अभी रखती नहीं तासीर वो आह-ओ-फ़ुग़ाँ अपनी
अभी रखती नहीं तासीर वो आह-ओ-फ़ुग़ाँ अपनी
हिला पाये जो दिल उनका कहाँ वो दास्ताँ अपनी
न जाने कब तरस आयेगा उनको मेरी हालत पर
किये जाता है! जो भी चाहता है आसमाँ अपनी
मेरी बर्बादियों की ख़ूब शोहरत हो गयी जग में
करे अब नाज़ क़िस्मत पर तुम्हारा आसताँ अपनी
जहाँ तक फूँकना चाहो हो फूंको, सब तुम्हारा है
न मेरा आशियाँ अपना न मेरी बिजलियाँ अपनी
लहद में दाग़ -ए- हसरत मेरा, मेरे साथ जायेगा
फ़रिश्ते फूट कर रोयें! सुनें गर दास्ताँ अपनी
जमा-'ख़ातिर रखो तुम हश्र में भी सुर्ख़-रु होगे
नहीं खोलूँगा महशर में मेरी जाँ मैं ज़ुबाँ अपनी
तुम्हारी ही नज़र से है भरम दोनों जहाँनों में
नज़र मत फेर लेना मुझसे मेरे मेहेरबाँ अपनी
कहूं कैसे? ये किसके हाथ दिल नें ज़ख्म खायें हैँ
'मुज़म्मिल' उनकी रुसवाई मे हैँ रुसवाइयाँ अपनी!
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