बोसा उस बुत की ज़बीं का लिया चंदन होकर।
बोसा उस बुत की ज़बीं का लिया चंदन होकर।
हुआ हमदोश में जुन्नार बरहमन होकर।।
चश्मे मरदुम से है आपको परदा मंजूर।
मेरी आँखों में रहा कीजिए अन्जन होकर।।
खून आशिक का पड़ा है इसे बेढ़ब चस्का।
जुल्फे पुरपेंच न काटे कहीं नागन होकर।।
आप रखिये तो जरा सीनए सदचाक प हाथ।
दिले पुर शोर अभी बजने लगे अरगन होकर।।
योरा रुख चमके हम जुल्फ का बोसा लेंगे।
पहुंचेगे किशवरे तातार में लन्दन होकर।।
बरसा करते हैं जुदाई में तेरी बरसों से।
अब्रदीदा कभी भादों कभी सावन होकर।।
साफ रुख बोसा से नीला हुआ उरगैज से सुर्ख।
नसतरन बन गया लाला गुले सोसन होकर।।
लूटने को गुलेज्जार ये रुखसार सनम।
परदये दीदये तर फैले है दामन होकर।।
खानये चश्मे आप आये जो ए परदा नशी।
पल्कें दरपरदा छिपा लें अभी चिल्मन होकर।।
दस्त रस पा न सका जब किसी ढब से है हात।
पहुंचा दिल साइदे महबूब में कंगन होकर।।
दोस्ती की दिले हमदर्द ने हम बेदर्द से आह।
दुश्मनी दोस्त ने की 'मुश्तरी' दुश्मन होकर।।
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