हज़रत शाह नियाज़ अहमद बरेलवी सिलसिला-ए-चिश्तिया निज़ामिया के मा’रूफ़ बुज़ुर्ग और हिन्दुस्तान के मशहूर सूफ़ी शाइ’र गुज़रे हैं। आप हिन्दुस्तान के सूबा पंजाब के क़स्बा सरहिन्द रियासत-ए-पंजाब में 1173 हिज्री में पैदा हुए| अपने वालिद हकीम शाह रहमतुल्लाह के साया-ए-आ’तिफ़त से महरूम हो गए| वालिदा ने परवरिश और ता’लीम-ओ-तर्बियत के फ़राइज़ अंजाम दिए| मक़ामी उ’लमा-ओ-फोज़ला की निगरानी से फ़राग़त हासिल की| आपका नाम पहले राज़ अहमद रखा गया बा’द में उसे नियाज़ अहमद कर दिया गया मगर लोग आपको नियाज़ बे-नियाज़ के नाम से जानते हैं| बे-नयाज़ का मतलब साफ़ है कि मख़्लूक़ से बे-नियाज़ थे| आप वालिद-ए-बुजु़र्गवार की तरफ़ से शाहाँ बुख़ारा के ख़ानदान से अ'ल्वी थे और वालिदा माजिदा की जानिब से हुसैनी| ता’लीम की ग़र्ज़ से देहली गए और वहाँ पर ख़्वाजा फ़ख़्रुद्दीन चिश्ती देहलवी से ज़ाहिरी और बातिनी उ’लूम हासिल किया| सतरह साल की उ’म्र में ही तफ़सीर, हदीस, उसूल और मा’क़ूलात-ओ-मंक़ूलात में उ’लूम हासिल किया| ख़्वाजा फ़ख़्रुद्दीन देहलवी ने उन्हें कस्ब-ए-बातिन के लिए बैअ’त कर लिया| जल्द ही अपने मुर्शिद के ख़लीफ़ा हुए और रुश्द-ओ-हिदायत हासिल करने लगे| शाह नियाज़ बरेलवी ख़्वाजा फ़ख़्रुद्दीन देहलवी के ख़लीफ़ा में मुम्ताज़ हैसियत रखते थे| अपने पीर-ओ-मुर्शिद की सलाह पर ही उन्होंने बरेली में सुकूनत इख़्तियार की| हिन्दुस्तान में तो मा’रूफ़ थे ही बैरून-ए-ममालिक मानिंद अफ़्ग़ानिस्तान, समरक़ंद, शीराज़, बद्ख़शाँ और अ’रब ममालिक में भी उनके अ’क़ीदत-मंद मुरीद और ख़लीफ़ा बड़ी ता’दाद में मौजूद थे| नियाज़ बरेलवी ने सिलसिला-ए-क़ादरिया के मशहूर बुज़ुर्ग हज़रत सय्यद अ’ब्दुल्लाह बग़्दादी रामपुरी से भी रुहानी इक्तिसाब-ए-फ़ैज़ किया था और उनके दामाद भी हुए थे। शाह नियाज़ बे-नियाज़ साहिब-ए-दीवान शाइ’र भी थे| उनकी शाइ’री का मेहवर इ’श्क़-ए-इलाही था| नियाज़ बरेलवी का कलाम आज भी ख़ानक़ाहों की महाफ़िल में पाबंदी से पढ़ा जाता है। नियाज़ बरेलवी 6 जमादीउस्सानी 1250 हिज्री को बरेली में विसाल किया और वहीं मद्फ़ून हुए| आपकी ख़ानक़ाह नियाज़िया हिन्दुस्तान की मा’रूफ़ ख़ानक़ाहों में से एक है।
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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