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मसनवी बहराम गुलअन्दाम

तवई

मसनवी बहराम गुलअन्दाम

तवई

दे साकी मुजे जाम भर कर शराब

मैं जल कर बिरह ते हुआ हू कबाब

सुराही को तू कॉ ते हुई निकाल

हलीमी (?) प्याजे में याकूत डाल

दीवाना हूँ दे जाम पूरा मुजे

के विरह दिया है धतूरा मुजे

उसी तै करता हूँ दीवानगी

गवा अक़ल अपना मै दीवानगी

मगर मद की मस्ती सू खामोश हूँ

अथा देखता है तू बेहोश हूँ

प्याला दिया भर के साकी निहछल

झमकता सूरज के नमन झलझल

पिया शाह बहराम लेकर शराब

सटया मू मे यक दाना कवाब

बुला शाह मजलिस मे सेफ़ोर की

दोनो भाई खुमताल खबतूर (?) की

नज़दीक अपने मसनद पर बिटला

किया मस्त तीनो कू प्याला पिला

महन्दस के देह हात में जाम शाह

कहा यों ज़वान खोल बहराम शाह

देखा हूँ ले ग़म ज़माने ते मैं

अपस के सो बख़्त आज़मा के तैं

यो मुद्दत भर्या मैं सो ज्यूँ आफ़ताब

किया नही हूँ यक रात सुख सते ख़ाब

कोई अपने हाल पर ज्यूँ अब हाल

यो जंगल में रोता है होकर निढाल

कोई बाग कूँ मारता ज़ेर कर

ज़मीन के ऊपर डालता घेर कर

कोई अपने सैफ़ोर सते सक रंग

खड़े होके रहता लेकर फ़रंग

कोई सर मगर का पकड़ काट कर

....................................................

तू हिकमत सूँ लकड़ी के तोते कू बात

करेगा अगर आदमी के संगात

तू फत्तरी की मछली अगर रास कर

तिरावेगा बहुत फ़न सू पानी उपर

तूँ यो सब बड़े हम जिते कर जान

नन्हें काम थे यो समज है सो जान

खुदा कू समजना बड़ा काम है

जिते काम उस काम के आगे खाम है

खुदा कू उन पड़ने के तीन चीज़ है

वो तीन चीज़ जिस नहीं सो नाचीज़ है

वाला जो तूँ मिल सो उस यार कूँ

के वो निपट है अपने करतार सू

खुदा सूँ जो कोई निपट है उस्तवार

सो उन पर खुदा भोत धरता है प्यार

अगर तू नेका है तो मिल निपट सूँ

जो इस सार का होयगा निपट तूँ

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