अज़ ख़ुदावंद वली-अत्तौफ़ीक़ दरख़्वासन-ए-तौफ़ीक़-ए-रिआ'यत-ए-अदब दर हमः हालहा-ओ-बयान कर्दन-ओ-ख़ामत-ए-ज़ररहा-ए-बे-अदबी
हमारी ख़ुदा से इल्तिजा है जो हमारा मददगार है कि वह हमें हर हाल में रि’आयत-ए-अदब की ख़्वाहिश से आशनाई अता करे बे-अदबी की नुहूसत के बारे में बयान
अज़ ख़ुदा जोऐम तौफ़ीक़-ए-अदब
बे-अदब महरूम शुद अज़ लुत्फ़-ए-रब
हम ख़ुदा से अदब की तौफ़ीक़ चाहते हैं
बे-अदब ख़ुदा के फ़ज़्ल से महरूम रहा
बे-अदब तन्हा न ख़ुद रा दाश्त बद
बल्कि आतिश दर हमः आफ़ाक़ ज़द
बे-अदब ने न सिर्फ़ अपने आपको ख़राब किया
बल्कि उसने तमाम अतराफ़ में आग लगा दी
मायदः अज़ आसमाँ दर मी-रसीद
बे-सुदा'-ओ-बे-फ़रोख़्त-ओ-बे-ख़रीद
ख़्वान आसमान से पहूँचता था
ब-ग़ैर ख़रीदे और बेचे, और ब-ग़ैर कहे सुने
दरमियान-ए-क़ौम-ए-मूसा चंद कस
बे-अदब गुफ़्तंद कू सीर-ओ-'अदस
मूसा की क़ौम में से चंद अश्ख़ास
बे-अदब ने कहा लहसुन और मसूर कहाँ है?
मुंक़ता' शुद नान-ओ-ख़्वान-ए-आसमाँ
माँद रंज-ए-ज़र'ए-ओ-बैल-ओ-दासमाँ
आसमान से ख़्वान और रोटी बंद हो गई
खेती और कुदाल और दराँती का ग़म बाक़ी रह गया
बाज़ 'ईसा चूँ शफ़ा'अत कर्द हक़
ख़्वाँ फ़िरिस्ताद-ओ-ग़नीमत बर तबक़
फिर ‘ईसा ने जब सिफ़ारिश की, अल्लाह ने
ख़्वान और तबाक़ में माल-ए-ग़नीमत भेजा
बाज़ गुस्ताख़ाँ अदब ब-गुज़ाशतंद
चूँ गदायाँ ज़ुल्लः-हा बर्दाश्तन्द
फिर गुस्ताख़ों ने अदब छोड़ा
फ़क़ीरों की तरह बचा-खुचा उठा रखा
लाबः कर्द: 'ईसा ईशाँ रा कि ईं
दायमस्त-ओ-कम न-गर्दद अज़ ज़मीं
‘ईसा ने उनकी ख़ुशामद की कि ये
मुस्तक़िल है, और ज़मीन से ग़ाइब न होगा
बद-गुमानी कर्दन-ओ-हिर्स-आवरी
कुफ़्र बाशद पेश-ए-ख़्वान-ए-मेहतरी
बद-गुमानी और लालच करना
शाही दस्तर-ख़्वान पर ना-शुक्री होती है
ज़े-आँ गदा रूयान-ए-ना-दीदः ज़े-आज़
आँ दर-ए-रहमत बर ईशाँ शुद फ़राज़
उन फ़क़ीर-सूरत, लालच के नदीदों की वजह से
वो रहमत का दरवाज़ा उन पर बंद हो गया
अब्र बर नायद प-ए-मन-ए'-ज़कात
वज़ ज़िना उफ़्तद वबा अंदर जिहात
ज़कात न देने की वजह से अब्र नहीं आता है
और ज़िना-कारी से अतराफ़ में वबा फैलती है
हर चे बर तू आयद अज़ ज़ुल्मात-ओ-ग़म
आँ ज़े-बे-बाकी-ओ-गुस्ताख़ीस्त हम
तुझ पर जो ग़म की अँधेरियाँ आती हैं
वो बे-बाकी और गुस्ताख़ी की वजह से भी हैं
हर कि बे-बाकी कुनद दर राह-ए-दोस्त
रहज़न-ए-मर्दाँ शुद-ओ-ना-मर्द ऊस्त
जो शख़्स दोस्त के रास्ता में बे-बाकी करता है
मर्दों का रहज़न बना और वो ना-मर्द है
अज़ अदब पुर-नूर गश्तस्त ईं फ़लक
वज़ अदब मा'सूम-ओ-पाक आमद मलक
ये आसमान अदब से पुर-नूर बना
और अदब ही से फ़रिश्ते मा’सूम और पाक हुए
बुद ज़े-गुस्ताख़ी कसूफ़-ए-आफ़ताब
शुद 'अज़ाज़ीले ज़े-जुरअत रद्द-ए-बाब
सूरज गरहन गुस्ताख़ी की वजह से था
शैतान गुस्ताख़ी की वजह से मर्दूद-ए-बारगाह हुआ
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