह फुकट खाया
इस धात उम्र खरच कीता आख़िर फिर पछताया
तूँ तो नफ़स सूँ तक़वा राखे शरअ मुहम्मदी आवे
हो नित मशगूल ज़िक्रे जली सूँ मंज़िल नासूत पावे
ज़िक्रे जली नित ऐसा याद हर दम अल्ला नाँव
यूँ हर आज़ा बरतन पूरे नासूत पावे ठाव
मंजिल नासूत जिसकूँ कहना उसकी बूज निशानी
बालपने की रूत पहले या ज्यूँ देख हैवानी
रोज़ा नमाज़ सते गुज़र्या मजज़ूब केरा हाल
ज़िक्र शग़ल का यो ले डूब्या करे न आप संभाल
यूँ ले निद्रा सुख सपने का जागा कन बैठे
राह तरीक़त मारग उनके मुस्तैद होकर उठै
तन नफ़स ते गुजर्या दिल कूँ आपन या तूज तरीक़त राह
ज़ाहिर तो उस कोई ना जाने बातिन केरा गवाह
जग में वो तो दिसे दिवाना सियाने उसकी गत
ज़ाहिर तो उस तक़सीरे लागे पन बातिन दिलका सत
ना वह किसकी संगत के में रहे यकेला पर
मुराद उसका एक धनी सूँ तल-तल उसका दर
ना वह किससूँ बोल्या बोली ना कुछ सुन्या सो बानी
परगट दाना रिन्द दिसे ना किसका बिकार......................
ऐसे फुरसत जी वो देवे तुज तरीक़त नाम
तन नूरानी सूँ उसके रह्या .........................चाम
बाद अज़ ज़िक्रे क़ल्बी लेवे दिल में मख़फ़ी बूझ
जिन ताकू नादार झंकारे तो मंजिल मलकूत तूज
मलकूत याँ का ऐसा हाल मंजिल मलायकान
करे इबादत ज्यों फ़रमाया साबित रख ईमान
हुक्मे शरियत भी उस लाज़िम ज्यों फ़रमाया हद
जुहद तक़वा कारे सलाहत नफ़्स कूँ कीता रद
ज कोई इसकूँ कर डिगावें या सीस लेवे काट
भला बुरा तूँ समज्या जाने तसलीमी की बात
राह हक़ीक़त रूह सूँ ताल्लुक दिल ते कीता कूच
आशिक़ पराये हाल सज़ावर कहने न आवे तूज
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