Font by Mehr Nastaliq Web

मा ज़े-अक़ल-ए-ख़्वेश्तन बेगान:एम

रूमी

मा ज़े-अक़ल-ए-ख़्वेश्तन बेगान:एम

रूमी

MORE BYरूमी

    मा ज़े-’अक़ल-ए-ख़्वेश्तन बेगान:एम

    लाजरम दुर्दी-कश-ए-मय-ख़ान:एम

    हम अपनी बुद्धि से विमुख हो गए हैं

    हमने शराबखाने में तलछट पी है

    चूँ न-दारम बा-ख़लाएक़ उल्फ़ते

    ख़ल्क़ पिन्दारंद कि मा दीवान:एम

    लोगों से हमारा कोई संबंध नहीं रहता

    इसलिए लोग समझते हैं कि हम दीवाने हैं

    दर अज़ल दादंद चु जाम-ए-अलस्त

    ता-अबद मा मस्त-ए-आँ-पैमान:एम

    मैं ने सृष्टि के आरंभ में ही प्रेम मदिरा पी ली थी

    हम क़यामत तक उसी से मस्त रहेंगे

    मा ज़े-गै़र-ए-ऊ ब-कुल फ़ारिग़ शुदेम

    दाइमन बा-दोस्त दर यक ख़ान:एम

    हम अपने दोस्त के अ’लावा सब से दूर हो चुके हैं

    और सदैव केवल अपने एक दोस्त के साथ एक घर में रहते हैं

    सूरत-ए-मा गर ख़राब आमद चे काम

    दरमियान-ए-दाम-ए-मा'ना दान:एम

    हम अगर दुखी और व्यथित हैं तो क्या हुआ

    हम अंतर्मन के जाल में एक दाने की तरह हैं

    शम्स-तबरेज़ी' चे दानद सिर्र-ए-हक़

    बस्त:-ए-फ़ितराक़-ए-आँ-जानान:एम

    ‘शम्स तब्रेज़ी’ ख़ुदा के रहस्यों को क्या जाने

    हम मा’शूक़ की डोरी से बंधे हुए हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 197)
    • प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY
    बोलिए