हिकायात- 3
एक बुज़ुर्ग थे जो बाग़बानी के ज़रिये' गुज़र बसर करते थे। हाकिम-ए-वक़्त को लोगों ने उनके ख़िलाफ़ वरग़लाया औऱ बर-गश्ता कर दिया। एक रोज़ वह हाकिम उन बुज़ुर्ग के बाग़ीचे के पास से गुज़र रहा था कि मुख़ालिफ़ों ने याद दिलाया कि यह फुलाँ का बग़ीचा है। हाकिम ठहर गया और बुज़ुर्ग मौसूफ़ को बुला भेजा।वह नमाज़ पढ़ रहे थे इसलिये हाकिम ख़ुद अन्दर चला गया। बुज़ुर्ग नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो बड़े अख़्लाक़ के साथ हाकिम से पेश आए और अपने बाग़ के चंद सेब रकाबी में उसके आगे रखे। हाकिम ने दिल में सोचा कि यह तो अच्छे आदमी मा'लूम होते हैं। लोग ख़्वाह-मख़्वाह मुझे बहकाते हैं मगर इनका इम्तिहान करना चाहिये ।अगर वाक़ई' यह ख़ुदा-रसीदा हैं तो इस रकाबी का सबसे बड़ा सेब अपने हाथ से उठा कर मुझे देंगे और अगर ख़ुदा-रसीदा नहीं हैं तो मेरे दिल की इस बात की इनको ख़बर ही न होगी।
हाकिम के यह सोचते ही बुज़ुर्ग ने सब से बड़ा सेब पलेट में से उठाया और बोले कि एक वाक़िआ' सुनो ।मैं सफ़र करता हुआ एक शहर में पहुंचा तो देखा कि कोई मदारी बाज़ी गर तमाशा दिखा रहा है और अतराफ़ लोगों की भीड़ है। उस मदारी के पास एक गधा था जिसकी आंखों पर उसने पट्टी बांध रखी थी ।मदारी ने एक अंगूठी तमाशाइयों को दे दी और कहा इसको कोई भी आदमी अपने पास छिपा ले। मेरा गधा ढूंढ कर बता देगा। चुंनांचे तमाशाइयों ने अंगूठी छिपा ली और गधे ने एक एक आदमी को सूंघना शुरु' किया और आख़िर उस आदमी के पास जाकर खड़ा हो गया जिस के पास अंगूठी थी।
यह क़िस्सा सुना कर बुज़ुर्ग ने सेब हाकिम के सामने फेंक दिया और कहा कि अगर हम करामत दिखायें तो हमारी मिसाल उस गधे की सी है। और अगर करामत नहीं दिखायें तो दुनिया कहती है कि यह पहुंचा हुआ नहीं है और ख़ुदा-रसीदा नहीं है।
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