Sufinama

पगदण्डी

MORE BYसुलैमान ख़तीब

    यक नवी आरस सरीका चुरमुरा को शम से

    गाँउ के बाजू से निकल को घाट कू जाती हूँ मैं

    जिनके अंगे चान-सूरज भीक के सानक हैं दो

    ऐसे ऐसे आफ़ताबाँ को उठा लाती हूँ मैं

    यूँ खाली सुन को होगे तूर के बाताँ तुमें

    मू अँध्यारे आको देखो तूर बन जाती हूँ मैं

    तूर बन जाती हूँ मैं जी नूर बन जाती हूँ मैं

    ह्याँ तो छुपती व्हाँ निकलती खेलती जाती हूँ मैं

    धान के खेताँ में जाको माँग बन जाती हूँ मैं

    पीले पीले लेको घाघर जैसे सुन्ने की लकीर

    लकलकाती, डोलती, गाती हुई जाती हूँ मैं

    मैं कुँआरी छोरियों की एक लम्बी सास हूँ

    दो दिलाँ में चुबने वाली एक बिंगी फास हूँ

    हात में जंगल के हूँ तकदीर की टेडी लकीर

    कच्चा पक्का वादा हूँ मैं निटती निठती आस हूँ

    ये उतारा ये चढ़ावाँ, बाँसुरी का राग हूँ

    मनचले गबरू जवाना के दिलो की आग हूँ

    मलकुल मौत कूँ कहो के आवे

    हुकम खुदा का बजा वह लावे

    जो कुछ अमर अल्लाह का उस पर

    वह जो करे अब मुज पर आकर

    मुहम्मद के सम्बन्ध में अली ने कहा माना

    यहाँ से निकल मक्के कूँ जाना

    वह है जाय अमन अमाना

    या जाना तुम हिन्दुस्तान कूँ

    छोड़ना बिल्कुल अखस्तान कूँ

    नाना नबी कहते थे मज़कूर

    संग दिली अरबो की मशहूर

    नाना नबी अरबो में रहते

    लेकिन अक्सर यो नित कहते

    ।। दोहा ।।

    मैं हूँ अरबस्तान में अरब नहीं मुज बीच

    मैं नहीं हिन्दुस्तान में हिन्दी मेरे बीच

    बाइकाँ बनेंगी राँडा बेगले फिरेंगे छोरे

    पस्सो उठा को माँटी डालेगे नाऊँ पो तेरे

    देवल मसिद गिराता चट करको हाता तुट्टो

    कै-दस लगो रे तुज्जे हल्लक में फांड़े फुट्टो

    मैं करको तेरे टुकड़े मुल्काँ पो मेरे वारूँ

    गजरे सरीके श्याराँ तू पाड़ करको रक्ख्या

    बडियॉ के सब निशानाँ तू हाड़ करको रक्ख्या

    मुल्कों कूँ लेको क्या तू धो को पिएँगा जालिम

    अल्ला की प्यारी जानाँ मर खप को जाएँगी सालिम

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