रसीदम मन ब-दरियाए कि मौजश आदमी ख़्वारस्त
रसीदम मन ब-दरियाए कि मौजश आदमी ख़्वारस्त
न कश्ती अंदरूँ दरिया न मल्लाहे अ’जब कारस्त
मैं एक ऐसे दरिया में उतरा हूँ जि सकी मौजें व्यक्ति को नि गल जाती हैं
उस दरिया में न कोई कश्ती है, न कोई मल्लाह,घोर आश्चर्य है
चूँ आबश जुमलः ख़ूँ दीदम, ब-तर्सी दम अज़ आँ दरिया
ब-दिल गुफ़्तम चिरा तर्सी गुज़र बायद कि नाचार अस्त
जब मैं ने उस के पानी को ख़ून देखा तो उस दरिया से खौफ़ खाने लगा
और अपने आपसे कहा कि तू डरता क्यों है? तुझे तो इस के पार उतरना है
निदा अज़ हक़ चुनीँ आमद मगर अज़ जान मी तर्सी
हज़ाराँ जान-ए-मुश्ताक़ाँ दरीं दरिया निगूँ-सार अस्त
ख़ुदा की आवाज़ आई कि तुझे अपनी जान का डर नहीं है
इस दरिया में हज़ारों आ’शिक़ डूब चुके हैं
ब-गुफ़्तम मन हमी-आयम कमर बस्तम चूँ ग़व्वासाँ
चे तर्सम् अज़ निहंगाने कि गुल पैवस्तः बा ख़ारास्त
मैं ने कहा कि मैं ग़ोता-ख़ोरों की तरह कमर बांध कर आया हूँ
मगरमच्छों से मुझे क्या डर क्योंकि फूल तो काँटों के साथ रहता ही है
बहिश्तम मस्ती-ए-ख़ुद रा शुदम रू-ए-ख़ुदा आँ दम
सर-ए-दादन गिरफ़्तन सर सर-ए-बाज़ार वापार अस्त
जब मैं ने अपनी मस्ती को छोड़ा उसी दम ख़ुदा का सामना हो गया
सर देने और लेने का व्यापार भरे बाज़ार में हो रहा है
अया ‘उ’स्मान-ए-मरवन्दी’ सुख़न बा-पर्दः -दाराँ गो
ब-याबी दर जहाँ यारे जहाँ पुर-असर-ए-अग़्यार अस्त
ऐ ‘उ’स्मान मरवन्दी’ पर्दा-दारों को सच से आगाह करो
कि संसार में कोई एक दोस्त होगा क्योंकि पूरी दुनिया दुश्मनों से भरी पड़ी है
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