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Sufinama

फ़जर उठ यार का दीदार करनाँ

सिराज औरंगाबादी

फ़जर उठ यार का दीदार करनाँ

सिराज औरंगाबादी

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    फ़जर उठ यार का दीदार करनाँ

    शब-ए-हिज्राँ का दुख इज़हार करनाँ

    अगर साबित है दिल कुफ़्र में तूँ

    क़यामत में यही इक़रार करनाँ

    कहा यूँ खोल कर ज़ुल्फ़ों कूँ सय्याद

    किसी वहशी कूँ अपना यार करनाँ

    तसव्वुर में तिरे मज़हर-ए-रब

    तमाशा-ए-दर-ओ-दीवार करनाँ

    तुझे सौगंद अपने चाहते की

    कि अपने चाहते पर प्यार करनाँ

    कहनाँ ख़ूब है तुझ ज़ुल्फ़ की बात

    अ'बस हर तार का बिस्तार करनाँ

    'सिराज' अब इ'श्क़ की परवानगी है

    कि सैर-ए-कूचा-ओ-बाज़ार करनाँ

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