सुध-बुध खो गई बाँवरी जिस दिन खुला फ़रेब
नदिया में गागर मिली पनघट पर पाज़ेब
अंबर तक लपटें उठीं जला गगन का छोर
मेरी बिरहन थी जहाँ धुआँ उठा उस ओर
आखिर वो आ ही गयी तोड़ स्वर्ग के द्वार
गरज रही है मेघ में पायल की झनकार
धुआँ-धुआँ नैनन हुए सब कुछ दिया जलाए
खड़ी है जोगन बाम पर मन में अगन लगाए
चिता मिरी जलने लगी समय भि बीता जाए
एक बार मुस्काइ दो खड़े हो सीस झुकाए
रात उमस में तर हुए लेकिन खुले न बाब
अलगानियों पर नैन की दिन भर सूखे ख़ाब
पाकर नैनन में उसे थिरक उठा था नीर
आँच लगी जब देर तक उफ़न गयी तस्वीर
मिले जो नैनन मद भरे धड़का मन का द्वार
तन के इस दरबार का मन है चौकीदार
जाने क्यूँ भीगी रहीं पलके सारी रात
अनस घमस के बाद ही होती है बरसात
छलकी गागर नैन की हल्क़ों पर कजराई
'अनस ' घड़ौंची सील गइ आने लगी है काई
मछली जोगन हो गयी छोड़ दिया है ताल
हमने अंजाने कभी फेंक दिया था जाल
ज़ब्त न आँसू हो सके इतना बढ़ा दबाव
आखिर मन के भात को देना पड़ा पसाव
आँखों में पानी भरा पानी में गिर्दाब
ख्वाब हथेली पर लिए खड़ा रहा तालाब
शराबोर पलकें हुईं काजल गया है फैल
अश्क़ों के सैलाब में बिखर गई खपरैल
मन के भीतर प्रेम है बाहर कवच कठोर
उतना मीठा जल मिले जितना गहरा बोर
हमसे दिल बहला लिया देदी फिर रुसवाई
दिया जला कर फूँक दी जैसे दिया सलाई
सागर में फौरन घुली कब नदिया की धार
कई दिनों तक बीच में खड़ी रही दीवार
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.