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Sufinama

लेखक : दारा शिकोह

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशन वर्ष : 2013

पृष्ठ : 50

ISBN संख्यांक / ISSN संख्यांक : 81-87944-88-9

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पुस्तक: परिचय

زیرنظرکتاب، شاہی مغل خانوادے کے سب سے فاضل اور کئی کتاب کے مصنف کی فارسی کتاب "رسالہ حق نما" کا اردو ترجمہ ہے، یہ ترجمہ عادل اسیر دہلوی صاحب نے کیاہے،رسالہ حق نما میں دارا شکوہ نے تصوف والہیات کے دقیق مسائل سےبحث کی ہے اور ان اذکار و اشغال کی توضیح کی ہےجن پر عمل کر نے سے حق تک رسائی آسان ہوجاتی ہے،اس رسالےکو چھ فصلوں میں تقسیم کیا گیاہے،یہ تقسیم کچھ اس طرح ہے، پہلی فصل میں عالم ناسوت،دوسری میں عالم ملکوت،تیسری میں عالم جبروت،چوتھی میں عالم لاہوت،پانچویں فصل میں ہویت اور چھٹی فصل میں وحدت کےبارےمیں وضاحت کی ہے، مندرجہ بالا فصلوں کےعناوین سے اس کتاب کی اہمیت کا اندازہ لگایا جا سکتاہے۔ دارا شکوہ صوفی منش تھے، وہ شہزادے سے زیادہ عالم ، عوامی تخیل میں مغلوں کا ایک خاص مقام ہے۔ مغل کنبہ میں دارا شکوہ ایک انوکھی اور حیرت انگیز شخصیت کے مالک تھے۔

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लेखक: परिचय

दारा शिकोह मुग़ल शहनशाह शहाबुद्दीन शाहजहाँ अव्वल और मुम्ताज़ महल का बड़ा बेटा और मुग़ल शाहज़ादा था। मज़ाफ़ात-ए-अजमेर में जुमआ’19 सफ़र 1024 हिज्री मुताबिक़ 20 मार्च 1615 ई’स्वी को पैदा हुआ।1633 ई’स्वी में वली-ए-अ’हद बनाया गया। 1654 ई’स्वी में इलाहाबाद का सूबेदार मुक़र्रर हुआ। बा’द-अज़ां पंजाब, गुजरात, मुल्तान और बिहार के सूबे भी उसकी अ’मलदारी में दे दिए गए। 1649 ई’स्वी में क़ंधार पर ईरानियों ने क़ब्ज़ा कर लिया। सल्तनत-ए-दिल्ली की दो फ़ौजी मुहिम उन्हें वहाँ से निकालने में नाकाम रही तो 1653 ई’स्वी में दाराशिकोह को ख़ुद उस के ईमा पर क़ंधार भेजा गया। उस जंग में उसे नाकामी का मुँह देखना पड़ा और ब-हैसियत-ए-कमांडर उस की साख़ मजरूह हुई| दारा शिकोह ने शाह मुहम्मद दिलरुबा के नाम अपने एक ख़त में वाज़ेह तौर पर तस्लीम किया है कि वो सरमद , बाबा प्यारे, शाह मुहम्मद दिलरुबा, मियाँ बारी, मोहसिन फ़ानी कश्मीरी, शाह फ़त्ह अ’ली क़लंदर, शैख़ सुलैमान मिस्री क़लंदर और शाह मुहिबुल्लाह साबरी इलाहाबादी जैसे सूफ़िया का दिल-दादा था और उनसे ख़ासी अ’क़ीदत भी रखता था। दारा शिकोह सरमद जैसे बुज़ुर्ग का शागिर्द था। फ़ारसी ज़बान बहुत अच्छी जानता था। वो ख़त्तात और एक बेहतरीन मुसन्निफ़ हुआ है। 11 ज़ुल-हिज्जा 1069 हिज्री मुवाफ़िक़ 30 अगस्त 1659 ई’स्वी को वफ़ात पाई और मक़्बरा हुमायूँ में दफ़्न हुआ।


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