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Sufinama

ख़ुद का पर्दा है तू ख़ुद ख़ुद को ज़रा देख तो ले

ग़ौसी शाह

ख़ुद का पर्दा है तू ख़ुद ख़ुद को ज़रा देख तो ले

ग़ौसी शाह

ख़ुद का पर्दा है तू ख़ुद ख़ुद को ज़रा देख तो ले

ख़ुद के पर्दे में तिरे ख़ुद है ख़ुदा देख तो ले

ख़ुद से जो दूर रहे हक़ से भी वो दूर रहे

है वो ख़ुद गुम-शुदा इस बात को पा देख तो ले

कुछ नहीं है भी तो सब कुछ है तू ही बात तो सुन

आप से आप ही तू ख़ुद है जुदा देख तो ले

है ख़ुदा ख़ुद में तिरे और तू ख़ुदा में गुम है

वो मदहोश ज़रा होश में देख तो ले

आप अपने को जो जाना वो ख़ुदा को जाना

शह-ए-लौलाक का इरशाद है क्या देख तो ले

नहनू अक़रब का अगर भेद समझना हो तुझे

अपनी शह-ए-रग की तरफ़ ध्यान लगा देख तो ले

कर रियाज़त तू और भूखों मर ख़ुद को समझ

राज़-ए-फ़ी-अनफ़ुसिकुम पीर से पा देख तो ले

गर ख़ुदा से तुझे मिलना है तो ख़ुद से मिल ले

आप अपने को ज़रा आँख उठा देख तो ले

नक़्द-ए-वक़्त आज है दीदार ख़ुदा का 'ग़ौसी'

अपनी सूरत को तू आईना बना देख तो ले

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मुहम्मद अ'ज़ीज़ ख़ान

मुहम्मद अ'ज़ीज़ ख़ान

कमाल क़व्वाल

कमाल क़व्वाल

स्रोत :
  • पुस्तक : तय्येबात-ए-गौसी (पृष्ठ 79)
  • रचनाकार : ग़ौसी शाह
  • प्रकाशन : आज़म स्टीम प्रेस, हैदराबाद (1952)
  • संस्करण : Second

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