वाह वाह बुलबुले गुलज़ार इश्क़
वाह वाह ऐ पंछिये पस्मार? इश्क़
शौक़ सूँ दिल के ज़रा मरगूल उठ
दर्द दिल मीठे सदा सूँ बोल उठ
एकदम इलहान दाउदिये ऊचा
जीव को जग के कर अपस्का मुब्तिला
ज़िरह दाऊदी की ख़्वाहिश है अगर
इस लव्हे के नफ़्स को ज्यों मोम कर
जब लव्हा यह मोम नमने होवे नरम
इश्क़ में ज्यों आवे दाउदी करम
एक दीवाना था नंगा आज़ाद दिल
ख़ल्क़ को कपडयॉ सूँ देखा शाद दिल
पस कहें या रब मुझे भी कुछ उड़ा
काँपता हू ठंड में मैं हुड़हुड़ा
तब दिया हातिफ़ ने उसको यो निदा
धूप में जा बैठ ऐ मर्दे गदा
हस के दीवाना दिया उसका जवाब
कहा नहीं कुछ तुझ कने बिन आफ़ताब
भई निदा आया के दस दिन सबर कर
जे मुकर्रर है सबूरे को अजर
यह निदा सुन ओ दिवाना चुप रहा
आस करता ठंड-बारा सब सहा
ताके दस दिन बाद न चाहा यक रवा
गूदड़े जूने नवे थिगले लगा
पस कहा दीवाना या रब आज लग
ख़िरक़ा सीने में रहा था क्या बिलग
या ख़ज़ाने में नवे कपड़े न थे ?
या गवाँने गये थे सो सपड़े न थे ?
जो जुने थिगले सिया है इस वज़ा
कुछ अजब तेरी क़दर है और क़ज़ा
यों च है तेरी इनाअत परवरी
कॉ ते सीकिया है तूँ यह दरजीगिरी
।। दरबयान उजर आउदने मोर ।।
मोर आया बाद अजाँ आपुस सवार
जिसके हर एक पर में कई नक़्शो निगार
नाज़ सूँ पग पग आँगे धरने लग्या
जल्वा उरूसे नमन करने लग्या
पास हुदहुद के अव्वल आया नज़दीक
याद कर फ़िरदोस को रोया अदीक
बाद अजाँ बोला के मुज सूँ एक गुनाह
बहिश्त में सादिर हुआ है आह आह
भार डाले हैं मुझे तिस्ते हनोज़
है मुझे उस रोज़ ते सीने में सोज़
गरचे जिब्रील हूँ पंखियाँ केरा
शर्मिन्दा है उसते अब तक जिव मेरा
याद जब फ़िरदोस का आता है बाग़
जानो तन होता है सकल दाग़ दाग़
काँ सू मैं बारे लगाया मार सूँ !
जिये पडया हूँ दूर हक़ के प्यार सूँ
ज्यों छूटा है हाथ सूँ मेरा वतन
रात दिन रोता हूँ मैं आदम नमन
है एता यह आरजू मेरे तधाँ
जे मुझे ले जावे कोई मेरे मकाँ
नंई एता सेमुर्ग़ की पखा मुझे
बस है जन्नत बीच एक गज जागा मुझे
।। जवाब दादन हुदहुद ।।
पस कहा हुदहुद के ऐ सुन रे गँवार !
बादशाह के घर में तूँ मँगता है ठार !
क्यों मिलेगा घर तुझे चुप शाह का ?
होएगा क्यों महारस उस दरगाह का ?
जा तूँ अव्वल बादशाह का हो नफ़र
बाद अर्ज़ा जा देख उसका दारो घर
घर धनी के बाज घर क्या काम आय ?
कोई खाली घर में क्या आराम पाय ?
क्या है जन्नत एक घर खाली पड़ा
गर चे दिसता है तुझे खाली बड़ा
क्या बड़ा घर क्या नन्हा घर जुज़ व कुल
हमें धनी के बाज सब यो बद असल
घर अगर होना तो जा ढुँढ ले धनी
पाक मुतलक़ नाँव है जिसका ग़नी
यह बहिश्त उसका है एक अदना मकान
गर चे नर्ई हैं कोइ मकाँ उस्का ठिकान !
