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अज़ ख़ुदावंद वली-अत्तौफ़ीक़ दरख़्वासन-ए-तौफ़ीक़-ए-रिआ'यत-ए-अदब दर हमः हालहा-ओ-बयान कर्दन-ओ-ख़ामत-ए-ज़ररहा-ए-बे-अदबी

रूमी

अज़ ख़ुदावंद वली-अत्तौफ़ीक़ दरख़्वासन-ए-तौफ़ीक़-ए-रिआ'यत-ए-अदब दर हमः हालहा-ओ-बयान कर्दन-ओ-ख़ामत-ए-ज़ररहा-ए-बे-अदबी

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    अज़ ख़ुदावंद वली-अत्तौफ़ीक़ दरख़्वासन-ए-तौफ़ीक़-ए-रिआ'यत-ए-अदब दर हमः हालहा-ओ-बयान कर्दन-ओ-ख़ामत-ए-ज़ररहा-ए-बे-अदबी

    हमारी ख़ुदा से इल्तिजा है जो हमारा मददगार है कि वह हमें हर हाल में रि’आयत-ए-अदब की ख़्वाहिश से आशनाई अता करे बे-अदबी की नुहूसत के बारे में बयान

    अज़ ख़ुदा जोऐम तौफ़ीक़-ए-अदब

    बे-अदब महरूम शुद अज़ लुत्फ़-ए-रब

    हम ख़ुदा से अदब की तौफ़ीक़ चाहते हैं

    बे-अदब ख़ुदा के फ़ज़्ल से महरूम रहा

    बे-अदब तन्हा ख़ुद रा दाश्त बद

    बल्कि आतिश दर हमः आफ़ाक़ ज़द

    बे-अदब ने सिर्फ़ अपने आपको ख़राब किया

    बल्कि उसने तमाम अतराफ़ में आग लगा दी

    मायदः अज़ आसमाँ दर मी-रसीद

    बे-सुदा'-ओ-बे-फ़रोख़्त-ओ-बे-ख़रीद

    ख़्वान आसमान से पहूँचता था

    ब-ग़ैर ख़रीदे और बेचे, और ब-ग़ैर कहे सुने

    दरमियान-ए-क़ौम-ए-मूसा चंद कस

    बे-अदब गुफ़्तंद कू सीर-ओ-'अदस

    मूसा की क़ौम में से चंद अश्ख़ास

    बे-अदब ने कहा लहसुन और मसूर कहाँ है?

    मुंक़ता' शुद नान-ओ-ख़्वान-ए-आसमाँ

    माँद रंज-ए-ज़र'ए-ओ-बैल-ओ-दासमाँ

    आसमान से ख़्वान और रोटी बंद हो गई

    खेती और कुदाल और दराँती का ग़म बाक़ी रह गया

    बाज़ 'ईसा चूँ शफ़ा'अत कर्द हक़

    ख़्वाँ फ़िरिस्ताद-ओ-ग़नीमत बर तबक़

    फिर ‘ईसा ने जब सिफ़ारिश की, अल्लाह ने

    ख़्वान और तबाक़ में माल-ए-ग़नीमत भेजा

    बाज़ गुस्ताख़ाँ अदब ब-गुज़ाशतंद

    चूँ गदायाँ ज़ुल्लः-हा बर्दाश्तन्द

    फिर गुस्ताख़ों ने अदब छोड़ा

    फ़क़ीरों की तरह बचा-खुचा उठा रखा

    लाबः कर्द: 'ईसा ईशाँ रा कि ईं

    दायमस्त-ओ-कम न-गर्दद अज़ ज़मीं

    ‘ईसा ने उनकी ख़ुशामद की कि ये

    मुस्तक़िल है, और ज़मीन से ग़ाइब होगा

    बद-गुमानी कर्दन-ओ-हिर्स-आवरी

    कुफ़्र बाशद पेश-ए-ख़्वान-ए-मेहतरी

    बद-गुमानी और लालच करना

    शाही दस्तर-ख़्वान पर ना-शुक्री होती है

    ज़े-आँ गदा रूयान-ए-ना-दीदः ज़े-आज़

    आँ दर-ए-रहमत बर ईशाँ शुद फ़राज़

    उन फ़क़ीर-सूरत, लालच के नदीदों की वजह से

    वो रहमत का दरवाज़ा उन पर बंद हो गया

    अब्र बर नायद प-ए-मन-ए'-ज़कात

    वज़ ज़िना उफ़्तद वबा अंदर जिहात

    ज़कात देने की वजह से अब्र नहीं आता है

    और ज़िना-कारी से अतराफ़ में वबा फैलती है

    हर चे बर तू आयद अज़ ज़ुल्मात-ओ-ग़म

    आँ ज़े-बे-बाकी-ओ-गुस्ताख़ीस्त हम

    तुझ पर जो ग़म की अँधेरियाँ आती हैं

    वो बे-बाकी और गुस्ताख़ी की वजह से भी हैं

    हर कि बे-बाकी कुनद दर राह-ए-दोस्त

    रहज़न-ए-मर्दाँ शुद-ओ-ना-मर्द ऊस्त

    जो शख़्स दोस्त के रास्ता में बे-बाकी करता है

    मर्दों का रहज़न बना और वो ना-मर्द है

    अज़ अदब पुर-नूर गश्तस्त ईं फ़लक

    वज़ अदब मा'सूम-ओ-पाक आमद मलक

    ये आसमान अदब से पुर-नूर बना

    और अदब ही से फ़रिश्ते मा’सूम और पाक हुए

    बुद ज़े-गुस्ताख़ी कसूफ़-ए-आफ़ताब

    शुद 'अज़ाज़ीले ज़े-जुरअत रद्द-ए-बाब

    सूरज गरहन गुस्ताख़ी की वजह से था

    शैतान गुस्ताख़ी की वजह से मर्दूद-ए-बारगाह हुआ

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