हिकायात- 20
फिर तवक्कुल का ज़िक्र निकला। फ़रमाया कि तवक्कुल के तीन दर्जे हैं। पहला दर्जा यह है कि जैसे कोई शख़्स अपने दा'वे के लिए किसी को अपना वकील करे और वह वकील आ'लिम भी हो और मुवक्किल का दोस्त भी। पस उस मुवक्किल को यह इत्मिनान रहेगा कि मेरा वकील अपने काम और मुक़द्दमाबाज़ी में होशियार भी है और मेरा दोस्त भी। है इस सूरत में तवक्कुल भी है और सवाल भी। क्योंकि कभी वह अपने वकील से यह भी कहेगा कि इस दा'वे में इस तरह जवाब देना और उस काम को इस तरह पूरा करना। गोया तवक्कुल के पहले दर्जे में तवक्कुल भी होता है और सवाल भी ।तवक्कुल के दूसरे दर्जे की मिसाल ऐसी है कि जैसे कोई दूध पीता बच्चा हो कि उसकी मां उसको दूध पिलाती है। उसको महज़ तवक्कुल होता है, सवाल नहीं होता। बच्चा यह नहीं कहता कि मुझे फ़ुलाँ वक़्त दूध देना। बस रोने लगता है और तक़ाज़ा नहीं करता और यह नहीं कहता कि मुझे दूध दो। अपनी मां की शफ़क़त पर उसको भरोसा होता है लेकिन तवक्कुल के तीसरे मर्तबे की मिसाल ग़ुस्ल-ए-मय्यतत देने वाले के सामने मुर्दे की सी है। मुर्दा नहलाने वाले से कोई सवाल नहीं करता और उस से कोई हर्कत सरज़द नहीं होती। नहलाने वाला जिस तरह भी उसे ज़रूरत होती है उसे फेरता और नहलाता है। तवक्कुल का तीसरा मर्तबा यही है और यह मर्तबा आ'ला है और बुलंद है।
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