Sufinama

तोरे रूप की धाक जो जग में सुनी बिन देखे जिया को फंसा बैठा

मुमताज़ गंगोही

तोरे रूप की धाक जो जग में सुनी बिन देखे जिया को फंसा बैठा

मुमताज़ गंगोही

MORE BYमुमताज़ गंगोही

    तोरे रूप की धाक जो जग में सुनी बिन देखे जिया को फंसा बैठा

    यूँ ही कहने को तन में है जान मोरे सुख चैन तो सिग़रा गंवा बैठा

    मुझे उस की खबर थी शाम सुंदर जिया ले के फिरा दोगे अपनी नजर

    यहाँ अपना मरन है जगत की हंसी तू मदीना नगर को बसा बैठा

    मोरी नारी तबीबो ने देख कहा कोई उस की जगत में नहीं है दवा

    उसे काल बना हो कल कभी बुरा रोग ये चित्त को लगा बैठा

    मोहे चित्त से बसा राजू तू ने सजन ये बता दो कि हारा हूँ कौन बचन

    जो खता भी हुई तो हुई ये ख़ता तोरी पीत का बोझ उठा बैठा

    कोई धहर मी ऐसा जगत में मिला मोरी बिप्ता पे आए जो उस को दया

    मोरी बत्तीयों को हँस के टलाए देव जिसे बिप्ता को अपनी सुना बैठा

    हुई पीत तुहारी तो छोटा जगत नहीं अपने-पराए की कोई सुरत

    तो चैन मिली तो तूही मिला यूँ ही बैरी जगत को बना बैठा

    तोरे नाम की माला में फेरत हूँ दिन रैन महा दुख झेलत हूँ

    तन राखा मलो और जोग लिया तोरी याद में धोनी रहा बैठा

    मोहे आग बिरह की जलावत है कोई दारू उस की बतावत है

    यसरिब के धनी करो अब तो दया ‘मुम्ताज़’ ने तो दिल को जला बैठा

    स्रोत :
    • पुस्तक : नाला-ए-मुम्ताज़ भाग-4 (चमन-ए-मनाक़िब) (पृष्ठ 62)

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