दारा शिकोह मुग़ल शहनशाह शहाबुद्दीन शाहजहाँ अव्वल और मुम्ताज़ महल का बड़ा बेटा और मुग़ल शाहज़ादा था। मज़ाफ़ात-ए-अजमेर में जुमआ’19 सफ़र 1024 हिज्री मुताबिक़ 20 मार्च 1615 ई’स्वी को पैदा हुआ।1633 ई’स्वी में वली-ए-अ’हद बनाया गया। 1654 ई’स्वी में इलाहाबाद का सूबेदार मुक़र्रर हुआ। बा’द-अज़ां पंजाब, गुजरात, मुल्तान और बिहार के सूबे भी उसकी अ’मलदारी में दे दिए गए। 1649 ई’स्वी में क़ंधार पर ईरानियों ने क़ब्ज़ा कर लिया। सल्तनत-ए-दिल्ली की दो फ़ौजी मुहिम उन्हें वहाँ से निकालने में नाकाम रही तो 1653 ई’स्वी में दाराशिकोह को ख़ुद उस के ईमा पर क़ंधार भेजा गया। उस जंग में उसे नाकामी का मुँह देखना पड़ा और ब-हैसियत-ए-कमांडर उस की साख़ मजरूह हुई| दारा शिकोह ने शाह मुहम्मद दिलरुबा के नाम अपने एक ख़त में वाज़ेह तौर पर तस्लीम किया है कि वो सरमद , बाबा प्यारे, शाह मुहम्मद दिलरुबा, मियाँ बारी, मोहसिन फ़ानी कश्मीरी, शाह फ़त्ह अ’ली क़लंदर, शैख़ सुलैमान मिस्री क़लंदर और शाह मुहिबुल्लाह साबरी इलाहाबादी जैसे सूफ़िया का दिल-दादा था और उनसे ख़ासी अ’क़ीदत भी रखता था। दारा शिकोह सरमद जैसे बुज़ुर्ग का शागिर्द था। फ़ारसी ज़बान बहुत अच्छी जानता था। वो ख़त्तात और एक बेहतरीन मुसन्निफ़ हुआ है। 11 ज़ुल-हिज्जा 1069 हिज्री मुवाफ़िक़ 30 अगस्त 1659 ई’स्वी को वफ़ात पाई और मक़्बरा हुमायूँ में दफ़्न हुआ।
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