सय्यद मुहम्मद हुसैनी को ख़्वाजा बंदा-नवाज़ गेसू-दराज़ के नाम से जाना और पहचाना जाता है। उनकी पैदाइश 13 जुलाई 1321 ई’स्वी और वफ़ात 1 नवंबर 1422 ई’स्वी में हुई। ख़्वाजा बंदा-नवाज़ गेसू-दराज़ सिलसिला-ए-चिश्तिया के मशहूर सूफ़ी और ख़्वाजा सय्यद नसीरुद्दीन चिराग़ दिल्ली के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा हैं आप हज़रत मौला अ’ली के ख़ानदान से थे। उनके आबा-ओ-अज्दाद हिरात के रहने वाले थे। उन्हीं में से एक ने दिल्ली को अपना मस्कन बनाया। ख़्वाजा बंदा-नवाज़ की पैदाइश 4 रजबुल-मुर्रज्जब 721 हिज्री को हुई। उनके वालिद-ए- बुजु़र्ग-वार सय्यद यूसुफ़ एक पाक-बाज़ इन्सान थे और ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया के दस्त-गिरफ़्ता थे। सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने एक-बार दारुल-हुकूमत को दौलताबाद मुंतक़िल किया था। उस की मुसाहिबत में कई उ’लमा, मशाइख़ और माहिरीन-ए-दीनयात भी गए थे। ख़्वाजा बंदा-नवाज़ गेसू-दराज़ के वालिदैन ने भी नक़्ल-ए-मक़ाम किया। जब वो चार साल के थे तो उन के मामूँ मलिकुल-ओमरा इब्राहीम मुस्तुफ़ाई दौलताबाद के वाली बनाए गए थे। ख़्वाजा बंदा-नवाज़ की अहम ता’लीमात में समझ और शुऊ’र, सब्र-ओ-इस्तिक़लाल और दीगर मज़ाहिब के तईं तहम्मुल और रवादारी थी। उनका आस्ताना और मज़ार शहर-ए-गुलबर्गा दकन में है। सुल्तान ताजुद्दीन फ़ीरोज़ शाह की दा’वत पर वो 1397 ई’स्वी में गुलबर्गा, दकन तशरीफ़ ले गए। पंद्रह साल की उ’म्र में वो दिल्ली लौट आए थे ताकि ख़्वाजा सय्यद नसीरुद्दीन चिराग़ दिल्ली के ज़रिऐ’ उनकी ता’लीम-ओ-तर्बियत हो। वो हज़रत कैथली, हज़रत ताजुद्दीन बहादुर और क़ाज़ी अ’ब्दुल मुक़्तदिर के एक जोशीले शागिर्द थे। एक तवील अ’र्सा तक आपने दर्स -ओ-तदरीस का सिलसिला भी क़ाएम रखा फिर 1397 में गुलबर्गा आए और नवंबर 1422 ई’स्वी में वफ़ात पा गए।
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