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Sufinama

हम अहल-ए-इशक़ आसाँ इशक़ की मंज़िल समझते हैं

क़मर जलालवी

हम अहल-ए-इशक़ आसाँ इशक़ की मंज़िल समझते हैं

क़मर जलालवी

MORE BYक़मर जलालवी

    हम अहल-ए-इशक़ आसाँ इशक़ की मंज़िल समझते हैं

    ना जब मुश्किल समझते थे ना अब मुश्किल समझते हैं

    हम इस मुश्किल से बचना नाख़ुदा मुश्किल समझते हैं

    उधर तूफ़ान होता है जिधर साहिल समझते हैं

    ये कह दे दिल की मजबूरी हमें उठने नहीं देती

    इशारे वर्ना हम बानी-ए-महफ़िल समझते हैं

    तअ’ल्लुक़ जब नहीं है आपकी महफ़िल में क्यों आऊँ

    मुझे सरकार क्या परवाना-ए-महफ़िल समझते हैं

    हमारी वज़्अ-दारी है जो हम ख़ामोश हैं वर्ना

    ये रहज़न हें जिन्हें हम रहबर-ए-मंज़िल समझते हैं

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