हिकायात- 12
पैग़म्बर मूसा अ'लैहिस्सलाम के अहवाल में से बयान फ़रमाया कि अगर कोई आता और खोटा दिरम उनको देता और जो कुछ उन्होंने पकाया होता उसे ख़रीदता तो वह उस दिरम को ले लेते अगरचे जानते होते कि खोटा है। मगर ख़रीदार के सामने कुछ न कहते। और जो खरा दिरम लाता तो उसको भी (खाना दे) देते। यहां तक ख़ल्क़ को यह ख़याल हो गया कि उनको खरे खोटे की तमीज़ नहीं है। और बहुत लोग आते और खोटा दिरम दे देते और वह खरे की तरह ले लेते और उन पर ज़ाहिर न करते ।और खाना उनके हवाले कर देते। ताआंकि उनके इन्तिक़ाल का वक़्त आया ।उन्होंने आसमान की तरफ़ देखा और बोले ख़ुदावंद तो ख़ूब जानता है कि ख़ल्क़ मुझे खोटे दिरम देती थी और मैं खरे की तरह उन्हें क़ुबूल करता था और उनको वापस नहीं करता था। (उनके मुंह पर न मारता था) अगर मुझ से भी कोई खोटी ताअ'त हुई हो तो अपने करम से उसे वापस न फेर। (मेरे मुंह पर न मार)
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