के अबस ढूँढता है तू जन्नत में घर
कर नको आला सूँ अदना पर नज़र
।। हिकायते शागिर्द बा उस्ताद सवाल कर्द ।।
एक था शागिर्द लिये साहब कमाल
उन किया उस्ताद सूँ अपने सवाल
हज़रते आदम थे हक़ के ख़ास ज्यो
भार डाला उनको भी जन्नत सू क्यों ?
पस कहा उस्ताद ने शागिर्द साथ
असल में थे लिये बुजुर्ग आदम के ज़ात
जो रखी फ़िरदोस पर टुक इक नज़र
ग़ैब के हातिफ़ ने यूँ लाया खबर
ग़ैर को जिन कोइ लोडया मुझको छोड़
मुख उसका लेऊँ मैं उसते मरोड़
छीन लेऊँ जे कुछ अछे सो बेदिरंग
है मेरे ग़ैरत में ये नामोस व नंग
जिसको मेरे बाज जिसका दम अछे
उसके दुख देऊ गर चे वो आदम अछे
नंई अगर बातिन में मेरा राज़दाँ
सर पै उसके ला सटूँ ग़म के पहाड़
जान जानाँ तूँ मिला दे ऐ सुभान
बल्के सट जानाँ पो अपने वार जान
।। दरबयान उज्र आउदरन बत ।।
आई बत नहा धो के पानी सूँ निकल
पैन कपड़े पाक तर उजले निझल
बात काढ़े जे अझूँ लग है कहाँ
मुज सरीके पाकदामन दर जहाँ
सब पंखियाँ में मैं हूँ अज़हद पाकतन
पाक जागा पाक जामा पाक मन
मैं चलूँ ज्यों औलिया पानी पो अब
गर करामत कोई करे मुझ सूँ तलब
बल्के पानी सूँ च है मेरा जनम
ना रहूँ पानी बिना मैं एक दम
कुछ अगर ग़म दिल में मेरे आये जब
देखते पानी को धोया जाय सब
ताज़गी पानी सूँ मुजकूँ है मुदाम
मैं चलूँ खुश्की पै क्यों ऐ नेकनाम
आ लग्या है काम मुज कूँ नीर सूँ
नीर सूँ बेशक़ है आलम की हयात
क्यूँ सटूँ मैं नीर सूँ अब धोके हात
नई बियाबाँ पर मुजे चलने को पग
चल सकूँ मैं किस वज़ा सीमुर्ग़ लग
जिस्को होवे इब्तिदा सूँ हाल सूँ
ओ कहो सीमुर्ग़ लग अपड़े सो क्यूँ ?
।। जवाब दादन हुदहुद ।।
पस कहा हुदहुद के ऐ पानी के मीत
के बँधी है इस बज़ा पानी सूँ पीत
छंड क्यूँ पकड़ी तूँ पानी केरा
नंई रहा मुख पै तेरे पानी ज़रा
गंद अपस का कोई........ पानी सूँ धोय
तू उस पानी सूँ अगला गंद होय
घर भरे है ............... साथ दिल
घर भरे तूँ है तो जा पानी से मिल
पाक पानी के नमन तूँ को लगूँ
घट भर्यो का हर सुबह देखेंगे मूँ
गर नहीं बावर तो करना टुक क़यास
क्या गंदे मछली नमन तेरे है बास !
