सुल्तान महमूद का एक रात चोरों के साथ शरीक रहना -दफ़्तर-ए-शशुम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
एक रात को सुल्तान महमूद भेस बदल कर निकला और चोरों की जमाअ’त के साथ हो गया। जब कुछ देर उनके साथ रहा तो उन्होंने पूछा कि ऐ रफ़ीक़ तू कौन है? बादशाह ने जवाब दिया कि मैं भी तुमहीं में से एक चोर हूँ। इस पर एक चोर ने कहा भाईओ आओ ज़रा अपना अपना हुनर तो बताओ। हर शख़्स बयान करे कि वो क्या क्या कमाल रखता है।
एक ने जवाब दिया कि मेरे दोनों कानों में अ’जब कमाल है कि कुत्ता जो भौंकता है तो मैं समझ जाता हूँ कि लोग फ़ुलां शख़्स की इमारत का क्या चर्चा करते हैं। दूसरे ने कहा मेरी आँखों में ये कमाल है कि जिस किसी को रात के अंधेरे में देख लूं तो दिन के वक़्त उस को पहचान लेता हूँ। तीसरे ने कहा मेरे बाज़ू में ये क़ुव्वत है कि सिर्फ़ हाथ की क़ुव्वत से कोमल लगाता हूँ। चौथे ने कहा मेरी नाक में अ’जीब वस्फ़ है। जगह जगह ख़ाक सूंघ कर पहचान लेता हूँ कि किस जगह दौलत गड़ी है। पांचवें ने कहा मेरे पंजे में वो क़ुव्वत है कि जब कमंद फेंकता हूँ तो महल चाहे कैसा ही बुलंद हो मेरी कमंद उस के कंगूरे को पकड़ लेती है। आख़िर में सुल्तान से मुख़ातिब हो कर उनसे पूछा कि भाई अब तू बता कि तुझमें क्या वस्फ़ और कमाल है। सुल्तान ने जवाब दिया कि मेरी दाढ़ी में ये वस्फ़ है कि जब मुज्रिमों को जल्लाद के सुपुर्द करते हैं उस वक़्त अगर मेरी दाढ़ी हिल जाये तो मुज्रिम रिहा हो जाते हैं। सब चोरों ने यक ज़बान हो कर कहा कि हमारा सरदार बस तूही है क्योंकि मुसीबत के दिन मेरे बाइ’स हमको छुटकारा होगा।
उस के बा’द सब मिलकर बाहर निकले और सुल्तान के महल के पास पहुंचे। जब दाएं तरफ़ कुत्ता भोंका तो पहले चोर ने कहा कि भाईओ ये तो कहता है कोई बादशाह तुम्हारे आस-पास है। दूसरे चोर ने मिट्टी सूंघ कर बताया कि इस के क़रीब बादशाही ख़ज़ाना है। पस कमंद फेंकने वाले ने कमंद फेंकी और सब उस बुलंद दीवार के दूसरी तरफ़ जा पहुंचे। कोमल लगाने वाले ने कोमल लगा कर सबको खज़ाने के अंदर पहुंचा दिया और हर एक ने खज़ाने से जो हाथ लगा वो उठाया। अशर्फ़ियां, ज़रबफ़्त, मोती वग़ैरा उठा ले गए और एक जगह छुपा दिया।सुल्तान ने उनकी जा-ए-पनाह अच्छी तरह देख ली और एक एक का हुल्या, नाम सब अच्छी तरह मा’लूम कर लिया। फिर अपने को सबकी निगाहों से छुपा कर वापस हो गया और दूसरे दिन चोरी का माजरा बयान किया। अब क्या था बड़े बड़े ताक़तवर, तलवार लिए सिपाही दौड़ पड़े और हर सिपाही ने एक एक चोर को गिरफ़्तार कर लिया। वो चोर हथकड़ी पहनाए दरबार में हाज़िर किए गए जो अपनी जान के ख़ौफ़ से काँप रहे थे। जब तख़्त-ए-सुल्तानी के आगे खड़े किए गए तो सुल्तान तो ख़ुद ही चांद की तरह रात को उनके साथ था, जो चोर रात के अंधेरे में देखकर दिन को पहचान लेता, उसने बादशाह को तख़्त पर देखकर साथियों से कहा कि रात की फिराई में ये हमारे साथ था। पस हाथ बांध कर अ’र्ज़ की कि ऐ छुपवां गशत करने वाले बादशाह अब वक़्त आ पहुंचा कि आप अज़ राह़-ए-करम अपनी दाढ़ी हिलाएँ। हम में से हर एक तो अपना कमाल दिखा चुका और और उन कमालों से बद-बख़्ती और मुसीबत ही बढ़ती गई यहां तक कि हमारी गर्दनें बंध गईं। वो सब हुनर-ओ-कमाल खजूर की बटी हुई रस्सियाँ थे जो हमारी गर्दनों में पड़े हुए हैं और मौत के दिन उनसे कोई मदद नहीं पहुँचती है। इस मौक़ा’ पर अगर कोई काम आया तो वही शख़्स जिसकी आँख बादशाह को पहचान गई।महमूद को भी रहम आ गया और उस की दाढ़ी के इशारे से उन चोरों की जान बच गई और नहीं मुआ’फ़ी मिल गई।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 222)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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