इशारतुल ग़ाफ़िलीन
तू दाता है तेरे यो मगते है सब
गवाता है तू सब यो मँगत्यॉ का रब
के जूँ जब जिसके है दिल पै च खास
तू देता है उसकू न करता निरास
तुजे छोड़ जाते है दूसरे के घर
सबब जो बशरपन का है बअसर
व लेकिन वहा भी थे सुभान
बशर की क्या कुदरत करे किसकू दान
जो देता दिलाता थें मेरे रब ये
यो तेरे सो ज़ाहर के हाता में सब
तूँ रज्ज़ाक मुतलक़ तूँ दातार है
तूँ सत्तार, गफ्फ़ार गमख्वार है
जमीं-आसमॉ होर बर्रो बहर
तेरी याद करते हैं श्यामो-सहर
व लेकिन मेरी मैं कहू क्या मजाल
करू मैं जो तेरी खुदाई का ख़्याल
अजब तूँ हें हिकमत में ऐ कारसाज़
तेरा तूँ च जाने यो राज़ो नियाज़
तूँ ऐसा है हिकमत में ऐ पाकज़ात
न करने में आती है तेरी सिफात
के जब तूँ उठा कुंज मख़फ़ी भितर
न था किसकू मालूम क्यो था मगर
के चाहा करू आपकूँ आशकार
निकल शौक़ सूँ वैं च पर्दे के भार
के याने कता है अपी यू खुदा
यो कहने कू उसके करो मिल अदा
मगर कोइ मुहब्बत रखे मुज सते
तो मै भी मुहब्बत रखूँ उस सते
करे दोसती कोई मेरे सगात
तो मैं भी करूँ दोस्ती उसके सात
सो मेरी मुहब्बत कू सुन ऐ बशर
कता हूँ इसे खूब सुन होश धर
अव्वल इस मेरी दोसती कू सुन
बिजाँ दोसती तू मेरे सात गुन
सो पहले कसोटी ऊपर उसके कस
भई खूब देखता हूँ उसे किस अपस
कसोटी मेरी अब सुनाता हूँ तुज
यो सुन कान धर कर ज़बानी यो मुज
के साचे में इस आज़माइश के जो
के ठहरे अपस का नबी सू जो ओ
तो फिर उसका क्या पूछना है ऐ यार
ओ दोनो जहाँ का हुआ शहरयार
वले तुमक एक दाखिल देके हम
कते हैं सुनो मिल के सब मर्द ज़न
ओ जूँ करके साचे में तीर कर
और ऊपरी कतें खैचता डाल कर
वलै एक दो तीन छै सात बार
जो होये उनो सॉचे मे सूँ आर पार
अगर निकले उसमें ते साबूत ओ
तो ओ तीर क़ीमत का होता है जो
अगर ओ फटे या ओ तड़के ज़रा
बड़े मोल में उसके बी अंतरा
ई वे बात है इसकूँ तिस कान धर
सुनाता हूँ तुज दाखिला दे मगर
के रब की कशिश के यो सॉचे में जो
रहे ठहर कर होर साबूत ओ
के जब अपने तर्ई यूँ करे ओ सही
तो रब होर उसमें न रह दी दुई
वले वेक आसान है या कबल
ओ करता है उसकूँ सो सुन तूँ अवल
वले ओ बया कर सुनता है बोल
छुपाता नहीं राज़ कहता हू खोल
जो खालिस मुहब्बत करे कोई यार
तो औरत ओ पकड़े, सटो उसके मार
करे फिर ज्यादा मुहब्बत कतें
तो लेऊँ छीन कर उसकी दौलत कते
भई क़ायम रहे वें ओ मुजको पकड़
तो आजिज़ करूँ कुबत सू मार कर
करू इब्तदा उसका खाना खराब
न खाने कू रोटी न पीने कूँ आब
भई उस पर बी कायम रहे ओ अगर
तो फिरने लगाऊँ उसे दर-बदर
अगर सवाल भी जा करे ओ किसे
फिरे भई परेशान हो खारज़ार
जिधर जाय उधर सू होय मार मार
।। फ़क़ीर शेख अब्दुल क़ादर मोहिउद्दीन की प्रशंसा ।।
मोहिउद्दीन खिलक़त के सरफ़राज
मोहिउद्दीन का रब पो चलता है नाज़
अजब नाज़ है ई सुनो मोमिना
उसे अब सो कहता हू तुमना सुना
मोहिउद्दीन हक़ मे सवालो जवाब
हुआ सो कता हू सुनो बा अदाब
के एक रोज़ खालिक़ सो परवर दिगार
जो बातिन सूँ आवाज़ कर आशकार
कहा ऐ मोहिउद्दीन मँगो कुछ तुमें
के इस बात की आरजूँ है हमें
कहे सुनके माशूक रब्बानी जब
तेरे पास क्या है मगूँ मै ऐ रब
सुनो ऐ मुरीदा यो क्या नाज़ है
यो क्या नाज़ है होर क्या राज़ है
सुन्या हक़ मोहिउद्दीन की यो ज़बान
कहा फिर तो बहुती च हो मेहरबान
यो क्या बात कहते हो पीराने पीर
मुजे क्या जो बूजे हो तुमने हक़ीर
जो चाहो सो सब है ओ मेरे मने
खुदाई है मेरी सो मेरे कने
यो सुन कर सो रब के तरफ़ सू कलाम
दिये जवाब फिर ग़ौसुल आज़म ने तमाम
अहे यो बाता सुनाता है या
खुदाई कू तेरे करूँ लेके क्या
सुनो ऐ मुरीदा तुमें खासो आम
वे परवाई हज़रत की कू दिल तमाम
कहे फिर जनाबे इलाही के बीच
के होकर मुराक़िब में अखिया कू मींच
ऐ साहब सत्तार ऐ किर्दगार
के ऐ खालिक़ ख़ल्क़ परवर दिगार
जो थी चीज़ मेरी सो लायके क़दर
सो आ के च तू ने दिया बात कर
ऐसा क्या मँगू तुज कने ज़ूल जलाल
जो कहता है मागो मुजे तूँ इबताल
कहा हक़ ने ऐसे ओ क्या चीज़ है
के मैं रब हू मेरे सूँ सब नीज़ है
दिये जवाब फिर ग़ौस अमजद ने दें
नबूवत दिया तू मुहम्मद कतें
विलायत अली पर किया आशकार
दिये दुलदुल क्या साहबे जुल्फ़ेकार
शहादत दिया भेज हुसनेन पर
अली फ़ातिमा के जिगर ओ नूरे ऐन पर
यो तीनों शयाँ तूँ दिया तीन कूँ
अतया क्या मगूँ माज के दीन कूँ
भई इसते ज्यादा है क्या तेरे लगन
मँगो कर कता है सो ऐ जुल मिनन
यो सुन ग़ौस के मुख सते बात जब
किते वक़्त लग जवाब बोल्या न रब
कहा फिर किते वक़्त के बाद फिर
अहै सच तुमें कहूँ ऐ दस्तगीर
वले अब तूँ ओ शै के सानी नही
जो देऊँ अतिया अब सो तेरे तंई
भला अपने दिल कूँ करो मत मलूल
रखो उस कतै खोल मानिन्द फूल
मेरा नाम क़ादिर है साहबे सकत
मेरे कस ते ना हो सके मारफत
सो यो नाम क़ादिर का मैं तुज दिया
कुतुब ग़ौस पर तुज कूँ फ़ायक़ किया
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