एक शख़्स का शैख़ अबुल-हसन ख़रक़ानी की ज़ियारत को आना और उनकी बीवी की बद-ज़बानी - दफ़्तर-ए-शशुम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
शहर-ए-तालक़ान से एक फ़क़ीर ख़रकान को हज़रत शैख़ अबुलहसन की शोहरत सुनकर गया बड़े पहाड़ और जंगलों को डकर के हज़रत शैख़ के देखने को हाज़िर हुआ। जब मंज़िल-ए-मक़सूद तक पहुंचा तो हज़रत का मकान ढूंढ कर पहुंचा। बड़े इ’ज्ज़-ओ-नियाज़ के साथ उसने कुंडी खटखटाई तो एक औ’रत ने दरवाज़े से बाहर सर निकाला और पूछा कि आप किस को बुलाते हैं। उसने जवाब दिया कि मैं हज़रत शाह अबुल-हसन की क़दम-बोसी को हाज़िर हुआ हूँ। उस औ’रत ने एक फ़रमाईशी क़हक़हा लगाया और कहा कि इस डाढ़ी पर आख़ थू है। इतना बड़ा सफ़र कर के यहां तक पहुंचा है क्या तुझे अपने वतन में कोई और काम ना था। या तू दीवाना है या ग़ालिबन शैतान ने तुझे बहकाया है। अल-ग़र्ज़ उस औ’रत ने बहुत सी ना-मुनासिब बातें कहीं जिनको मैं यहां बयान नहीं कर सकता। उस के आवाज़ों से वो मुरीद बड़े रंज और परेशानी में पड़ गया। उस की आँखों से आँसू बहने लगे मगर फिर पूछा कि ख़ैर ये तो सब सही मगर वो बादशाह हैं कहाँ?
उस औरत ने कहा कि वो धोके-बाज़ निरा बहरूपिया, बे-वक़ूफ़ों की जान और गुमराही की कमंद है अगर तू उससे ना मिले और सही सलामत वापस हो जाए तो बेहतर है कहीं तू भी उस के चक्कर में ना फंस जाये। ऐसा बड़-बोला, ख़ुशामदी और मुफ़्त-ख़ोरा है कि सारे मुल्क में उसकी शोहरत हो गई है। इस क़ौम के लोग सिबती और गोसाला परस्त हैं जो ऐसी गाय को पुचकारते और उस की ख़िदमत करते हैं। अफ़्सोस कि मूसा की उम्मती तो अब तक गोसाला परस्तों को क़त्ल करें और इन मुसलमानों का ये हाल हो जाए। पैग़ंबर और आपके अस्हाब का तरीक़ कहाँ रहा। वो नमाज़ में अज़कार-ओ-अशग़ाल और आदाब-ए-इ’बादत किधर गए। इन लोगों ने शरीअ’त और ख़ौफ़-ए-ख़ुदा को पीछे डाल दिया। हज़रत उ’म्र कहाँ रहे कि सख़्ती से अम्र-ए-मा’रूफ़ करते। ये बद-ज़ुबानी सुनकर उस मो’तक़िद को बहुत ग़ुस्सा आया और उसने भी औ’रत को ख़ूब सलवातें सुनाईं और उस के बा’द वहां से निकल कर एक एक से पूछता फिरा कि हज़रत कहाँ हैं? एक शख़्स ने ख़बर दी कि वो क़ुतुब-ए-ज़माना जलाने की लकड़ी लाने पहाड़ियों की तरफ़ गए हैं। वो मुसाफ़िर शैख़ के शौक़-ए-नियाज़ में सीधा उधर ही रवाना हुआ।
आदमी के होश-ओ-हवास के आगे शैतान वस्वसा लाया करता है जिससे चांद गर्द में छुप जाता है। चुनांचे रास्ता चलते चलते उसे भी ये वस्वसा आया कि हज़रत ने ऐसी औ’रत को अपने घर में क्यों रख छोड़ा है। दो ज़िद्दों में बाहम-दिगर मोहब्बत कैसे हो सकती है और ऐसे इमाम-ए-ज़माना के साथ भी ये शैतान मौजूद है यह क्या मुआ’मला है? फिर वो लाहौल पढ़ता और अपने जी में कहता कि शैख़ पर ए’तराज़ करना बहुत बुरा है ,ग़रज़ इसी उलझन में गिरफ़्तार चला जा रहा था कि उसने देखा कि शैख़-ए-नामदार एक शेर पर सवार चले आ रहे हैं। शेर पर लकड़ियाँ लदी थीं और लकड़ियों पर आप बैठे थे। हाथ में एक साँप बतौर ताज़ियाने के था। आपने मुरीद को दूर से देखा और हंस कर कहा ऐ फ़रेब-ख़ुर्दा उस की बात ना मान।
उन बुज़ुर्ग ने उस के नफ़्स की उधेड़ बुन को पा लिया और तमाम अहवाल एक एक कर के जो कुछ उस पर गुज़रे थे सब सुना दिए।उस के बा’द बीवी की ला’नत-ओ-मलामत के वाक़िआ’त हज़रत ने ख़ुद ही इरशाद फ़र्मा दिए और कहा कि वो मेरी बीवी है। अब तू ख़्याल कर कि अगर मैं एक औ’रत की बद-ज़बानी पर भी सब्र ना कर सकता तो ये शेर-ए-नर मेरी बेगार कैसे उठाता।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 212)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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