।। हिक़ायत शख्स दीवाना ।।
एक दीवाना था जिसे स्याने के गत
कोई पूछा उसकूँ क्या है यो जगत
जवाब देता उनके ये धरती फ़लक
अर्स कुर्सी आदमी जिनको मलक
एक क़तरे का है यो नक़्शो निगार
एक क़तरे का है यह सब आश्कार
एक बुँद पानी ते है सब का जमाव
एक बुँद पानी ते है सातों दर्याव
क्या है यो धरती सो पानी पर निगार
नक़्श को पानी के नंई कुछ ऐतबार
सख़्त भी बुनियाद है नक़्शे आब
होवेगा यह नक़्श एक पल में ख़राब
तूँ नको दिल बन्द अपस्का आप सूँ
कर हज़र इस बात के असबाब सूँ
।। दरबयान उज्र आउर्दन कब्क ।।
कब्क ख़ुश गुफ्तार आई बाद अज़ाँ
दिल सूँ ख़ुर्रम, मुक सो रवन्दाँ शाद माँ
लाल जैसी चोंच चिक मानिक नमन
बाक करते झड़ पड़ें मुख सूँ रतन
नागहाँ परबत सूँ ख़ुश आई उतर
पस कही हुदहुद कूँ ऐ आली, गौहर
है तुझे दर अस्ल गौहर के लगन
लाल के इश्क़ो हुई हूँ कोहकुन
रातों है मुझ कूँ गौहर की तलाश
राज़ मेरा हो गया है जग पै फ़ाश
लाल के आतिश पड़े हैं दिल मने
संग गुल जाता है जिसते तिल मने
क्या है मेरी भूक सो एक दो कँकर
बस है मेरी प्यास कूँ आबो गौहर
इस दुनिया जिसकूँ ऐसा क़ूत होय
क्यों न मौजे खून रघ याकूत होय
जब से गौहर का पड़या है दिल में ताब
रैन को निकल्या दिसे मुँज आफ़ताब
तू गौहर ढूँढने में है नियत रात-दिन
नंई है जिव को सब्र एक तिल एक छिन
न्हाट गई भूक और उड़ गया है ख़ाब
दिल पड़या है कशमकश में ज्यों तनाब
इश्क़ गौहर का अगर नंई जिस तिसे
उसो मुँज कू जिस्म है जौहर दिसे
जिस्म है जौहर कहो क्या आये काम?
ज़िन्दगी नाचीज़ है उसकी तमाम
मैं जो हूँ उश्शाक़ गौहर मस्त मस्त
जानते हैं मुजको सब गौहर-परस्त
नंई है गौहर के बाज मुँज कूँ जुस्तजू
जीब पर मेरी है नित ये गुफ़्तगू
ग़म सूँ ग़ौहर के है ये जो मुब्तिला
जिसके दुख सूँ दिल है एक लहू का डला
बस है मुज को लाल गौहर का ख़याल
किस वजे सीमुर्ग का लूटूँ विसाल
मैं कहाँ सीमुर्ग़ की दरगाह कहाँ ?
हर गदा को पादशाह तक राह कहाँ ?
।। जवाब दादने हुदहुद ।।
बोल उट्ठा तिस बाद हुदुहुद बेदिरंग
क्या सबब करती है इतना उजरे लंग?
क्या सबब खाती है तूँ ख़ूने ज़िगर
रंग गौहर देख कर बद गोहर
क्या है गौहर अस्ल में रंगी कहाँ ?
रंग पर तूँ भूल मत तू ऐ सुभान
जे कहीं जावे निकल कर उसते रंग
संग का आखिर दिसेगा तुजकूँ संग
तालिब यो रंग को ढूँढता नंई
जौहरी तो संग को ढूँढता नंई
।। हिकायत अंगुशतरी हज़रत सुलेमान अले सलाम ।।
इस जहाँ में एक यो गौहर न था
जे सुलेमाँ के अँगूठी पर अथा
चौं कधन उसका पड़या था जग में हाँक
वो नगीना अस्ल में था पाँव टाँक
जब सुलेमाँ पाय वो अंगुश्तरी
आय सब फ़रमान मं जिन्नो परी
तख़्त कई फ़रसंग का हाज़िर हुआ
हुक्म सूँ उनके चले नित बर हवा
बाद अजाँ वो बादशाहे नामदार
देख उस अज़मत को थे कीते बिचार
सब करामत उस कँकर ते है मुझे
जे मँगूँ सो होवे हाज़िर शै मुझे
गर न होता पास मेरे यह कँकर
काँ सू होता मुज को इतना करों फ़र ?
क्या करूँ मैं इस कँकर का ऐतबार
ना दिसे मुजको तो हरगिज़ पायेदार
ये कँकर मुँजको तो सेवट ना निभाय
नई जिसे सेवट सो ओ क्या काम आय ?
