Sufinama

हश्रनामा

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    कि अब्दुल्ला वाइज़ मिरा नाम है,

    मुहम्मद इस्हाक़ बाप का नाम है।

    सुनाई है तुमको मेरी बात है,

    कि अब रहता हूँगा सो गुजरात में।

    हेगा मुल्क गुजरात भीतर वतन,

    उसे ख़ुश कहते हेंगे पीरान पट्टन।

    गया सैर करता मैं सोरठ भीतर,

    के धोराजी अंदर किया है गुजर।

    आया मेरे मिलने कूं मुल्ला अय्यूब,

    तू सब बूझता है सत्तारूल अयूब।

    उन्हें फ़ारसी एक ला दी किताब,

    पढ़ो शाह अब्दुल्लाह इसको शिताब।

    उसी फ़ारसी को सो हिन्दी बनाओ,

    तुम गुजरी ज़बान के ऊपर बनाओ।

    हश्रनामा इसका मैं रक्खा इसम,

    क़यामत का है इसमें ज़िक्र तमम्।।

    बरस याज़दे सद सतानूं केतीं,

    बना हश्रनामा सो सोरठ मनीं।

    जमादीले आखिर है तारीख़ दस,

    के था पीर का दिन सभों में सरस।

    महीना तारीख़ दिन मैं कह्या,

    सन हिजरी में तुमको बतला दिया।

    हश्रनामा धोराजी अन्दर बना,

    केती फ़ारसी की सो हिन्दी बना।

    कि ईसा नबी जिस वक़्त आयेंगे,

    कुर्आं और क़िताब ये काम आयेंगे।

    ये सन्दूक़ ऊपर करेंगे अमल,

    ख़ुदा उनके ऊपर करेगा फ़जल।

    उसीसी भी हीं ज़ाहिर हुवे,

    मुअम्मा मख़फ़ी से बाहिर हुवे।

    दिया शेख़ शागिर्द कूं फिर जवाब,

    के वल्लाह आलम बिस्सवाब।

    ये ईसा का आगे रह्या था बयां,

    उसी कूं कहता हूंगा अब अयां।

    के ईसा लयावे क़िताब कुराँ,

    रही थी मेरी बात यहाँ सी पिछां।

    कहे जिब्रईल सुन ये सारा जिकर,

    के ईसा यूं सुनकर करें तब फिकर।

    मुहम्मद की उम्मत में ऐसे भी थे।

    कि रोशन ज़मीरां कई ऐसे भी थे।

    मैं कहता हूँगा तुम सुनो ख़ासोआम,

    मुहम्मद गये थे सो आदम के पास।

    कहे तब सो आदम सुनो या नबी,

    हक़ीक़त तुमीं बूझते है सभी।

    कह्या था दाना खाओ तुम,

    खाया भूलकर वो दाना हम।

    कि शैतन मुझकूं भुलावा दिया,

    उसी वक़्त दाने मैं खागया

    ख़ुदा ने बहिश्त सीं दिया था निकाल,

    शफ़ाअत करूँ मैं मेरी क्या मजाल।

    इसी बरस सें तीन सौ बरस लग,

    मैं हव्वा सीं रूठा रह्या था अलग।

    किया अब वसीला तुम्हारा नबी,

    दिया बख़्श हक़नीं सो हव्वा सभी।

    शर्मिंदा हूँ मैं इसी बात में,

    शफ़ाअत को क्यूं सकूं सामने।

    करे जब यही बात आदम नबी,

    अय अब्दुल्लाह किया हाल तेरा नबी।

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