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यूसुफ़ सानी

मोहम्मद फ़तह

यूसुफ़ सानी

मोहम्मद फ़तह

MORE BYमोहम्मद फ़तह

    कान बाँधो इस क़िस्सा ऊपर तुमी,

    जो मुसलमान पाक हो सुनते हो तुमी।

    जो मसाइल दिए सती ऐसे सुने,

    पाक होवे यह मुसलमानों घने।

    नूर बरसे मक्का उपर जूं चान्द मां,

    बानों यह शीरीं का यू सगला लिखिया बयाँ।

    इते मसला जिसके दिल में याद है,

    दाख़िल हज़रत की मजालिस बीच ते।

    ऐसे मसला पूछती थी वे दीगर,

    चेन का वे थड़ है रोशन मगर।

    मारे शहज़ादे उने यक लख हज़ार,

    बेटी शह फ़ग़फ़ूर की युवा गुल अज़ार।

    हक़ने उसको चोरी (छोरी) में चोरा दिया,

    यूं करम वे शाहज़ादी पर किया।

    शाहज़ादे को कहलाया उने यूं,

    जीव लेकर नाठ जा इस शहर सूं।

    यूसुफ़ सानी ने बोला जाऊँगा,

    जिस वक़्त डोली में तुम को लाऊँगा।

    शाहज़ादे कूं बोला पूछा तमाम,

    है मजालिस में दुरूद पढ़ना हराम।

    सो तूं मुझकूं कह जवाब सवाल आं,

    नहीं तुझे गर्दन मैं मारूँगी याँ।

    शाहज़ादे ने कहा सुन परी,

    जिस वक़्त जुम्मा की होवे मजालिस भरी।

    ख़ुत्बा के वक़्त दुरूद पढ़ना मने,

    कुल बूढ़े और जवान छोटे नन्हें।

    पाक यूं हज़रत सो फ़रमाया तमाम,

    वे वक़्त पढ़ना दुरूद का है हराम।

    चुप रही शहज़ादी तब बार दीगर,

    कल मैं पूछूँगी ये मसला सर-ब-सर।

    उठ चला शहज़ादा तब कर कर सलाम,

    जो पूछेगी सो कहूँगा कल कलाम।

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