जिस कँकर सूँ एक घड़ी आराम नंई
मुल्क लश्कर सूँ भी उसको काम नंई
काम ना आता दिसे ये मुल्को माल
देव मुझे या रब, तूँ मिल्के बेज़वाल
पस दुनियां का माल और न्यामत लुटायँ
और अपै जंबील बन कर बेच खायँ
बावजूद उस ख़ौफ़ के ओ शाह को
दौलते दुनिया ने मारे राह को
ता सुगल पैगम्बराँ के बाद अपैं
पाँच सौ बरसाँ को जावे बहिश्त में
ये कँकर उस शाह सूँ ऐसा करे
पस कहो तुझ कब्क सूँ क्या करें ?
यो गौहर जो संग है तो संग नको
जान जाना बाज भी कुछ मंग नको
क्या करेगा तू गौहर को ऐ अजब
जौहरी का दिल में दायम धर तलब
।। उज्र आवुर्दन हुमाँ ।।
बाद अजाँ आया हुमाँ बा करों फ़र
छाँव जिसकी बादशाहाँ का छतर
बोलने लागा के ऐ पंछी हूँ मैं
.................................................
अस्ल में धरता हूँ मैं हिम्मत बुलन्द
गोशो उज़लत में करता हूँ आनन्द
नफ़्स को अपने रखा हूँ खार कर
ना दिया इज्ज़त मुझे हक़ प्यार कर
जब मँगे यो नफ़्स एक दो रोज आड़
जान कर उसको क़ूत देता हूँ हाड़
हड़ नमन उसको समजता हूं जलील
बस है मुँजकू ये बुज़ूर्गी की दलील
जानते नंई जे हुमाँ मेरा है नाव
पस हुमाँ हू क्यों न होवे मेरी भी छाँव
गर फ़रीदूँ हैं .......... भर जमशीद शाह
छाँव सूँ मेरे हुए बादशाह
साया परवरदा है मेरे सब मुलूक
.............. ................. ........................
बादशाहाँ खुश हैं मेरे नाँव सूँ
बादशाही पावें मेरी छाँव सूँ
होवे कब सीमुर्ग़ की परवा मुझे ?
क्या सबब उस्का अछे सखा मुझे ?
।। जवाब दादने हुदहुद ।।
पस कहा हुदहुद के ऐ नफ़्से ग़रूर
छाँव अपनी दूर कर जा याँ सूँ दूर
क्यों कना तुझ साहबे दौलत अताल
है किते......नमने जो तूँ हद पर खुशहाल ?
ना पड़ो यो छाँव तेरी किस पो आज
काश के होता तुझे उस हड़ सूँ लाज
फर्ज़ कीता मैं के जग के बादशाह
होते तेरी छाँव सूँ आलमपनाह
लेकिन आख़िर बादशाही के सबब
जा पड़ेंगे दुख मने महशर के शब
गर न होती छाँव तेरी आह आह
क्यों बला में पड़ते तेरी बादशाह
।। हिकायत सुलतान महमूद ।।
अज़ कज़ा महमूद सुलतॉ को किने
एक निस देखा मगर सपने मने
पस पूछा उसने वोंही राज़े निहाँ
क्या है ऐ सुलतान तेरा हाल यहाँ
जवाब देता उनके मुज दुख देन को
नाँव मेरा करके सुल्ता ले नको
बोलते थे चुप अबस ग़लत
मुंज बेचारे को छुपे सुल्तां ग़लत
बोलना सुल्तँ उसे है साज़ बार
सल्तनत जिसके दायम बरक़रार
मैं तो एक बन्धा परेशाँ नर हूँ आज
नाम सुलतानी सूँ आती मुज को लाज
फट पड़ो वो सल्तनत जिसका हिसाब
जवाब देना आ लग्या है दर अज़ाब
काश के दुनिया में होता मैं गदा
तो रहता आराम सूँ व्हाँ मैं सदा
ख़ाकरो बी सब सूँ बेहतर था मुझे
ना छतर हो तख़्त यो अफ़सर मुझे
जाव जल कर उस हुमाँ के बालो पर
ना सटे साया अपस का हीस पर
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