ए अज़ली उल-वजूद ए अबदी अलबक़ा
ए अज़ली उल-वजूद ए अबदी अलबक़ा
बे अदबाना ना चल, हल्का-ए-अबदीयत में आ
ख़ालिक़-ओ-मख़लूक़ तो मालिक वममलोक तो
साजिद वमसजोद तो अजब ना कर सर झुका
जान सदाक़त पे वे सिदक़ है फ़ित्रत तरी
ज़ीस्त की पर्वा ना कर यसित है दाम फ़ना
गुलशन-ए- हक़्-अल-यक़ीन सामने आँखों के है
चेहरा से अपने हटा पर्दा-ए-बीम-ओ-रजा
रोज़-ए-अज़ल ख़ुद कहा जोश-ए-तरब में अलस्त
हो गया फिर क्यों ख़मोश दे के सदा-ए- बला
तेरी हक़ीक़त तलक किस की रसाई हुई
बाज़ी-ए-तिफ़लाना है मसला-ए-इर्तिक़ा
जलवा-कुनां तू जहां वां नहीं दख़्ल-ए-गुमाँ
नक़्शए-तू तहतुस-सुरा शान-ए- तू फ़ौक़स्समा
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